Nashik Dargah Demolition: महाराष्ट के नासिक में हाल ही में एक दरगाह को गिराए जाने का मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जोरदार विरोध किया था। इस दौरान हुई हिंसा में तीन दर्जन पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। पुलिस ने सख्त एक्शन लेते हुए 30 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया था। दरगाह को गिराने की कार्रवाई नासिक नगर निगम की ओर से की गई थी।
दरगाह को गिराने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा लेकिन जब तक कोर्ट ने नासिक नगर निगम की कार्रवाई पर रोक लगाई, तब तक दरगाह और इसके आसपास की कब्रों को नेस्तनाबूद किया जा चुका था।
यह दरगाह हजरत सातपीर सैयद बाबा की है और नासिक के काठे गली में है। मुस्लिम समुदाय का दावा है कि यह दशकों पुरानी है। इसके साथ यहां पर सात कब्रें भी हैं। इन कब्रों के बारे में कहा जाता है कि यह सूफी संतों की हैं। लेकिन नगर निगम का कहना है कि यह अतिक्रमण है और पूरी तरह अवैध है।
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हाई कोर्ट ने क्या कहा?
दरगाह में तोड़फोड़ की कार्रवाई के खिलाफ जब दरगाह समिति ने मुंबई हाई कोर्ट का रुख किया तो जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस कमल खाता की बेंच ने कहा था कि दरगाह की संरचना पूरी तरह से अनाधिकृत और अवैध (Unauthorised and Illegal) है।
दरगाह कमेटी का क्या कहना है?
यह दरगाह 257 स्क्वायर मीटर में फैली हुई है। दरगाह कमेटी का कहना है कि जिस जमीन पर दरगाह बनी है, वह वक्फ की प्रॉपर्टी है और उनके पास इसे साबित करने के लिए पूरे दस्तावेज हैं। दरगाह कमेटी के अध्यक्ष तबरेज इनामदार ने The Indian Express को बताया कि नासिक नगर निगम ने जल्दबाजी में तोड़फोड़ थी कि क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश दरगाह कमेटी के पक्ष में आ सकता है।
1853 के दस्तावेजों का दिया हवाला
नासिक नगर निगम की ओर से बॉम्बे हाई कोर्ट में दिए एफिडेविट में भी दरगाह के बारे में कहा गया था कि यह नगर निगम की जमीन पर बनाई गई थी ना कि वक्फ की जमीन पर। दरगाह कमेटी के लोगों ने अदालत में दायर किए अपने दस्तावेजों में कहा है कि यह दरगाह कम से कम डेढ़ सदी पुरानी है और इसे लेकर उनके पास 1853 के ऐतिहासिक दस्तावेज भी हैं।
दरगाह कमेटी के लोगों का कहना है कि यह मूल रूप से वक्फ की ही संपत्ति थी लेकिन बाद में लेआउट तैयार करते समय एक डेवलपर ने नगर निगम के टाउन प्लानिंग विभाग के साथ मिलकर जानबूझकर दरगाह को एक खुली जगह में दिखा दिया।
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नगर निगम ने 2015 में जारी किया था नोटिस
यह मामला काफी पुराना है। नगर निगम ने 2015 में पहली बार इस जगह को लेकर दरगाह कमेटी को नोटिस जारी किया था और कहा था कि यह दरगाह 2009 के बाद बनी है। लेकिन दरगाह के ट्रस्टियों की ओर से इसे अदालत में चुनौती दी गई और यह मामला नासिक की अदालत में चलता रहा। लेकिन पीछे साल महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के दौरान यह मामला बड़े पैमाने पर उछला और दरगाह के पूरे ढांचे को ध्वस्त करने की मांग उठी और इसमें इसके आसपास बनी हुई कब्रें भी शामिल थीं।
नासिक नगर निगम का कहना था कि इनका निर्माण उसकी अनुमति के बिना किया गया था लेकिन नगर निगम की एक बैठक के मिनट्स से पता चलता है कि 3 सितंबर, 2024 को नासिक नगर निगम के तत्कालीन नगर आयुक्त डॉ. अशोक करंजकर ने माना था कि पांच दशक पुराने रिकॉर्ड दरगाह के अस्तित्व के बारे में बताते हैं। हालांकि बैठक में कहा गया था कि इस जमीन के मालिकाना हक के संबंध में वक्फ बोर्ड के पास किसी तरह का कोई दस्तावेज या रिकॉर्ड नहीं मिला।
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नगर निगम ने की तोड़फोड़ की कार्रवाई
दरगाह कमेटी ने नासिक नगर निगम के नोटिस के जवाब में महाराष्ट्र वक्फ ट्रिब्यूनल से संपर्क किया। लेकिन इस बीच नगर निगम ने 22 फरवरी को तोड़फोड़ की कार्रवाई की और इससे विवाद बढ़ गया। दरगाह कमेटी ने इसके खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की और हाई कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के बाद कहा कि यह संरचना पूरी तरह से अनाधिकृत और अवैध है।
नासिक नगर निगम ने 1 अप्रैल को नया नोटिस जारी करके दरगाह को अवैध करार दिया और कहा कि 15 दिनों के भीतर इसे खुद ही हटा लिया जाए। दरगाह समिति ने इसके खिलाफ पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उससे पहले ही नासिक नगर निगम ने दरगाह और कब्र को ध्वस्त कर दिया। इस दौरान हिंसक झड़पें भी हुईं। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने आगे किसी तरह की तोड़फोड़ पर रोक लगा दी।
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