विपक्षी दलों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के लिए कदम बढ़ाया है। तो वहीं बीजेपी एनडीए में नई जान फूंकने के लिए अपने पूर्व सहयोगियों के साथ बातचीत शुरू करने लगी है। हाल के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के साथ-साथ तेजी से बदलती राजनीतिक स्थिति ने भाजपा को अपने पूर्व सहयोगियों के खिलाफ अपने रुख को नरम करने के लिए मजबूर कर दिया है। पार्टी अगले आम चुनाव के लिए फिर से एक मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी ने इन दलों के साथ शुरू की वार्ता

भाजपा सूत्रों ने कहा कि पार्टी नेतृत्व ने कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर), आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (SAD) के साथ गठबंधन के लिए वार्ता फिर से शुरू कर दी है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और तमिलनाडु में AIADMK के साथ पार्टी के संबंधों की भी पुष्टि की है। सूत्रों ने कहा कि जल्द ही उत्तर प्रदेश और बिहार सहित अन्य राज्यों में छोटे सहयोगियों के साथ बैठक करेगी और चर्चा करेगी।

हाल ही में दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों के साथ एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा को सलाह दी थी कि क्षेत्रीय दलों के साथ संबंध बनायें। कई भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया है कि एनडीए से टीडीपी, उद्धव सेना, अकाली दल और जेडी (यू) जैसे दलों के बाहर निकलने से पार्टी की एक छवि बनी है कि वह क्षेत्रीय दलों को स्वीकार नहीं करना चाहती है।

अकाली के साथ बढ़ रही नजदीकी

सूत्रों के मुताबिक भाजपा नेतृत्व ने जालंधर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों का आकलन करने के बाद एनडीए छोड़ने वाले अकाली दल से अपना मोहभंग दूर रखने का फैसला किया है। कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ जालंधर लोकसभा सीट पर मई में हुए उपचुनाव में आप ने 34.1 फीसदी वोट पाकर जीत हासिल की थी। जबकि अकाली और बीजेपी के उम्मीदवारों को क्रमश: 17.9 फीसदी और 15.2 फीसदी वोट मिले थे।

बीजेपी के एक नेता ने कहा कि पिछले साल पंजाब के चुनावों में अपनी हार के बाद अकाली एनडीए के पाले में लौटने का इच्छुक था। भाजपा ने तब छोटे दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिसमें कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब लोक कांग्रेस भी शामिल थी, जो केवल दो सीटें जीतने में कामयाब रही थी। लेकिन अब बीजेपी अपने पूर्व सहयोगियों के साथ फिर से मिलकर अगला चुनाव लड़ना चाहती है ताकि उसे आसानी हो।