लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन सीट शेयरिंग के फोर्मूले को अमल में लाने की जुगत में लगा है। विपक्षी गठबंधन के लिए उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र की राह आसान नहीं दिखाई देती है। अगर खास तौर पर बात की जाए महाराष्ट्र की तो यहां महा विकास अघाड़ी (MVA) यानी राज्य के विपक्षी दलों महागठबंधन पहले से ही काफी बिखरा नजर आता है। वजह है शिवसेना और एनसीपी का दो धड़ों में बंट जाना। अब सीट बंटवारे पर महाराष्ट्र की राह विपक्ष के लिए क्यों आसान नजर नहीं आती, यह सवाल भी काफी अहम है।
क्यों इंडिया गठबंधन के लिए महाराष्ट्र है मुश्किल?
महाराष्ट्र में सीट बंटवारा क्यों पेचीदा नजर आता है, इसका अंदाजा शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की ओर से दिए इस बयान से समझा जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि वह (शिवसेना) राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 23 पर चुनाव लड़ेगी और सीट-बंटवारे पर अपने सहयोगियों साथ कोई चर्चा नहीं करेगी। संजय राउत ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, ”हमने 23 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है और लंबे समय से इसकी तैयारी कर रहे हैं। हमारे पास सभी सीटों के लिए उम्मीदवार भी हैं।” संजय राउत ने आगे कहा, ”जब हम भाजपा के साथ गठबंधन में थे तो हम हमेशा 23 सीटों पर चुनाव लड़ते थे और उनमें से 17-18 सीटें जीतते थे।”
सांसद संजय राउत ने दावा किया कि स्थानीय कांग्रेस नेताओं के पास सीट बंटवारे पर फैसला लेने का पावर नहीं वह दिल्ली के नेताओं के साथ चर्चा कर रहे हैं। संजय राउत ने कहा, “उद्धवजी, आदित्य ठाकरे और मैं इंडिया गठबंधन की बैठक में थे। कांग्रेस नेताओं के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं और हमने सीटों के बंटवारे समेत कई चीजों पर चर्चा की।”
MVA का बिखरना बनेगा चुनौती
महाराष्ट्र को विपक्ष के लिए मुश्किल इसलिए भी माना जा रहा है कि यहां के दो प्रमुख दल शिवसेना और एनसीपी बड़े बिखराव से गुजरे हैं। जहां शिवसेना से शिंदे गुट बाहर हुआ है वहीं एनसीपी से अजित पवार ने शरद पवार का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा है। हालांकि संजय राउत कहते हैं कि उनकी पार्टी विपक्षी दलों के सहयोग के साथ मैदान में उतरेगी और मिलकर प्रचार करने से काफी असर पड़ेगा।