Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना यूबीटी और राज ठाकरे की एमएनएस के बीच गठबंधन की चर्चाएं काफी ज्यादा हैं। इस बीच ही उद्धव गुट ने यह भी कह दिया है कि दोनों चचेरे भाई आगामी बीएमसी चुनाव में एक साथ ताल ठोकेंगे। हालांकि अभी तक दोनों ही ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।

दूसरी ओर शिवसेना यूबीटी के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने शुक्रवार को कहा, “ठाकरे बंधु मिलकर निकाय चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। मुंबई , ठाणे, नासिक और छत्रपति संभाजीनगर सहित कई नगर निगमों के लिए बातचीत पहले से ही चल रही है। अब कोई भी बुरी ताकत ठाकरे परिवार की एकता को नहीं तोड़ सकती।”

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राज ठाकरे को लेकर हमेशा रहा कन्फ्यूजन?

हालांकि राज ठाकरे का राजनीतिक करियर बार-बार अपनी निष्ठा बदलने और महाराष्ट्र में विरोधियों व सहयोगियों को मिले-जुले संकेतों के चलते अस्पष्ट रहा है। हाल के महीनों में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के अन्य नेताओं के साथ उनकी मुलाकातों ने BJP के साथ गठजोड़ की अटकलों को हवा दे दी थी। इसके चलते राज ठाकरे छवि रणनीतिक विघटनकारी नेता के रूप में सामने आती रही है।

इन सबके बावजूद मराठी भाषी मतदाताओं से उन्हें समर्थन मिलता रहा है। स्थानीय निकाय चुनावों के लिए शिवसेना (यूबीटी)-मनसे गठबंधन पर अभी भी बातचीत चल रही है लेकिन मनसे का चुनावी इतिहास दर्शाता है कि 2009 में अपने पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद से इसका प्रभाव सीमित रहा है।

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MNS का अब तक कैसा रहा है प्रदर्शन?

लोकसभा चुनावों में मनसे ने अब तक एक भी सीट नहीं जीती है। राज्य विधानसभा चुनावों में मनसे ने अच्छी शुरुआत की थी और साल 2009 में 13 सीटें और 5.7% वोट शेयर हासिल किया था लेकिन उसके बाद से उसकी किस्मत कमज़ोर होती गई है… 2014 और 2019 में पार्टी सिर्फ़ एक-एक सीट जीत पाई और 2024 में शून्य पर सिमट गई।

हालांकि अहम बात यह भी है कि शहरी मराठी मतदाताओं में क्षेत्रीय पहचान के लिए राज की मुहिम के प्रति प्रतिध्वनित होने के कारण मनसे ने अब तक लड़े गए तीन नगर निगम चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया है और इससे शिवसेना (यूबीटी) की संभावनाओं को बढ़ावा मिल सकता है।

2006-2009 में कैसा रहा प्रदर्शन

2006 और 2009 के बीच मनसे द्वारा लड़े गए नगर निगम चुनावों के पहले सेट में पार्टी ने 12 निगमों में 45 सीटें जीतीं, और उसका कुल वोट शेयर 5.87% रहा था। महाराष्ट्र में 22 निगमों में कुल 2,118 सीटें हैं। मनसे का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नासिक में रहा, जहां पार्टी ने 12.97% वोट शेयर के साथ कुल 108 सीटों में से 12 सीटें जीतीं, इसके बाद पुणे की 144 सीटों में से 7.74% वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीतीं। मनसे ने बीएमसी में अपना दूसरा सबसे बड़ा वोट शेयर 10.43% दर्ज किया जो उसकी 228 सीटों में से सात जीतने के लिए पर्याप्त था।

अविभाजित शिवसेना और कांग्रेस नासिक और बृहन्मुंबई में सीटों के मामले में अब तक प्रमुख पार्टियां थीं जबकि अविभाजित एनसीपी पुणे में शीर्ष स्थान पर थी। संयोग से नासिक और बृहन्मुंबई में मनसे का वोट शेयर BJP से अधिक था क्रमशः 1.44% और 8.69%, और बृहन्मुंबई में एनसीपी के 11.29% से ज़्यादा पीछे नहीं था। मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) के अंतर्गत आने वाले नौ निगमों में से मनसे बृहन्मुंबई, ठाणे और मीरा-भयंदर में सीटें जीतने में कामयाब रही।

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2006 से 2009 तक हुए 12 नगर निगम चुनावों में अंतिम स्थानों के विश्लेषण से पता चलता है कि मनसे द्वारा जीती गई कुल 45 सीटों में, शिवसेना और राकांपा इसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी थे, जो क्रमशः 15 और 13 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे। हालांकि, एमएनएस कुल 63 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही, जिनमें से 25 शिवसेना, 13 कांग्रेस, 12 एनसीपी और सात BJP ने जीतीं।

