Independence Day: भारत को साल 1947 में आजादी मिली थी। जब आजादी मिली तो उस समय करीब 17 प्रांत और 550 से ज्यादा रियासतें थी। स्वतंत्रता के बाद में भारत का एकीकरण किया गया तो ज्यादातर रियासतें तो आसानी से भारत के साथ आने के लिए तैयार हो गए थे, लेकिन कुछ को विलय करवाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। इन सभी में एक खास बात यह थी कि अगर किसी ने विलय होने में ज्यादा दिक्कतें खड़ी की तो उसमें महाराजा हनवंत सिंह का नाम नंबर एक पर आता है।
महाराजा हनवंत सिंह भारत के मुकाबले पाकिस्तान के साथ में जाना चाहते थे। इससे देश के सियासी हलकों में भी चिंता पैदा हो गई थी। जोधपुर के इतिहासकारों का कहना है कि महाराजा हनवंत सिंह एक राजा तो थे ही इसके साथ-साथ वह एक चतुर रणनीतिकार भी थे। उनका एकमात्र यही टारगेट था कि जोधपुर को स्पेशल स्टेट का दर्ज दिया जाए। इसके लिए उन्होंने काफी सारी मांगें रखी थीं। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि अगर उनकी मांगो को नहीं माना गया तो वह पाकिस्तान के साथ में चले जाएंगे। हालांकि, वे पहले से ही तय कर चुके थे कि वह भारत का ही साथ देंगे। ऐसा इस वजह से कहा जा रहा है कि उनके पिता महाराज उम्मेद सिंह यह फैसला पहले ही कह चुके थे कि वह भारत में ही रहेंगे।
जिन्ना ने दिया था ऑफर
महाराज उम्मेद सिंह के मरने के बाद रिसायत की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी। हनवंत सिंह को पाकिस्तान के जिन्ना की तरफ से ऑफर मिला था कि वह उनकी सभी शर्तों को मानने के लिए बिल्कुल तैयार हैं और खाली पेपर पर अपने साइन देने के लिए भी पूरी तरह से राजी हैं। हनवंत सिंह की जिन्ना से मुलाकात दिल्ली में हुई थी। इसमें एक संयोग यह भी था कि सरदार पटेल के सबसे भरोसेमंद वीपी मेनन भी महाराजा हनवंत सिंह से मिले। उनको इस बात का पता चल गया था कि हनवंत सिंह मोहम्मद अली जिन्ना से मिल चुके हैं।
क्या थी जोधपुर के महाराज की मांग
अब वहीं जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह की मांग की बात की जाए तो वह चतुर रणनीतिकार के तौर पर जाने जाते थे। वह यह चाहते थे कि राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए। इसकी एक खास वजह भी थी। भारत सरकार ने उस समय कहा था कि जिस रियासत की दस लाख जनसंख्या हो तो वे एक अलग यूनिट बना सकते हैं। मारवाड़ की जनसंख्या भी करीब-करीब इतनी ही थी। हनवंत सिंह ने मौके का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान में शामिल होने का केवल दिखावा किया।
मुस्लिम देश में शामिल होने की परेशानियों पर हनवंत सिंह ने की चर्चा
औंकार सिंह बाबरा ने अपनी किताब में इस बात को भी बताया है कि मेनन भी हनवंत सिंह की शर्तों को मानने के लिए राजी हो गए थे। महाराज हनवंत सिंह ने जो भी रियायतें बताई थीं, उनको लेकर मेनन ने कहा था कि अगर आप सिर्फ और सिर्फ साइन से खुश हो जाएंगे तो मुझको किसी भी तरह की कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन आप जो चाहते हैं वह बिल्कुल भी नहीं हो सकता है। उस वक्त महाराजा ने जिन्ना के साथ में मुलाकात का राज खोल दिया। उन्होंने कहा कि मुझे जिन्ना की तरफ से खाली पेपर मिल रहे हैं। उस समय मेनन ने जवाब देते हुए कहा कि आप को वहां से धोखा मिलेगा।
महाराजा हनवंत सिंह और जैसलमेर के महाराज तीन दिन के लिए जोधपुर आए। मुस्लिम देश में शामिल होने की परेशानियों पर भी उन दोनों ने चर्चा की। उन्होंने गहनता के साथ में विचार किया कि पाकिस्तान में मुस्लिमों की आबादी के बीच हिंदू आबादी वाली रियासत का जाना कितना सही होगा। हालांकि, फिर हनवंत सिंह भारत में शामिल होने के लिए राजी हो गए और उन्होंने पेपर पर साइन भी कर दिए।