सरस्वती रमेश

आजकल कई बार ऐसा लगता है कि मानवीय संवेदनाओं का सबसे सुंदर माने जाने वाला अहसास प्रेम अब कई बार प्रेम नहीं रहता, मानो जान लेने का हथियार बन जाता है। ऐसा कहना अतिश्योक्ति हो सकती है, लेकिन हाल की कुछ घटनाएं बताती हैं कि ऐसा भी हो रहा है। प्रेम के लिए मर मिटने वाले समाज में जान लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। प्रेमिका ने बात नहीं की तो तेजाब फेंक दिया।

लड़की ने संबंध जोड़ने से मना किया तो टुकड़े कर दिए। कोई खबर ऐसी भी कि पति ने शक जताया तो पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर हत्या कर दी। हत्या की ये घटनाएं कुछ दिन बाद भुला दी जाती हैं। पर कोई यह नहीं सोचता कि आखिर हमारा समाज इतना संवेदनहीन क्यों होता जा रहा है। आखिर ऐसा क्या हो गया कि लोगों को हत्या और हिंसा के सिवा कोई रास्ता सूझता ही नहीं?

आए दिन ऐसी हत्या लोगों के बीच या भीड़ के सामने कर दी जा रही है और लोग किसी की जान बचाने के बजाय वीडियो बनाने में मशगूल रहते हैं। कुछ समय पहले दिल्ली में एक लड़की की चाकू से गोदकर निर्मम हत्या कर दी गई। हत्या उसके ही कथित प्रेमी ने की। पास से गुजर रहे लोगों ने ऐसे देखा और चले गए। किसी ने भी बचाने की कोशिश नहीं की। ऐसी कई घटनाएं तो हाल में हो चुकीं। ऐसा करने वालों को न तो समाज का भय है और न ही कानून का।

पिछली सदी के नब्बे के दशक के बाद हमारा समाज तेजी से बदला है। एक समय था जब माता-पिता, घर के बड़े-बुजुर्गों की डांट से बच्चों को इतना भय रहता था कि कोई गलत काम करने से पहले वे सौ बार सोचते थे। आज की पीढ़ी के बच्चे उनके अनुशासन की छाया से मुक्त हैं। यह मुक्ति कहीं कुछ ज्यादा ही अराजक हो गई। अपनी मनमर्जी और फैसले लेने की आजादी में वे सही-गलत के बीच अंतर करना ही जैसे भूल गए।

उन्हें लगने लगा कि वे जो करते हैं, सब सही है। फिर समाज का बदलता परिदृश्य और व्यक्तिगत जीवन की बढ़ती जटिलताओं ने इंसान को स्वार्थी और खुदगर्ज बना दिया। वह इतना आत्मकेंद्रित होने लगा कि अपने सुख के आगे उसे किसी की भावनाओं की कोई परवाह नहीं रही। जरा-सी ठेस उसके सुख को लगी नहीं कि वह तिलमिला उठा। अपनी इंद्रियों पर अपना नियंत्रण खो बैठा और हिंसा का मार्ग अपना लिया।

इस प्रवृत्ति को हवा देने का काम हिंसक फिल्मों और मोबाइल पर उपलब्ध वीडियो ने भी किया है। टीवी, मोबाइल पर हिंसक फिल्मों, धारावाहिकों के बीच रहने वाला व्यक्ति अनजाने ही हिंसा को अपने आचरण में जब्त कर लेता है और मौका पाते ही उसे व्यक्त भी कर देता है। खासकर अपरिपक्व मन वाले युवा और बच्चे हिंसा फैलाने वाली सामग्री से अधिक प्रभावित होते हैं।

हिंसा की इस बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे सामाजिक परिवेश भी एक बड़ा कारण है। आजकल अधिकतर घरों में माता-पिता दोनों कमाते हैं। पढ़ी-लिखी महिलाएं चूल्हे-चौके में सिमटकर अपनी डिग्री और काबिलियत को खत्म नहीं करना चाहतीं। वक्त के मुताबिक बढ़ते खर्च को पूरा करने की जरूरत की वजह से महिला, पुरुष दोनों काम करते हैं। ऐसे घरों के बच्चे घर पर अकेले रह जाते हैं।

अकेलेपन में वे अच्छी बातों के बजाय गलत प्रवृत्तियों को ओर आसानी से अग्रसर हो जाते हैं। कुछ लोग अपने बच्चों का खयाल जरूर रखते हैं, लेकिन ज्यादातर अपने-अपने काम में व्यस्त माता-पिता बच्चों को सही रास्ते पर लाने का कोई उपाय सोच ही नहीं पाते। इसी तरह उच्च मध्यवर्ग के अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश घरेलू सहायकों के भरोसे करते हैं। अभिभावक सप्ताहांत पर बच्चों के साथ बाहर घूमने, बाहर खाने, फोटो खिंचवाने और ढेर सारी खरीदारी को अच्छा वक्त बिताना मानते हैं।

मगर कार में बैठकर जाते हुए किसी रिक्शे या बाइक वाले से कार छू भी जाए तो मां-बाप बच्चों के सामने ही उस रिक्शेवाले, बाइक वाले पर गालियों की बौछार या हाथापाई करने से नहीं चूकते। ऐसे दृश्य बच्चों के गहरे मन में सहज हिंसा की स्वीकारोक्ति है। कुछ बड़े होने पर वे भी हाथापाई, गाली-गलौज को सामान्य-सी बात मानने लगता है। फिर चाहे वह राह चलता कोई लड़का हो या उसकी प्रेमिका।

इसके अलावा, तेजी से फैले उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे घरों में सामान का और मस्तिष्क में गलत बातों के कचरे का ढेर लगा दिया। हमारे लिए कीमती से कीमती वस्तु की अहमियत खत्म होती गई। रिश्तों का महत्त्व क्षीण हो गया। यही आचरण हमारे मानवीय संबंधों में भी परिलक्षित हो रहा। दया, नैतिकता, आदर्श, मानवीयता की बातें भूलकर हमें बस अपना स्वार्थ याद रहा, जिसके लिए हम किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं।

इस स्थिति से बचना है तो जिंदगी में चीजों और संबंधों की अहमियत पर हमें फिर से विचार करना होगा। किसी भी चीज को कूड़े में डाल देना और किसी भी इंसान को कमतर समझने का भाव मन से हटाना होगा। अपने अधिकारों की सीमाएं जाननी होंगी। अपना कर्तव्य पहचानना होगा। अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होगी। परिवार ही नहीं, एक अच्छे समाज के प्रति भी हमारी जवाबदेही है, उसे पूरा करना होगा।