CAA NRC NPR Protest: महाराष्ट्र के परभणी जिले में भाजपा शासित सेलू नगर परिषद ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (NRC) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) के क्रिर्यान्वयन के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है। पार्षद रहीम शेख द्वारा पेश किया गया यह प्रस्ताव 28 फरवरी को 28 सदस्यीय सदन द्वारा पारित किया गया। इस दौरान शिवसेना के दो पार्षद मतदान में शामिल नहीं हुए थे।

सेलू नगर परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया है, “इन कानूनों के तहत भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है और यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के लिए एक खतरा है। लोगों को नागरिकता साबित करने के लिए नए कानून के तहत कई सारे दस्तावेज देने होंगे। इससे बड़ी संख्या में नागरिकों की नागरिकता खतरे में पड़ गई है और लोगों के बीच डर पैदा हो गया है। इन कारणों से महाराष्ट्र सरकार को राज्य में इन कानूनों को लागू करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।”

दिलचस्प बात यह है कि चेयरमैन विनोद बोरडे सहित 17 पार्षद राज्य चुनावों के दौरान अगस्त 2019 में भाजपा में शामिल हुए थे। सभी 17 को जनशक्ति विकास अगाड़ी के बैनर तले 2017 में परिषद के लिए चुना गया था। हालांकि 2019 में यह समूह तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हो गया था। बोरेड को जिंटूर-सेलू मेघना बोरदीकर के भाजपा विधायक के करीबी के रूप में जाना जाता है।

इस पूरे मामले पर पार्षद रहीम शेख ने कहा, “ये नए कदम (कानून) भेदभावपूर्ण हैं और समाज के अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों निशाना बनाते हैं। परिषद में मेरे अधिकांश साथी इस सच्चाई से सहमत थे कि यह भेदभावपूर्ण था और यही कारण है कि उन्होंने भाजपा से जुड़े होने के बावजूद प्रस्ताव का समर्थन किया है।”

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, बोराडे ने कहा कि उन्होंने प्रस्ताव के पारित होने के दो दिन पहले एक बैठक बुलाई थी जिसकी मांग राकांपा, कांग्रेस के सदस्यों और मुस्लिम समुदाय के सात पार्षदों ने की थी। प्रस्ताव 28 फरवरी को बिना किसी विरोध के बहुमत से पारित किया गया। स्थानीय जन प्रतिनिधि ऐसे कदम के पक्ष में थे।

सीएए पिछले वर्ष दिसम्बर में संसद में पारित हुआ था। इसमें 31 दिसम्बर, 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आकर भारत में बसे गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इस नये नागरिकता कानून के खिलाफ तब से ही देश के कई हिस्सों में विरोध जारी है जबकि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा स्पष्ट कर चुकी है कि इससे किसी की नागरिकता नहीं जाएगी।