BSP-BRS Tie-up Telangana: आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के बीच गठबंधन को लेकर कड़ी आलोचना हो रही है। गुरुवार को तेलंगाना बसपा प्रमुख डॉ. आरएस प्रवीण कुमार ने इस कदम का बचाव करते हुए सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया। प्रवीण ने गठबंधन को “ऐतिहासिक” बताया और कहा कि “जिन नेताओं में अंबेडकर, कांशीराम और फुले की तस्वीरें लेकर लोगों के पास जाने की हिम्मत नहीं थी, उन्हें फैसले की आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है”।
प्रवीण कुमार बीआरएस अध्यक्ष के चन्द्रशेखर राव और उनकी “दलित विरोधी” नीतियों के मुखर आलोचक रहे। उन्होंने पिछली बीआरएस सरकार की दलित बंधु योजना की आलोचना की थी और कहा था कि केसीआर दलितों को धोखा दे रहे हैं। केसीआर को एक दलित को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने का अपना वादा पूरा न करने के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा था। इसीलिए, आलोचकों का कहना है, यह अजीब है कि बहुजन समाज पार्टी ने उस पार्टी से हाथ मिला लिया है जिसके बारे में उसने कहा था कि वह दलित विरोधी पार्टी है।
बसपा में शामिल होने से पहले प्रवीण कुमार केसीआर सरकार में आईपीएस अधिकारी थे। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए बने संस्थानों की स्थितियों में सुधार लाने के अपने काम के कारण उन्होंने अपने फॉलोअर्स तैयार कर लिए थे।
सूत्रों का कहना है कि गठबंधन से नाखुश होकर कुछ सदस्यों ने बसपा से इस्तीफा दे दिया। दूसरी ओर, बीआरएस नेता कोनेरू कोनप्पा ने हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से मुलाकात की। वह कथित तौर पर बीआरएस-बीएसपी गठबंधन से नाराज थे और उनके कांग्रेस में शामिल होने की संभावना है। कोनप्पा सिरपुर से पूर्व विधायक हैं, जहां से प्रवीण कुमार ने 2023 के विधानसभा चुनाव में बसपा से चुनाव लड़ा था।
उन्होंने अपने पोस्ट में कहा कि गठबंधन की मदद से हर पार्टी की ताकत बढ़ी है। दुर्भाग्य से, कुछ लोग इसे नहीं देखते हैं। यह हास्यास्पद है कि ये लोग जिन्होंने कभी नहीं बोला, वे बीआरएस-बसपा गठबंधन पर आरोप लगा रहे हैं।
राजनीतिक टिप्पणीकार ई वेंकटेशु इस बात से सहमत हैं कि पार्टियां मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर अपना रुख बदलती हैं। हालांकि, उनका कहना है कि गठबंधन के नतीजों पर दिलचस्प नजर रहेगी। उन्होंने कहा कि बीएसपी के तेलंगाना में एक भी सीट नहीं जीतने और बीआरएस की भारी चुनावी हार के साथ यह सवाल है कि क्या दो इन दो पार्टियों के गठबंधन से क्या कुछ सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। या फिर कोई असर नहीं दिखेगा। उनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर भी बसपा की प्रासंगिकता कम हुई है। तेलंगाना में लोकसभा चुनाव को मुख्य रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है। हमें देखना होगा कि क्या बीआरएस-बीएसपी लोकसभा की लड़ाई में मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन सकती है, या फिर कहीं भी नजर नहीं आएगी।
वॉयस ऑफ तेलंगाना एंड आंध्रा नामक राजनीतिक कंसल्टेंसी के सीईओ कंबालापल्ली कृष्णा का कहना है कि गठबंधन राजनीतिक अवसरवाद के उदाहरण के अलावा और कुछ नहीं है। कृष्णा का मानना है कि इस घटनाक्रम ने भाजपा और बीआरएस के बीच छिपी दोस्ती को उजागर कर दिया है। तेलंगाना राज्य चुनावों से पहले भी,एक अफवाह चल रही थी कि बीआरएस ने सत्ता विरोधी वोट को विभाजित करने में मदद करने के लिए बीएसपी ने तेलंगाना में चुनाव लड़ा था। आरएस प्रवीण कुमार ने अपने केसीआर विरोधी भाषणों से लाखों युवाओं को प्रभावित किया। अब उनका क्या होगा? सीएजी ने बीआरएस सरकार के तहत कालेश्वरम परियोजना, भेड़ घोटाला आदि जैसे कई घोटालों का खुलासा किया है। उन पर बीएसपी का क्या रुख है? यह गठबंधन राजनीतिक अवसरवादिता का उदाहरण है जो लोकतंत्र के लिए खतरा है।