बीजेपी की विस्तार वादी नीति से विपक्ष ही नहीं बल्कि पार्टी के सहयोगी भी अब नाराज होते दिख रहे हैं। इसका ताजा मामला महाराष्ट्र में देखने को मिला है, जब राज्य में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन सरकार में शामिल शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता ने इसको लेकर नाराजगी व्यक्त की। बीते मंगलवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा बुलाई गई कैबिनेट की बैठक में शिवसेना की ओर से उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को छोड़ कोई अन्य मंत्री शामिल नहीं हुआ। जिसके बाद से ये चर्चा शुरू हो गई और सरकार में सहयोगियों के बीच तनाव बढ़ता दिखने लगा।

इस मामले को लेकर सीएम फडणवीस ने कथित तौर पर मंत्रियों से कहा कि उन्हें एक साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि आगे से गठबंधन के भीतर के नेताओं को अपने पाले में न लाया जाए। ऐसा करने से आपसी मतभेद बढ़ता है, जो ठीक नहीं है। आगामी कुछ दिनों में ही महाराष्ट्र नगर निकाय के चुनाव होने है जिसको लेकर सभी पार्टियों ने कमर कसना शुरू कर दिया है, जिसमें बीएमसी सबसे प्रमुख है।

जीत के बाद ही महायुति में बनी थी सहमती

नवंबर 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत के बाद महायुति के सहयोगियों बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और राकांपा (अजीत पवार) के बीच हुए एक अनौपचारिक समझौते हुआ था। बीजेपी के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया, “यह सहमति बनी थी कि सरकार के भीतर और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने के लिए सहयोगियों से नेताओं की अदला बदली नहीं की जाएगी। हालांकि तीनों दल विपक्षी खेमे के नेताओं को शामिल करने के लिए स्वतंत्र थे।”

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शिवसेना के मंत्रियों द्वारा यह शिकायत बीजेपी नेता कदम चव्हाण द्वारा कल्याण-डोंबिवली में पार्षद अमनोल म्हात्रे और पूर्व पार्षद महेश पाटिल, सुनीता पाटिल और सायली विचारे सहित कई शिवसेना नेताओं को भाजपा में शामिल करने के एक दिन बाद आया है। कल्याण-डोंबिवली एकनाथ शिंदे के बेटे और कल्याण-डोंबिवली से सांसद श्रीकांत शिंदे का संसदीय क्षेत्र है। चव्हाण ने नेताओं का पार्टी में आए हुए नेताओं का स्वागत करते हुए कहा, “मेरे सभी दोस्तों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फडणवीस के नेतृत्व में विश्वास दिखाया है और बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया है, जिसने हमेशा हिंदुत्व को बरकरार रखा है।”

श्रीकांत शिंदे को लेकर बीजेपी में था विरोध

कल्याण-डोंबिवली में बीजेपी और शिवसेना के बीच तनाव की शुरुआत पिछले साल के लोकसभा चुनावों से हुई थी, जब चव्हाण सहित स्थानीय भाजपा नेताओं ने इस सीट से श्रीकांत की उम्मीदवारी का विरोध किया था जिसके बाद स्थिति को देखते हुए फडणवीस को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

भाजपा द्वारा अपने नेताओं को पार्टी में शामिल करने का कदम शिवसेना को रास नहीं आया है। शिंदे के करीबी सहयोगी और शिवसेना के मंत्री संजय शिरसाट ने कहा, “हम समन्वय की बात करते हैं। कुछ मानदंड होने चाहिए जिनका हर गठबंधन सहयोगी को पालन करना चाहिए।”

एक अन्य शिवसेना मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यदि भाजपा गठबंधन सहयोगियों को कमजोर करना चाहती है, तो हमें विकल्प तलाशने पर मजबूर होना पड़ेगा।”

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भाजपा-शिवसेना के बीच यह ताजा टकराव दोनों दलों के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव के बाद आया है। शिंदे की आपत्तियों के बावजूद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को बालासाहेब ठाकरे स्मारक समिति का अध्यक्ष फिर से नियुक्त करने के फडणवीस के फैसले और आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए शिंदे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी गणेश नाइक को नवी मुंबई और ठाणे का प्रभारी नियुक्त करने के भाजपा के कदम ने उनके संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया है।

भाजपा की दूसरी सहयोगी, अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा भी पिछले महीने उस समय नाराज हो गई थी जब भाजपा ने उसके पूर्व विधायकों राजन पाटिल और यशवंत माने को पार्टी में शामिल कर लिया था। भाजपा सूत्रों ने बताया कि ये “दलबदल” पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर में पैर जमाने के इरादे से रचे गए थे, जिसे राकांपा का गढ़ माना जाता है और साथ ही स्थानीय निकाय चुनावों के लिए पार्टी को मज़बूत करने के लिए भी किया गया था।

साप्ताहिक कैबिनेट में शामिल नहीं हुए थे शिंदे गुट के मंत्री

बीजेपी के एक सीनियर नेता ने इस मामले पर कहा, “कहावत है कि प्यार और जंग में सब जायज है। यह बात चुनावों पर भी लागू होती है। स्थानीय निकाय चुनावों से पहले एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाना आम बात है। इसके अलावा, पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और हाल ही में हुए बिहार चुनाव में भाजपा की सफलता के बाद नेता भाजपा में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं।”

यह मंगलवार को तब सामने आया जब शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे को छोड़कर पार्टी के सभी मंत्री साप्ताहिक कैबिनेट बैठक में शामिल नहीं हुए। इसके बजाय उन्होंने बाद में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और राज्य भाजपा प्रमुख रवींद्र चव्हाण द्वारा उनके नेताओं को पार्टी से अलग करने के “आक्रामक प्रयास” की शिकायत की।