एनसीपी का संकट महाराष्ट्र की राजनीति में कई बड़े नाटकीय मोड़ लाने वाला साबित हुआ है। अजित पवार सिर्फ एनसीपी में दो फाड़ नहीं किए हैं, बल्कि पूरी महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर बदल कर रख दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि अजित के एक फैसले ने शरद पवार की नींद उड़ाई है, दूसरी तरफ शिंदे गुट में खलबली मच गई है और बीजेपी भी अपनी आगे की रणनीति पर काम करने लगी है। यानी कि एक फैसले ने हर जगह अपना प्रभाव छोड़ा है।
शक्ति प्रदर्शन का खेल, कौन पास कौन फेल
अब महाराष्ट्र के इस सबसे बड़े सियासी भूचाल में बुधवार का दिन काफी अहम रहा। इसे शक्ति प्रदर्शन वाला बुधवार भी कह सकते हैं क्योंकि दोनों अजित और शरद पवार ने अपने-अपने दावों का एक रिपोर्ट कार्ड पेश किया है। शुरुआती आंकड़ों को ही आधार माना जाए तो इस मामले में अजित पवार पास हो गए हैं, वहीं शरद पवार फेल माने जाएंगे। असल में देखना सिर्फ ये था कि क्या अजित पवार अपने साथ बैठक में 36 विधायकों का आंकड़ा जुटा पाते हैं या नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर NCP के 53 में से 36 विधायक अजित के साथ आ जाते तो इसे दो दिहाई वाली दो फाड़ माना जाता और दल-बदल कानून भी उन पर लागू नहीं होता।
अब खबरें बताती हैं कि 32 विधायक अजित के साथ बुधवार को मौजूद रहे, यानी कि 36 से चार कम। वहीं शरद पवार के खेमे वाली बैठक में 18 विधायक पहुंचे। ये आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि अजित पवार ने 2019 वाली गलती से काफी कुछ सीखा है। इस बार उन्होंने बगावत जरूर की है, लेकिन समर्थन जुटाने के बाद। दावा जरूर वे 40 से ज्यादा विधायकों का कर रहे थे, लेकिन 32 तक पहुंचना भी बताता है कि उन्होंने चाचा शरद पावर को बड़ी सियासी चोट दे दी है।
अध्यक्ष की कुर्सी पर अजित, चाचा को संदेश
अब अजित ने पहले तो सिर्फ बगावत की, लेकिन बुधवार को ऐलान कर दिया कि वे अब से एनसीपी के नए अध्यक्ष होने वाले हैं। उन्होंने एक झटके में शरद पवार की छुट्टी कर दी। ये अलग बात है कि शरद खेमा इस फैसले को खारिज कर रहा है, लेकिन नंबर गेम ऐसा चल रहा है कि अजित के इस दांव को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा है कि शरद पवार को अब आशीर्वाद देना चाहिए, 80 से ज्यादा उनकी उम्र हो चुकी है, ऐसे में रिटायरमेंट ले लेना चाहिए।
ये बयान बताने के लिए काफी है कि अजित अपने चाचा शरद पवार का चेहरा तो इस्तेमाल करना चाहते हैं, लेकिन वे उन्हें सक्रिय राजनीति में नहीं देखना चाहते। अब एक तरफ अजित आक्रमक दिखाई पड़े तो वहीं दूसरी तरफ शरद पवार का शक्ति प्रदर्शन कुछ फीका साबित हुआ। सबसे पहले तो उनके साथ पर्याप्त विधायकों का समर्थन ही नहीं रहा, इसके ऊपर जब उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि अजित अगर नाराज थे तो बात करनी चाहिए, इस बयान ने बता दिया कि तीन दिनों के घटनाक्रम ने शरद पवार को आक्रमक से नरम वाले मोड में ला दिया है।
नरम पड़ते पवार, प्लान बी को लेकर दिल्ली में मंथन
