महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी टूटने की कगार पर है। माना जा रहा है कि शिवसेना (UBT) पुणे निकाय चुनाव अकेले लड़े। हालांकि, कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) गठबंधन जारी रखने की इच्छुक हैं। शिवसेना (UBT) की पुणे इकाई के प्रमुख गजानन थरकुडे ने कहा, “मुंबई में निकाय चुनाव अकेले लड़ने की मांग जोर पकड़ रही है। पुणे इकाई भी चाहती है कि यहां भी ऐसा ही हो और वह इसकी मांग करेगी।”

पुणे नगर निगम (Pune Municipal Corporation)  के चुनाव आखिरी बार 2017 में हुए थे। नई सरकार के जल्द ही शपथ लेने के साथ लंबे समय से विलंबित निकाय चुनाव अगले कुछ दिनों में होने की संभावना है। थरकुडे ने बताया कि भाजपा ने पुणे में शिवसेना (UBT) के गढ़ रहे इलाकों पर पहले ही कब्ज़ा कर लिया है। उन्होंने कहा, “आगामी निकाय चुनाव सीटें जीतने के बारे में नहीं होने चाहिए, बल्कि यह बेहतर भविष्य के लिए स्थानीय स्तर पर संगठन को फिर से सक्रिय करने का मौका है।”

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शिवसेना पुणे इकाई के प्रमुख गजानन थरकुडे की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब 152 सदस्यों वाली पुणे नगर निगम (Pune Municipal Corporation) में अविभाजित शिवसेना के 12 सदस्य हैं। नगर निकाय में मुख्य संघर्ष भाजपा और एनसीपी के बीच रहा है। 2017 में भाजपा पहली बार एनसीपी-कांग्रेस शासन को हटाकर PMC में सत्ता में आई थी। एनसीपी मुख्य विपक्षी दल थी। उसके बाद से कोई नगर निकाय चुनाव नहीं हुआ है, लेकिन अगले चुनाव में एनसीपी के दोनों गुटों को नुकसान होने की संभावना है।

एमवीए के लिए राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 31 सीटें जीतना बढ़ी उपलब्धि थी। लेकिन विधानसभा चुनावों में उसे केवल 46 सीटें ही मिलीं। हालांकि, खराब प्रदर्शन के बावजूद पुणे एनसीपी (एसपी) प्रमुख प्रशांत जगताप ने कहा कि उनका मानना ​​है कि कांग्रेस, एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) को एमवीए के रूप में पीएमसी चुनाव लड़ना चाहिए। जगताप ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि सत्ताधारी दल सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। उनके गलत रुख के कारण नगर निगम चुनाव भी दो साल तक टल गए।” जगताप ने कहा, “शिवसेना (यूबीटी) नेताओं की राय अलग हो सकती है। मेरा मानना ​​है कि हमें एकजुट होकर गलत राजनीतिक दलों को नगर निकाय में सत्ता में आने से रोकना चाहिए।”

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पुणे कांग्रेस प्रमुख अरविंद शिंदे ने कहा कि वर्तमान राजनीति की वास्तविकता को स्वीकार करने और भाजपा तथा उसके गठबंधन सहयोगियों के लिए एक मजबूत दावेदार के रूप में उभरने का समय आ गया है। उन्होंने कहा, “पार्टी नेतृत्व ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव पूर्व गठबंधन किया और गठबंधन सहयोगियों के पार्टी कैडर को एक साथ लाकर प्रचार करने के लिए कहा। अलग-अलग जाने का मतलब होगा कि एक ही कैडर एक-दूसरे के खिलाफ लड़ेगा। इससे प्रतिद्वंद्वियों को फायदा होगा।”

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