Maharashtra Explained: महाराष्ट्र ‘महा’ युद्ध के लिए तैयार है। राज्य में 20 नवंबर को एक ही चरण में 288 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। जमीनी स्तर यहां लड़ाई सत्तारूढ़ महायुति और महा विकास अघाड़ी (MVA) के बीच है। महायुति में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) शामिल हैं। दूसरी तरफ एमवीए में उद्धव ठाकरे की शिवसेना,कांग्रेस और शरद पवार की राकांपा हैं।

हालांकि, महाराष्ट्र की लड़ाई इतनी सरल नहीं है। क्योंकि मतदाता 288 विधानसभा सीटों पर अपने प्रतिनिधियों का फैसला करेंगे। ऐसे में राजनेता अपनी प्रतिष्ठा, विरासत और लोकप्रियता के तरकश से सभी तीरों का प्रयोग इस युद्ध के मैदान में कर रहे हैं। इस ‘महा’ युद्ध के भीतर कई छोटी-छोटी लड़ाइयां हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया सकता है। अगर आप भी इस बात को लेकर संशय में हैं कि असली सेना कौन है? चाचा-बनाम भतीजे की लड़ाई और भी बहुत कुछ तो आपको इस स्टोरी को ध्यान से पढ़ना और समझना होगा।

दो गुटों की कहानी – महायुति बनाम एमवीए

राज्य स्तर पर सत्तारूढ़ महायुति और एमवीए अगली सरकार बनाने के लिए विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों गठबंधनों में तीन प्रमुख दल भी हैं। दोनों पक्षों के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाना था, जो आखिरी समय तक तय नहीं हो पाया। सभी नामांकन पत्र दाखिल होने के बाद ही स्थिति साफ हो सकी।

महायुति में भाजपा को सबसे बड़ी हिस्सेदारी मिली है और वह कुल 288 सीटों में से 149 पर चुनाव लड़ रही है। सीएम शिंदे की सेना 81 सीटों पर और अजित पवार की एनसीपी 56 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं, एमवीए में कांग्रेस को 101, उद्धव ठाकरे की सेना को 94 और शरद पवार की एनसीपी को 85 सीटें मिली हैं। जबकि, एमवीए में शामिल अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया ने क्रमश: नौ और चार-चार उम्मीदवार उतारे हैं।

शिवसेना बनाम शिवसेना

महाराष्ट्र की लड़ाई में सबसे बड़ी जंग विरासत की है, जिसमें बाला साहेब ठाकरे की विरासत दांव पर लगी है। एकनाथ शिंदे के उद्धव से अलग होने के बाद बाला साहेब ठाकरे की पार्टी शिवसेना दो गुटों में विभाजित हो गई थी। इसे बेहतर समझने के लिए, आइए एक कदम पीछे चलते हैं।

2019 में पिछले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के नेतृत्व वाले यूपीए के खिलाफ एनडीए के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ा था। भाजपा-शिवसेना के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 288 सीटों वाली विधानसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। हालांकि, मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेद सामने आए। केवल 56 सीटें होने के बावजूद शिवसेना ने बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र का शीर्ष नेता नियुक्त करने पर जोर दिया। 105 सीटें जीतने वाली भाजपा देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने पर अड़ी रही।

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इस घटनाक्रम से कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को फायदा हुआ, क्योंकि शिवसेना ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) बनाने के लिए उनके साथ मिलकर एक अप्रत्याशित राजनीतिक बदलाव किया। नवंबर 2019 तक महाराष्ट्र में एमवीए सरकार का गठन हुआ, जिसमें शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री का पद संभाला।

जून 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत

जून 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत

जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना विधायकों के एक वर्ग का नेतृत्व कर तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विभाजन के बाद, शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाई और उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला। अब हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे के नेतृत्व वाली सेना को असली सेना घोषित करने के महाराष्ट्र स्पीकर के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाना बाकी है, लेकिन दोनों गुट पार्टी की पहचान के लिए आगामी चुनावों में लड़ेंगे। इनमें से 41 विधायक शिंदे गुट में शामिल हो गए और 15 उद्धव ठाकरे के साथ रहे।