निकाय चुनावों दिखाई थी ताकत

मनसे ने अपने पहले प्रयास के बाद 2009 से 2014 तक नगर निगम चुनावों में भी मजबूत प्रदर्शन किया था। पार्टी ने 26 निगमों में से दो को छोड़कर सभी पर चुनाव लड़ा और कुल 2,543 सीटों में से 162 पर जीत हासिल की, जिसमें उसका वोट प्रतिशत 12 प्रतिशत से ज्यादा हो गया था। 40 सीटों और 28.24% वोट शेयर के साथ मनसे नासिक में सबसे बड़ी पार्टी थी। हालांकि 122 सदस्यीय निकाय में उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला, फिर भी उसे निगम का नेतृत्व करने के लिए पर्याप्त बाहरी समर्थन प्राप्त था। यहां उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी अविभाजित शिवसेना और राकांपा थे, जिन्होंने क्रमशः 19 और 20 सीटें जीतीं, हालाकि कांग्रेस भी 15 सीटों के साथ बहुत पीछे नहीं रही।

17 निगमों में सीटें जीतने वाली पार्टी ने पुणे की 152 में से 29, बृहन्मुंबई की 227 में से 28, कल्याण-डोंबिवली की 107 में से 27, जलगांव की 75 में से 12 और ठाणे की 130 में से सात सीटें जीतने में भी कामयाबी हासिल की। एमएनएस ने एमएमआर के अंतर्गत आने वाले दो निगमों को छोड़कर बाकी सभी में सीटें जीतीं।

तेजी से बढ़ा वोट बैंक

वोट शेयर के लिहाज से मनसे ने कल्याण-डोंबिवली में 28.72% वोट के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। सीटों के मामले में शिवसेना से पीछे रहने के बावजूद बाकी सभी पार्टियों से काफी आगे रहा। नासिक में इसका 28.24% वोट शेयर पार्टी का दूसरा सबसे बड़ा और निगम में सभी पार्टियों में सबसे ज़्यादा वोट शेयर था। बृहन्मुंबई और पुणे में क्रमशः 20.67% और 20.6% वोट शेयर के साथ मनसे दूसरे सबसे ज़्यादा वोट पाने वाली पार्टी रही। ठाणे में 15.41% और जलगांव में 13.22% वोट शेयर के साथ इसका तीसरा सबसे ज़्यादा वोट शेयर रहा।

एमएनएस द्वारा जीती गई कुल 162 सीटों में, उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी जो दूसरे स्थान पर रहे, वे थे शिवसेना 56 सीटों पर, एनसीपी 33 पर, बीजेपी 28 पर, और कांग्रेस 25 पर थे। जिन 255 सीटों पर एमएनएस दूसरे स्थान पर रही उनमें शिवसेना ने उसे काफी हद तक पछाड़ दिया, जिसने इनमें से 92 सीटें जीतीं, उसके बाद एनसीपी 56, बीजेपी 44 पर, और कांग्रेस 37 पर रही।

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शिवसेना यूबीटी के साथ गठबंधन फायदेमंद

आंकड़ों के आधार पर, मनसे का शिवसेना के साथ गठबंधन बीजेपी के साथ गठबंधन से अधिक लाभदायक साबित हो सकता था हालांकि कल्याण-डोंबिवली को छोड़कर, जहां मनसे और शिवसेना की संयुक्त सीटें स्पष्ट बहुमत तक पहुंच जातीं दोनों में से कोई भी गठबंधन किसी भी निगम में बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाता।

पिछले एक दशक में गिरा MNS ग्राफ

महाराष्ट्र में हुए आखिरी 2014 से 2019 तक के निगम चुनावों में मनसे को करारा झटका लगा, जिससे शहरी क्षेत्रों में उसके राजनीतिक प्रभाव पर सवाल उठने लगे। 27 निगमों में से 21 पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी ने कुल 2,736 सीटों में से सिर्फ़ 26 पर जीत हासिल की, जिसका कुल वोट शेयर 3.56% रहा और यह दोनों ही आंकड़े लगभग एक दशक पहले हुए उसके नगर निगम चुनावों के पहले प्रदर्शन से भी काफ़ी कम हैं।

मनसे की सीटों की संख्या एक निगम को छोड़कर सभी में घटी, जबकि दो को छोड़कर सभी में उसका वोट शेयर गिरा। उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन कल्याण-डोंबिवली में केवल नौ सीटों के साथ रहा, उसके बाद बृहन्मुंबई में सात और नासिक में पांच सीटें रहीं। जहां शिवसेना और बीजेपी बृहन्मुंबई और कल्याण-डोंबिवली में क्रमशः 84-82 और 52-42 सीटों के साथ बराबरी पर थीं, वहीं नासिक में 66 सीटों के साथ BJP स्पष्ट रूप से आगे थी। मनसे ने जिन अन्य निगमों में सीटें जीतीं, वे चंद्रपुर और पुणे थे, जहाँ उसे दो-दो सीटें मिलीं, और पिंपरी-चिंचवाड़ में एक सीट।

नतीजे बदलने की क्षमता कम?

मनसे की अपेक्षाकृत नगण्य सीटों का मतलब था कि नतीजों को तय करने में उसकी भूमिका बहुत कम थी, यहां तक कि जहां उसने सबसे मज़बूत प्रदर्शन भी किया था। उदाहरण के लिए, बृहन्मुंबई और नासिक में, अगर मनसे की सीटों को भी जोड़ दिया जाता, तो भी न तो BJP और न ही शिवसेना को पूर्ण बहुमत मिलता लेकिन नासिक में, जहां मनसे का सबसे अच्छा नतीजा रहा, अकेले BJP ही पूर्ण बहुमत हासिल करने में कामयाब रही।

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