BY: NEERJA CHOWDHURY
शरद पवार की 50 साल से ज्यादा लंबी सियासत है, राजनीति का हर दांव-पेच उन्हें बखूबी आता है। तभी तो कई मौकों पर बड़े खेल ‘साहेब’ ने करके दिखाए हैं। लेकिन अब समय बदल गया है। एक जमाने का गुगली मास्टर अब एक विक्टिम है। विक्टिम उस सियासत का जहां पर पद की महत्वाकांक्षा ने पार्टी में ही दो फाड़ करवा दी है, कई सालों बाद महाराष्ट्र में खिसकती सियासत का अहसास करवा दिया है।
एनसीपी में दो फाड़ और बीजेपी की रणनीति
माना जा रहा है कि पटना में जिस विपक्षी एकता की पहली नींव रखी गई थी, शरद पवार के साथ हुए इस सियासी खेले ने जमीन पर सबकुछ बदल दिया है। आलम ये है कि अजित के एक दांव ने बीजेपी की नई रणनीति एकदम साफ कर दी है। क्षेत्रीय पार्टियों को तोड़ना, उन्हें अपने पाले में लाना और एनडीए को फिर मजबूती प्रदान करना। इस समय इसी मिशन के साथ बीजेपी 2024 के लिए आगे बढ़ रही है।
वैसे भी जिस तरह से पहले शिवसेना में दो फाड़ की गई, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि बीजेपी हर कीमत पर खुद को 2024 से पहले फिर मजबूत करना चाहती है। अटकलें तो ये भी हैं कि बिहार में कुछ खेल हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि खबर है कि नीतीश आने वाले समय में तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनवा सकते हैं। इस डील से जेडीयू के ही कुछ नेता खुशन हीं हैं। ऐसे में बीजेपी वहां भी उस नाराजगी का फायदा उठा सकती है। बीजेपी के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर घी टेढ़ी उंगली से भी ना निकले तो डिब्बे में ही छेद कर देना चाहिए। यानी कि पार्टी एक तरफ विपक्ष को एकजुट होने से रोक रही है तो वहीं दूसरी तरफ अपने कुनबे को बढ़ा करने का प्रयास कर रही है।
पवार के मन में क्या चल रहा है?
अब बीजेपी तो पूरी तरह तैयार दिख रही है, लेकिन शरद पवार का खेल अभी भी ठीक तरह से नहीं समझा जा सकता है। सवाल कई उठ रहे हैं, लेकिन जवाब अभी स्पष्ट नहीं। ये लाजिमी सवाल है कि क्या शरद पवार ने खुद भी पार्टी में दो फाड़ होने दी? ऐसा इसलिए क्योंकि ये बात किसी से नहीं छिपी कि पवार, अपनी बेटी सुप्रिया सुले को आगे करना चाहते थे, ऐसे में अजित को हटा रास्ता साफ हो रहा है। बड़ी बात ये भी है कि अजित पवार का एनसीपी में दो फाड़ करना किसी को भी हैरान नहीं किया है। इसका कारण ये है कि अजित का वो दांव आना तय था, बस कब, सवाल ये था।
शरद पवार ने जो इस्तीफे वाला दांव चला था, जानकार मानते हैं वो भी अजित का टेस्ट लेने के लिए था। उन पर ईडी के मामले थे, सीएम बनने की चाह थी, ऐसे में वे पाला बदल सकते थे। अब तो ऐसा हो भी चुका है, लेकिन विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया है कि शरद पवार को गुगली मास्टर नहीं माना जा सकता, वे वर्तमान स्थिति में पीड़ित ज्यादा दिखाई पड़ते हैं।