शरद पवार ने अपने संबोधन में कहा कि जो शिवसेना के साथ हुआ वही एनसीपी के साथ हुआ। मन में कोई बात थी तो अजित मुझसे बात कर सकते थे। उनकी बात सुनकर अफसोस हुआ। पीएम ने भोपाल में एनसीपी पर आरोप लगाए थे कि एनसीपी ने भ्रष्टाचार किया है। एनसीपी भ्रष्ट पार्टी है तो सरकार में क्यों शामिल किया। लोकतंत्र बचाने के लिए संवाद जरूरी है। गलती को सुधारना हमारा काम है। पीएम ने कहा था कि सरकार चलाना पवार साहब से सीखा है।
अब शरद पवार के संबोधन को डीकोड किया जाए तो साफ पता चलता है कि वे इस बात से ज्यादा दुखी हैं कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने अपनी तुलना शिवसेना से भी कर डाली, यानी कि अजित के एक खेल ने उनका दिल तो दुखाया है। इस बीच कल दिल्ली में दोपहर तीन बजे शरद पवार अपने एनसीपी खेमे की एक और बड़ी बैठक करने वाले हैं। ये राष्ट्रीयकारिणी की बैठक है, ऐसे में माना जा रहा है कि किसी प्लान बी पर काम किया जा सकता है।
चुनाव आयोग में दो अर्जी, दो मांगे, किसकी जीत?
वैसे प्लान बी तो बाद में सामने आएगा, लेकिन दोनों अजित और शरद पवार का गुट चुनाव आयोग तक अपनी अर्जी पहुंचा चुका है। एक तरफ अजित पवार के खेमे ने एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर दावा ठोका है तो वहीं दूसरी तरफ शरद पवार की तरफ से जयंत पाटिल ने अर्जी दाखिल कर अजित गुट के 9 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की। अभी के लिए चुनाव आयोग ने सिर्फ इतना कहा है कि दोनों ही गुटों के दस्तावेजों को समझा जा रहा है और बाद में फैसला लिया जाएगा।
अब चुनाव आयोग का फैसला किन बातों पर आधारित रहने वाला है, ये समझना जरूरी है। अगर शिवसेना वाले मामले से समझने की कोशिश करें तो जिस गुट के पास बहुमत होगा, उसे ही जीत मिलने वाली है। वर्तमान में शिदे वाली जगह पर अजित पवार खड़े हैं, नंबर भी ठीक-ठाक मौजूद हैं, यानी कि चाचा की तुलना में ज्यादा मजबूत स्थिति में माने जा सकते हैं।
अजित की बगातन ने शिंदे की उड़ाई नींद
वैसे इस समय एनसीपी संकट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की चिंता बढ़ा रखी है। उनका चिंता में आना लाजिमी भी है क्योंकि जिस अजित पवार से वे सभी महा विकास अघाड़ी सरकार के दौरान परेशान चल रहे थे, अब पाला बदलकर वे एनडीए में आ गए हैं। असल में एमवीए सरकार के दौरान अजित के पास वित्त मंत्रालय था, तब शिंदे समर्थक विधायक आरोप लगाते थे कि उन्हें समय रहते अपने क्षेत्र में विकास करने के लिए फंड्स नहीं मिलते। उन्हीं सब बातों से परेशान होकर तब बगावत की गई थी। लेकिन अब अजित की बगावत ने शिंदे गुट के विधायकों को असहज कर दिया है।
पार्टी नेता मीडिया के सामने आकर कह रहे हैं कि अजित के आने से कई विधायक खफा हैं। स्थिति को एकनाथ शिंदे भी समझ रहे हैं, इसी वजह से उन्होंने अपने विधायकों की एक अहम बैठक भी बुलाई। अब पता चले कि अजित के बाद क्लाइमेक्स में शिंदे गुट की तरफ से भी कोई बड़ा खेल ना कर दिया जाए। यानी कि असमंजस का माहौल है, लगातार ट्विस्ट एंड टर्नस देखने को मिल रहे हैं और दावों की बाजीगिरी हो रही है।