चाचा बनाम भतीजा

शिवसेना की लड़ाई की तरह महाराष्ट्र के युद्ध के मैदान में एनसीपी बनाम एनसीपी मुकाबला देखने को मिल रहा है। सीनियर पवार और जूनियर पवार की प्रतिष्ठा की लड़ाई है। शिवसेना की तरह महाराष्ट्र में एक और पार्टी एनसीपी का विभाजन हुआ, जिसने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को और ज्यादा बदल दिया।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) 1999 में एक महत्वपूर्ण विभाजन के बाद उभरी जब शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी की नेतृत्व साख को चुनौती दी, जो उस समय कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कर रही थीं। कांग्रेस और सोनिया गांधी के नेतृत्व के खिलाफ अपने शुरुआती रुख के बावजूद, एनसीपी ने बाद में अपनी स्थिति संशोधित की और 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा बन गई।

एमवीए गठबंधन के हिस्से के रूप में पार्टी ने महाराष्ट्र के सीएम के रूप में उद्धव ठाकरे का समर्थन किया। वरिष्ठ राजनेता शरद पवार ने लगभग 15 विधायकों का समर्थन बरकरार रखा। इन संख्याओं के आधार पर चुनाव आयोग ने आधिकारिक तौर पर अजीत पवार के नेतृत्व वाले गुट को ‘असली’ एनसीपी के रूप में मान्यता दी।

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2019 के विधानसभा चुनावों में अविभाजित एनसीपी ने 53 सीटें जीती थीं। अब, एनसीपी के दोनों गुट राज्य भर में 36 सीटों पर सीधी लड़ाई में हैं। इस बीच, अपने चाचा शरद पवार से अलग हुए अजीत पवार अब विधानसभा चुनाव में अपने भतीजे युगेंद्र पवार के साथ सीधे मुकाबले में हैं। युगेंद्र को शरद पवार ने सात बार के विधायक अजित पवार के खिलाफ बारामती से मैदान में उतारा था।

इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनाव में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा को बारामती लोकसभा सीट से 1,58,333 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। अजित ने शरद पवार पर परिवार में फूट डालने और राजनीति को निम्न स्तर पर ले जाने का आरोप लगाया है।

भाजपा बनाम कांग्रेस

दोनों राष्ट्रीय दलों, भाजपा और कांग्रेस को अपने-अपने गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। महायुति के हिस्से के रूप में भाजपा ने 149 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं और कांग्रेस, एमवीए के हिस्से के रूप में है। जो 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें से दोनों पार्टियां 75 सीटों पर सीधे मुकाबले में हैं, जो ज्यादातर विदर्भ क्षेत्र में हैं। गढ़चिरौली के नक्सल प्रभावित क्षेत्र से लेकर नागपुर तक, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वैचारिक नींव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय है। यह क्षेत्र राज्य के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य का मूल प्रतिनिधित्व करता है। 2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा 66 सीटों पर सीधी लड़ाई में थीं, जिनमें से कांग्रेस केवल 16 पर जीत हासिल करने में सफल रही।

जीत या हार की लड़ाई: कौन जीतेगा?

2024 के लोकसभा चुनावों ने महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया, क्योंकि हाल ही में सत्ता में हुए फेरबदल के बाद यह पहला चुनाव था। महायुति ने केवल 17 सीटें जीतीं।

कांग्रेस ने कुल 48 निर्वाचन क्षेत्रों में से 13 पर जीत हासिल करते हुए सबसे अधिक सीटें हासिल कीं। शिवसेना-यूबीटी और भाजपा दोनों को 9-9 सीटों के साथ बराबर प्रतिनिधित्व मिला, जबकि शरद पवार की एनसीपी 8 निर्वाचन क्षेत्र जीतने में सफल रही।

ऐसे में अब सभी की निगाहें 20 नवंबर को होने वाले 288 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले मुकाबले पर टिकी हैं। महाराष्ट्र में सत्ता किसके पास होगी महायुति या एमवीए यह 23 नवंबर को ही पता चल जाएगा। चुनाव आयोग ने भले ही तय कर दिया हो कि असली सेना और एनसीपी कौन हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता असली शिवसेना और एनसीपी किसे मानते हैं।