Pranav Mukul, Aashish Aryan, Prabha Raghavan, Aanchal Magazine: कोरोना संकट की वजह से लगे लॉकडाउन से विनिर्माण क्षेत्र जून की तुलना में जुलाई में अधिक प्रभावित रहा। पिछले तीन महीने में नौकरियों के जाने से परचेंजिंग मैनेजर इंडेक्स जून के 47.2 की तुलना में जुलाई में घटकर 46 पहुंच गया।
नौकरी छूटने या कोरोना संक्रमित होने के डर के कारण महानगरों और शहरी औद्योगिक केंद्रों से हजारों की संख्या में लोग अपने गृहनगर और गांव लौट गए। उनमें से कई लोग अब यह महसूस कर रहे हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने रोजगार के लिए गुंजाइश नहीं है। गावों में पहले से ही लोग हैं ