Chirag Paswan Bihar Assembly Election: इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बिहार फिर से चर्चा में आ गया है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद बिहार के मधुबनी से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह इस हमले के दोषियों को खोज निकालेंगे। बीजेपी और आरएसएस बिहार में सरकार की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है। इसे लेकर कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवाद का मुद्दा हावी रहेगा या फिर यह स्थानीय मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा।
बिहार चुनाव की चर्चा केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की वजह से भी हुई है क्योंकि वह राज्य में विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। चिराग पासवान लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान थे और उनके निधन के बाद पार्टी में टूट हुई थी।
चिराग पासवान ने 2020 का विधानसभा चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़ा था लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान एनडीए में वापस आ गए और उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर लड़कर सभी सीटों पर जीत दर्ज की। चिराग को मोदी सरकार 3.0 में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।
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चिराग पासवान की नजर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं हालांकि एनडीए इस बात का ऐलान कर चुका है कि वह विधानसभा चुनाव मौजूदा मुख्यमंत्री और जेडीयू के सुप्रीमो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा।
दलित चेहरा हैं चिराग पासवान
लोजपा (रामविलास) की कोशिश चिराग पासवान को दलित नेता के रूप में पेश करने की है। बिहार में दलित आबादी 20% के आसपास है। नीतीश कुमार ने दलित समुदाय में आने वाली 22 में से 21 उपजातियों को महादलित के रूप में वर्गीकृत किया था। इसमें से पासवान जाति को बाहर रखा गया था और इस वजह से पासवान और महादलित जातियों के बीच खाई बन गई थी। पासवान समुदाय की राजनीतिक हैसियत की बात करें तो बिहार की 243 में से 30 सीटों पर यह समुदाय चुनाव में जीत-हार का फैसला करने की ताकत रखता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास कुर्मी, कोईरी, अति पिछड़ा वर्ग और पसमांदा मुसलमान के अलावा महादलितों का समर्थन भी है। चुनावों के दौरान ये वर्ग नीतीश के साथ खड़े रहे हैं। बिहार में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिलाया तो उन्हें जीत मिली। बिहार में माना जाता है कि सवर्ण समुदाय बीजेपी के साथ है। जब नीतीश लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ गए तब भी उन्हें जीत मिली।
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2020 में खराब रहा जेडीयू का प्रदर्शन
2005 से लेकर अब तक बिहार में बनी सभी सरकारों में नीतीश अहम भूमिका में रहे हैं लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जेडीयू का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था और तब जेडीयू सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी जबकि 2015 में उसे 71 सीटों पर जीत मिली थी। 2020 में वह बीजेपी को मिली 74 सीटों के आंकड़े से काफी पीछे रह गई थी।
यह माना गया था कि जेडीयू के इस खराब प्रदर्शन के पीछे वजह चिराग ही हैं। चिराग पासवान ने 40 सीटों पर जेडीयू को नुकसान पहुंचाया। 26 सीटें ऐसी थी जहां पर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को जेडीयू की हार के अंतर से ज्यादा वोट मिले। चिराग बिहार विधानसभा चुनाव में उन सभी सीटों पर अपना दावा पेश करने जा रहे हैं, जहां पर उनकी पार्टी की अच्छी मौजूदगी है।
खास बात यह भी है कि चिराग सामान्य सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या चिराग नीतीश कुमार की जगह लेने की कोशिश कर रहे हैं? चिराग के पिता रामविलास पासवान ने वीपी सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया और सात बार केंद्र सरकार में मंत्री रहे। वीपी सिंह ने उन्हें संभावित प्रधानमंत्री माना था।
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नीतीश बने रहेंगे सीएम?
कई लोगों का ऐसा मानना है 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के दौर के अंत वाला चुनाव हो सकता है। नीतीश की तबीयत को लेकर कई तरह की चिंताएं हैं और इससे उनका मुख्यमंत्री पद पर बने रहना मुश्किल हो सकता है। अगर एनडीए इस चुनाव में जीत हासिल करता है तो बीजेपी उन्हें कुछ वक्त के लिए मुख्यमंत्री बनाए रख सकती है जिसके बाद वह खुद राज्य की कमान को संभालना चाहेगी।
दूसरी ओर, 2020 के चुनाव में आरजेडी का प्रदर्शन अच्छा रहा था लेकिन अभी भी वह अपने मुस्लिम-यादव आधार में पिछड़े वर्ग का समर्थन नहीं जोड़ पाई है। जबकि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में ऐसा किया था और बीजेपी को पीछे छोड़ दिया था। आरजेडी के परिवार में भी तनातनी चल रही है और हाल ही में लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को पार्टी से निकाल दिया था।
युवा चेहरों का वक्त
प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली जन सुराज बिहार चुनाव में एक नया फैक्टर होगी। प्रशांत किशोर पूरे बिहार की पदयात्रा कर चुके हैं और उन्होंने बिहार के लोगों से जाति और धर्म की राजनीति को छोड़कर आगे बढ़ने का आह्वान किया है। बिहार में एक बात और साफ दिखाई देती है कि लालू और नीतीश कुमार का युग समाप्त होने वाला है और राज्य में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे युवा चेहरे सामने आ रहे हैं।
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