Lok Sabha Chunav Results: तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राज्य की सत्ताधारी गठबंधन यानी डीएमके कांग्रेस का दबदबा देखने को मिला है। बीजेपी ने अध्यक्ष के अन्नामलाई के नेतृत्व में खाता खोलने के भरसक प्रयास किए थे, लेकिन पार्टी को राज्य में तगड़ा नुकसान हुआ है। इन सबसे इतर राज्य में नाम तमिल काची का प्रदर्शन भी सराहना के काबिल रहा है।

तमिलनाडु में उभरतती इस पार्टी का नेतृत्व सीमान के पास है। तमिलनाडु में 12 लोकसभा क्षेत्रों में एनटीके ने 1 लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे, और 6 सीटों पर तो पार्टी तीसरे नंबर पर रही थी। NTK ने न केवल बीजेपी बल्कि कुछ स्थानों पर AIADMK से भी आगे जाकर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। पार्टी वोट प्रतिशत 2019 में 3.8% था, जबकि इस बार पार्टी को करीब 9 प्रतिशत वोट मिला है। इसे पार्टी की राज्य में एक मजबूत स्थापना के तौर पर देखा जा रहा है।

तमिल अस्मिता को मुद्दा बनाकर कर रहे विस्तार

NTK राज्य में धीरे-धीरे स्थिर तरीके से अपना विस्तार कर रही है, जो कि बड़े खिलाड़ियों के लिए एक चेतावनी ही है। पार्टी का मुख्य एजेंडा तमिल राष्ट्रवाद को प्रमोट करना है और इसके नेता सीमान के करिश्मे से लगभग अकेले ही संचालित है। एक फिल्म डायरेक्टर से राजनीति में कदम रखने वाले सीमान ने किसी भी गठबंधन से परहेज किया है, वे “आवश्यक तमिल पहचान” के विचार के इर्द-गिर्द अपने उग्र भाषणों के लिए जाने जाते हैं।

तीसरे नंबर पर पहुंच गई NTK

जिन 12 निर्वाचन क्षेत्रों में एनटीके को 1 लाख से ज़्यादा वोट मिले, उनमें शिवगंगा भी शामिल है, जहाँ उसके उम्मीदवार को 1.63 लाख वोट मिले। जिन छह सीटों पर वह तीसरे स्थान पर रही, उनमें कन्याकुमारी, इरोड, कल्लाकुरिची, नागपट्टिनम, तिरुचिरापल्ली और पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश निर्वाचन क्षेत्र है। वहीं इंडिया ब्लॉक ने सभी छह सीटें जीतीं है, भाजपा दो और एआईएडीएमके चार अन्य में दूसरे स्थान पर रही।

NTK ने अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन मध्य तमिलनाडु में किया है। तिरुचिरापल्ली में पार्टी का वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत से ज्यादा का रहा है और उसने एनडीए को चौथे नंबर पर धकेल दिया। इसके अलावा एनटीके ने नागापट्टिनम में करीब 12 प्रतिशत वोट हासिल किए। मैलाडुथुराई में 10 प्रतिशत से ज्यादा का वोट हासिल कर अपना विस्तार किया है।

तमिल भावनाओं का उठाया था मुद्दा

2009 में श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ खूनी युद्ध की समाप्ति के ठीक बाद जब तमिल भावनाएं अपने चरम पर थीं, एनटीके एक स्पष्ट एजेंडा रहा है, जिसमें पार्टी श्रीलंका में तमिल पीड़ितों का बात करती रही है, जिसके चलते उसका यह मैसेज तमिल युवाओं के बीच काफी पॉपुलर रहा है। उनकी विश्वसनीयता को अक्सर प्रतिद्वंद्वियों द्वारा चुनौती दी गई है, जबकि आलोचक उन पर तमिल भावनाओं का “शोषण” करने और राजनीतिक फंडिंग के लिए तमिल प्रवासियों का उपयोग करने का आरोप लगाते हैं। हालांकि, एनटीके ने सीमान के अलावा किसी भी स्टार प्रचारक और बहुत अधिक धन-बल या मीडिया स्पेस के बिना अपनी पकड़ बनाए रखी है।

सीमान जब तक पूर्व सीएम जयललिता के साथ घनिष्ठता से जुड़े थे तो वह नास्तिकता की बात करते थे। उस दौरान भी सीमान नास्तिकता की बात करते थे और पेरियार तर्कवाद का प्रचार करते थे। “सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने” के आह्वान के साथ, पूर्ण तमिल राष्ट्रवाद और जातीय पहचान की ओर उनका झुकाव 2014 के आस पास काफी आक्रामक हो गया था। वे इस प्रक्रिया में आरएसएस और हिंदुत्व के एक उग्र आलोचक के रूप में भी उभरे हैं, क्योंकि यह एक व्यापक हिंदू पहचान का विचार है।

इसके चलते ही सीमान ने किसी भी गठबंधन से परहेज किया है जो कि उनकों फायदा भी मिलता रहा है। इससे एनटीके को स्वयं को तमिल आकांक्षाओं के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में पेश करने में मदद मिली है, जो किसी भी क्षेत्रीय या राष्ट्रीय साझेदार के हितों से बाधित नहीं है। एनटीके प्रमुख द्वारा उठाया गया दूसरा कदम यह है कि पार्टी में 50% टिकट महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं, तथा सभी समुदायों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है, चाहे वे दलित हों, मुस्लिम हों या ब्राह्मण।

संसाधनों की कमी के कारण, एनटी बड़ा कदम यह रहा कि वह पार्टी के खर्च के लिए क्राउड फंडिंग के जरिए पैसा जुटाती है। पार्टी राजनीतिक के लिए बेहद डेडिकेट लोगों को मैदान में उतारती है, इसके अलावा ऐसे ही लोगों को टिकट देती है, जो कि अपने चुनाव का खर्चा स्वयं करती है।