मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक जज ने ट्रायल कोर्ट को लेकर टिप्पणी की थी। इसके बाद हाई कोर्ट के दो जजों की एक पीठ ने निचली अदालत के न्यायाधीश के खिलाफ की गई टिप्पणी ‘निंदा करने वाली’ और ‘अनुचित’ करार दिया। जस्टिस अतुल श्रीधरन और प्रदीप मित्तल की पीठ ने 12 सितंबर को ग्वालियर पीठ के जस्टिस राजेश कुमार गुप्ता द्वारा पारित निर्देशों का स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विवेक शर्मा एक अभियुक्त के खिलाफ आरोप हटाने के पीछे ‘छिपे हुए इरादे’ रखते नजर आ रहे हैं।
निचली अदालत के जज ने क्या कहा था?
जस्टिस राजेश गुप्ता ने कहा था, “ऐसा प्रतीत होता है कि प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश का आवेदक के खिलाफ केवल आईपीसी की धारा 406 के तहत आरोप लगाने का कोई छिपा हुआ मकसद है ताकि उसे अनुचित लाभ मिल सके जिससे आवेदक जमानत का लाभ उठा सके।” जस्टिस गुप्ता ने भूमि अधिग्रहण अधिकारी के कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर रूप सिंह परिहार की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद यह टिप्पणी की थी।
जमानत याचिका पिछले साल दर्ज एक मामले में दायर की गई थी, जिसमें भूमि अधिग्रहण के एक मामले में रूप परिहार और उनकी पत्नी समेत आठ लोगों को 25 लाख रुपये से ज़्यादा की राशि ट्रांसफर करने में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था। रूप सिंह परिहार पर कलेक्टर के आदेश में जालसाज़ी करने का आरोप था।
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सोमवार को हाई कोर्ट ने कहा कि जस्टिस गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सुसंगत क़ानून के बिल्कुल विपरीत, निचली अदालत के ख़िलाफ़ निंदनीय और अपमानजनक टिप्पणियां कीं। पीठ ने सोमवार को कहा, “उच्च न्यायालयों को ऐसी टिप्पणियां करने से बचना चाहिए जिनसे निचली अदालत के न्यायाधीश की छवि धूमिल हो, यहां तक कि उन्हें अपने आदेश का बचाव करने का अवसर भी न मिले।”
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
हाई कोर्ट ने कहा, “दुर्भाग्य से यह बिल्कुल अनुचित था और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय को न्यायिक आदेशों में ऐसी टिप्पणियों से बचने के दिए गए निरंतर निर्देश का उल्लंघन है। जब उच्च न्यायालय किसी मामले में अपने विवेक और अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है, तो उसे उच्च न्यायालय की ओर से एक गलती माना जाना चाहिए, न कि उसे अपने असाधारण या अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में दिया गया आदेश माना जाना चाहिए।” हाई कोर्ट ने मामले में प्रतिवादियों को 10 दिनों के भीतर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, “चूंकि यह आदेश विरोधात्मक रूप से पारित नहीं किया गया है और इस आदेश के कारण उच्च न्यायालय को कोई प्रतिकूलता नहीं हुई है, इसलिए नोटिस जारी करने और उच्च न्यायालय से जवाब मांगने की आवश्यकता खत्म हो जाती है।”