Lok Sabha Chunav 2024: इंदौर लोकसभा सीट इस बार काफी चर्चा में रही। पहले यहां से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस लेकर बीजेपी जॉइन कर ली, जिससे कांग्रेस का कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं हो सका और अब चुनाव नतीजों में यह सीट नोटा को पड़े वोटों के चलते चर्चा में आ गई है। यहां से बीजेपी के शंकर लालवानी ने 10.09 लाख वोटों से जीत हासिल की है। उन्हें 12,26,751 वोट मिले हैं।
बीजेपी के प्रत्याशी की जीत से इतर, इस सीट पर दूसरे नंबर पर नोटा रहा, नोटा को यहां 2,18,674 वोट मिले हैं। इंदौर में असाधारण परिणाम यह है कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में अब तक नोटा को इतने वोट कभी नहीं मिले थे। पिछला नोटा रिकॉर्ड गोपालगंज, बिहार में 2019 में था, जब 51,660 मतदाताओं ने इस विकल्प को चुना था।
कब और क्यों आया था नोटा?
सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाताओं की पसंद की गोपनीयता बनाए रखने के लिए सितंबर 2013 में भारत के चुनाव आयोग को मतदाताओं के लिए NOTA का विकल्प शुरू करने का निर्देश दिया था। वर्ष 2004 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें मतदाताओं के मताधिकार का प्रयोग करने के ‘गोपनीयता के अधिकार’ की रक्षा के लिए उपाय करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी।
इस मामले में उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव संचालन नियम, 1961 गोपनीयता के पहलू का उल्लंघन करता है, क्योंकि पीठासीन अधिकारी (ईसीआई से) उन मतदाताओं का रिकॉर्ड रखता है जो मतदान नहीं करना चाहते हैं। साथ ही इस अधिकार का प्रयोग करने वाले प्रत्येक मतदाता के हस्ताक्षर या अंगूठे के निशान भी रखता है। हालांकि, उस दौरान केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि मतदान का अधिकार “पूरी तरह से एक वैधानिक अधिकार है।
क्या बोला था सुप्रीम कोर्ट
भारत के मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने इस मामले में कहा कि चाहे मतदाता अपना वोट डालने का फैसला करे या न डालने का फैसला करे, दोनों ही मामलों में गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए।” विशेष रूप से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में।
अदालत ने इस तर्क और चुनाव आयोग के पत्र के सुझाव को स्वीकार कर लिया। इसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों को “लोगों की इच्छा को स्वीकार करने और ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए मजबूर होना पड़ेगा जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते है, और चुनाव आयोग को ईवीएम में नोटा बटन लगाने का निर्देश दिया।
नोटा का क्या असर?
सहायक सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने उस दौरान अदालत को बताया कि NOTA का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है, भले ही किसी सीट पर सबसे ज़्यादा वोट NOTA के लिए पड़े हों, लेकिन दूसरा सबसे सफल उम्मीदवार जीतता है। वहीं इस लोकसभा चुनाव में इंदौर के नतीजे साथ ही अन्य स्थानीय निकाय चुनावों से पता चलता है कि यह एक अलग संभावना बनी हुई है।
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय एक अन्य याचिका पर विचार कर रहा है, जिसमें निर्वाचन क्षेत्र में NOTA को सबसे अधिक वोट मिलने पर चुनाव को “अमान्य” माना जाना चाहिए। लेखक और कंट्री फर्स्ट फाउंडेशन के संस्थापक शिव खेड़ा ने अप्रैल 2024 में न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें चुनाव आयोग को “NOTA वोट विकल्प के समान कार्यान्वयन के संबंध में दिशानिर्देश/नियम बनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी, जिसमें NOTA से अधिक वोट न पाने वाले उम्मीदवारों के लिए परिणाम शामिल हों।”
इस याचिका में महाराष्ट्र, हरियाणा, पुडुचेरी, दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का उदाहरण दिया गया है।