SP-Congress Alliance: साल 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने यूपी के कई छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था। इसके जरिए सपा ने यूपी के बड़े ओबीसी वर्ग को साधने की कोशिश की थी। इसका सपा को फायदा भी मिला था, हालांकि बीजेपी को जीत मिली थी लेकिन पार्टी का ग्राफ सपा की मजबूती के चलते बीजेपी 300 का आंकड़ा तक नहीं पार कर पाई थी। अब लोकसभा चुनावों की बात करें तो पार्टी के सारे छोटे दलों के पुराने सहयोगी साथ छोड़ चुके हैं और उसका एक सहयोगी केवल और केवल कांग्रेस ही है।

लोकसभा चुनाव 2024 की बात करें तो सपा ने यूपी में केवल कांग्रेस से ही गठबंधन किया है। यह गठबंधन सीट पीडीए बताया गया है। इसके सीट बंटवारे की बात करें तो सपा 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस 17 सीटों पर मैदान में होगी।

2022 के विधानसभा चुनावों में एसपी ने ओबीसी मतदाताओं पर प्रभाव रखने का दावा करने वाले विभिन्न क्षेत्रीय दलों जैसे राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी), जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ एक बड़ा गठबंधन बनाया था। इसमें अपना दल (कमेरावादी), और महान दल भी शामिल थे।

2022 में मजबूत हुई थी समाजवादी पार्टी

2022 में राज्य की 403 सीटों में से एसपी ने 32% वोट शेयर के साथ 111 सीटें जीतीं थी, जबकि आरएलडी को 8 और एसबीएसपी को 6 सीटें मिलीं। गठबंधन में अन्य दलों को कोई सीट नहीं मिली। दूसरी ओर बीजेपी ने चुनाव जीता था और 255 सीटें हासिल कीं थी। पार्टी का वोट शेयर 41.29% था। 2017 के विधानसभा चुनावों में जब उसने इन पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं किया था, लेकिन कांग्रेस के साथ साझेदारी में थी, तो सपा ने 21.82% वोटों के साथ 47 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं। भाजपा ने 39.67% वोटों के साथ 312 सीटों पर जीत हासिल की थी।

RLD ने दिया था बड़ा झटका

सपा का झटका आरएलडी के एनडीए में जाने से लगा है। जो कि जाट वोटों के आधार पर सपा के लिए फायदेमंद साबित होती रही है। SBSP की बात करें तो वह भी एनडीए में ही है। 2022 में उन्होंने सपा की खूब आलोचना की थी। 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में एसबीएसपी विधायकों ने एनडीए के उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में क्रॉस वोटिंग की। इस बीच दिवंगत कुर्मी नेता सोनेलाल पटेल द्वारा स्थापित अपना दल से अलग हुए समूह जन जनवादी पार्टी और अपना दल (के) ने भी सीट बंटवारे पर बातचीत विफल होने के बाद लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला करते हुए सपा से नाता तोड़ लिया।

केशव देव मोर्य भी रहे हैं सपा का साथ

2019 के लोकसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान की पार्टी का सपा के साथ गठबंधन था, जब उन्होंने चंदौली से सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था। वह 13,959 वोटों के मामूली अंतर से चुनाव हार गए। महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने सपा से दो सीटों की मांग की थी। उनका शाक्य, सैनी, कुशवाह और मौर्य जैसे ओबीसी समूहों के बीच आधार है। उनकी मांग को सपा ने रिजेक्ट कर दिया था। बाद में जब बसपा ने भी उन्हें सपोर्ट नहीं दिया तो मौर्य ने फैसला किया कि उनकी पार्टी उन सीटों पर सपा का समर्थन करेगी जहां वह चुनाव लड़ रही है।

भीमा आर्मी से भी नहीं बनी सपा की बात

2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में महान दल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, उनके बीच 2019 के चुनाव को लेकर बातचीत हुई थी, लेकिन गठबंधन पर बात नहीं बन पाई, जिसके चलते उसने बीजेपी को समर्थन दिया था। इस बीच भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व वाली आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी-कांशीराम) के साथ एसपी की बातचीत भी विफल रही, एएसपी अब यूपी में अकेले चुनाव लड़ रही है। दिसंबर 2022 के विधानसभा उपचुनाव में सपा, रालोद और एएसपी ने खतौली और रामपुर सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। यहां बीजेपी हार गई थी।

सपा ने जब छोटे दलों को साथ रखा था, तो उसे सियासी लिहाज से बड़ा फायदा हुआ था, भले ही 2022 में उसे बीजेपी को हराने में सफलता नहीं मिली थी, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में बड़ा उछाल आया था, जबकि 2017 में जब वह कांग्रेस के साथ गई थी, तो सपा को कोई खास फायदा नहीं हुआ है। अब देखना यह है कि इस बार सपा को कांग्रेस के साथ जाने पर यूपी में सफलता मिलती है, या फिर पार्टी के वोट प्रतिशत का हाल 2017 वाला हो जाता है।