महाराष्ट्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के बीच अपनी पहुंच मजबूत करने के लिए महायुति सरकार ने केंद्र को ‘गैर-क्रीमी लेयर’ के लिए आय सीमा 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये प्रति वर्ष करने की सिफारिश की है। ओबीसी श्रेणी में आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए एक ‘नॉन-क्रीमी लेयर’ प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है, जो बताता है कि किसी व्यक्ति की वार्षिक पारिवारिक आय निर्धारित सीमा से कम है।

राज्य सरकार ने गुरुवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह सिफारिश करने का फैसला किया। प्रस्ताव को लागू करने से पहले केंद्र से मंजूरी लेनी होगी। एक अलग फैसले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने बुधवार को महाराष्ट्र के सात समुदायों को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करने की सिफारिश की।

एनसीबीसी का निर्णय महायुति सरकार द्वारा निम्नलिखित जातियों और उप-जातियों को शामिल करके केंद्रीय ओबीसी सूची का विस्तार करने का आग्रह करने के बाद आया है। इन जातियों में लोध, लोधा, लोधी, बड़गुजर, सूर्यवंशी गूजर, लेवे गुजर, रेवे गुजर, रेवा गुजर, डंगारी, भोयर, पवार, कापेवार, मुन्नार कापेवार, मुन्नार कापू, तेलंगा, तेलंगी, पेंटारेड्डी, बुकेकारी शामिल है। महायुती सरकार नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले अपने ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने के लिए विभिन्न उपाय कर रही है।

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क्या इन कदमों का कोई चुनावी असर हो सकता है?

महाराष्ट्र में 351 ओबीसी समुदाय राज्य की आबादी का 52% हिस्सा हैं। इनमें से 291 समुदाय ऐसे हैं जो केंद्रीय ओबीसी सूची के अंतर्गत आते हैं। ऊपर लिस्टेड सात नई जातियों और उनकी उप-जातियों को शामिल करने की मांग 1996 से लंबे समय से लंबित है। पिछले राज्य सरकारों ने एनसीबीसी से यह अनुरोध किया था। लेकिन मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा।

राज्य सरकार के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए एनसीबीसी की बोली राज्य विधानसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले आती है। यह फैसला उत्तरी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में चुनावी रूप से महत्वपूर्ण ओबीसी समूहों को एक संदेश भेजेगा। भोयर और पवार समुदायों की विदर्भ क्षेत्र के वर्धा, चंद्रपुर, भंडारा-गोंदिया, यवतमाल और नागपुर में मौजूदगी है, जिसमें 62 विधानसभा सीटें हैं और भाजपा और कांग्रेस के बीच एक कड़ी लड़ाई देखने को मिल रही है। एमवीए (महा विकास अघाड़ी) में कांग्रेस के अलावा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) भी शामिल हैं।

बडगुजर, लेवे गूजर, रेवे गूजर और रेवा गूजर की उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव, नासिक, नंदुरबार और अहमदनगर जिलों में मौजूदगी है। 35 विधानसभा सीटों के साथ उत्तर महाराष्ट्र भाजपा का गढ़ है। हालांकि लोकसभा चुनाव के दौरान प्याज किसानों के बीच अशांति ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया था। तेलंगी, पेंटारेड्डी और मुन्नार कापू समुदाय मराठवाड़ा क्षेत्र के नांदेड़ और पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर में बड़ी संख्या में हैं। ये समुदाय अनुमानित 35-40 निर्वाचन क्षेत्रों में महायुति या एमवीए की संभावनाओं को बना या बिगाड़ सकते हैं।

बीजेपी ओबीसी पर क्यों फोकस कर रही है?

मुस्लिमों, मराठों और दलितों के भाजपा से दूर होते दिखने के साथ पार्टी ने अपने पारंपरिक ओबीसी वोट आधार पर वापस लौटने का एक सामरिक निर्णय लिया है। 1980 में अपनी स्थापना के बाद से ही बीजेपी की छवि ब्राह्मण और बनिया पार्टी की बन गई थी। इस टैग को हटाने के लिए पार्टी ने एक माधव- माली, धनगर और वंजारी (ओबीसी) फॉर्मूला विकसित किया था, जिससे भाजपा को महाराष्ट्र में अधिक पैर जमाने में मदद मिली।

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इन वर्षों में भाजपा कुछ हद तक मराठों का समर्थन हासिल करने में भी कामयाब रही। हालांकि आरक्षण को लेकर कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व वाले मराठा आंदोलन ने अब भाजपा के खिलाफ समुदाय में अशांति पैदा कर दी है, जिसे हाल के लोकसभा चुनावों में सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। भाजपा अपने लाभ के लिए ‘मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण’ का उपयोग करने की कोशिश कर रही है। महाराष्ट्र भाजपा हरियाणा में पार्टी की रणनीति को दोहराने की उम्मीद कर रही है, जहां ‘जाट विरोधी एकजुटता’ ने उसे ओबीसी और दलितों के बीच अधिक स्वीकार्यता हासिल करने में मदद की।

गैर-भाजपा ओबीसी चेहरे इसे कैसे देखते हैं?

ओबीसी जनमंच के अध्यक्ष प्रकाश शेंडगे ने महायुति कैबिनेट के फैसले को भ्रामक बताते हुए खारिज कर दिया। शेंगडे ने इसे ओबीसी समुदायों को आकर्षित करने के लिए एक राजनीतिक हथकंडा बताते हुए कहा, “अगर वे वास्तव में इन समुदायों के बारे में चिंतित होते, तो उन्होंने दो साल पहले निर्णय लिया होता। इसके बजाय मराठा आरक्षण पर उनकी लापरवाही ने ओबीसी को परेशान कर दिया है। क्रीमी लेयर पर निर्णय केंद्र का अधिकार है। कोई राज्य कैसे श्रेय ले सकता है? इसके अलावा जाति मानदंड आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक पिछड़ेपन पर निर्धारित होता है।”

एमवीए ने कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त की है?

कांग्रेस ने कहा कि यह कदम महज एक और चुनावी वादा है। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा, “विपक्षी नेताओं का मानना ​​​​है कि (महायुति सरकार के) ओबीसी से संबंधित सभी निर्णय प्रस्ताव चरण में हैं। इसके जल्द लागू होने की संभावना नहीं है।”