Maharashtra Assembly Elections Result: भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली महायुति ने 2024 के विधानसभा चुनावों में बंपर जीत हासिल की है। महायुति ने 288 सीटों में से 230 सीटें जीतकर महाविकास अघाड़ी को करारी शिकस्त दी है। लेकिन कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी शरद पवार की एनसीपी से मिलकर बनी एमवीए ने ऐसा प्रदर्शन किया कि वह अब महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद भी मांगने के काबिल नहीं रही है।
अब एमवीए के हार के कारणों की बात करें तो पूरे महाराष्ट्र में एक भी नेता की भूमिका ना होना, नेता अपने बदले की भावना पर बहुत ज्यादा निर्भर थे और वोटर्स को एक सकारात्मक नजरिया नहीं दे की वजह से एमवीए की महाराष्ट्र में हार हुई। विपक्ष को हुए नुकसान की सीमा इतनी है कि महाराष्ट्र विधानसभा में अगले पांच सालों तक विपक्ष का नेता नहीं हो सकता है क्योंकि कोई भी दल इस पद पर दावा करने के लिए जरूरी 288 सीटों की संख्या के 10 फीसदी सीट शेयर तक पहुंचने में कामयाब नहीं हुआ है।
इतनी बुरी हार ने राज्य में महाविकास अघाड़ी के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे बुरी हार कांग्रेस पार्टी की हुई है। पार्टी की महाराष्ट्र के गठन के बाद में सबसे कम सीटें आई हैं। कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को अपने-अपने गढ़ों में हार का मुंह देखना पड़ा है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने भाषणों में बीजेपी द्वारा संविधान बदलने और जाति जनगणना कराने की कोशिश के पुराने ही दांव पेंच चले थे। एमवीए ने जो पांच गारंटी दी थी, उनमें हिला लाभार्थियों को 1,500 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये करना शामिल था।
बड़े-बड़े दिग्गज नेता अपने गढ़ों में हारे
लोकसभा चुनाव में सत्ता के विकेंद्रीकरण ने कांग्रेस को काफी फायदा दिया था। वह विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से उलटा पड़ता हुआ दिखा है। बालासाहेब थोराट और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण जैसे वरिष्ठ नेता अपने-अपने गढ़ों में हार गए, जबकि कोल्हापुर से सतेज पाटिल, लातूर से अमित देशमुख, नागपुर से सुनील केदार और अमरावती से यशोमति ठाकुर जैसे होनहार दूसरे दर्जे के नेता अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जीतने में नाकामयाब साबित हुए। इससे पार्टी की सीटों की संख्या घटकर 15 रह गई। यह राज्य के गठन के बाद सबसे कम हैं।
Maharashtra Election Results 2024
यह भी कुछ अहम कारण
इसके कुछ कारण महाराष्ट्र कांग्रेस चीफ नाना पटोले का शिवसेना यूबीटी के साथ में गैरजरूरी झगड़ा, पार्टी नेताओं को साथ लेकर चलने में असमर्थता और लोकसभा इलेक्शन की जीत के बाद सार्वजनिक तौर पर शेखी बघारना वोटर्स के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को भी रास नहीं आया। शरद पवार ने पूरे राज्य में काफी मजबूती के साथ में अभियान चलाया था, लेकिन पार्टी में दूसरे दर्जे के नेतृत्व की कमी ने एनसीपी (SP) की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया। मराठा-प्रभुत्व वाली पार्टी होने के टैग ने पार्टी की संभावनाओं को काफी नुकसान पहुंचाया। यह सभी समुदायों से वोट हासिल करने में नाकामयाब साबित हुए।
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शरद पवार ने राज्य में किया जमकर प्रचार
तीन महीने पहले वरिष्ठ नेता ने मौजूदा सरकार को बदलने का आह्वान किया था। शरद पवार ने राज्य में एनसीपी (SP) खूब जमकर प्रचार अभियान किया था। फिर भी वह जमीन पर समर्थन हासिल करने में नाकाफी साबित हुए। पार्टी मराठा पार्टी का टैग मिटाने में भी विफल रही और मराठों के लिए ओबीसी का दर्जा मांगने वाले कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल के आंदोलन के मद्देनजर गैर-मराठा पार्टी के खिलाफ एकजुट हो गए।
विधायी ताकत कम होने की वजह से विपक्षी एमवीए के सदन के अंदर कोई असर छोड़ने के आसार नहीं है और अब उसके पास जमीन पर खुद को फिर से मजबूत करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। कांग्रेस और एनसीपी-एसपी दोनों को पार्टी को मजबूत करने के लिए अपने-अपने राज्य नेतृत्व पर ज्यादा फोकस करना होगा।
उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने पूरे राज्य में खूब प्रचार किया और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया। यह वोटर्स पर ज्यादा असर डालने में कामयाब नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि पार्टी की रणनीति एमवीए के साथ मिलकर सत्तारूढ़ से मुकाबला करने में विफल रही।
शिवसेना यूबीटी को भी हुआ काफी नुकसान
शिवसेना यूबीटी भारतीय जनता पार्टी और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की वोट जिहाद की कहानी का मुकाबला करने में भी नाकामयाब साबित हुई। वह लोकसभा इलेक्शन के दौरान पैदा हुई सहानुभूति की लहर को जारी रखने में भी सफल नहीं हो पाई। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कुछ विधायकों के साथ में एनडीए में जाकर मिल गए थे। इससे शिवसेना-यूबीटी ने 40 विधायक और 15 सांसद खो दिए थे, इसलिए पार्टी के पास चुनाव में उतारने के लिए कोई मजबूत चेहरा नहीं था और उसे या तो नए चेहरों को टिकट देना पड़ा या फिर दलबदलुओं को चुनावी मैदान में उतारना पड़ा। लोकसभा चुनावों के दौरान सेना यूबीटी की सीटों की संख्या में कमी आई, जबकि इसके अन्य गठबंधन सहयोगियों ने बेहतर प्रदर्शन किया। ऐसा लगता है कि सेना यूबीटी ने विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति में कोई सुधार नहीं किया और उसके पास चुनाव में उतारने के लिए मजबूत उम्मीदवार भी नहीं थे।
उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना ने न केवल राज्य की राजनीति में बल्कि विपक्षी खेमे में भी अपनी जमीन खो दी है। हालांकि, मुंबई में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जहां उसने महाराष्ट्र भर में जीती गई 20 सीटों में से 10 पर जीत हासिल की है। पार्टी के पास बीएमसी नगर निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने का मौका है, ताकि वह अपनी खोई जमीन वापस पा सके और अपना आधार फिर से बना सके।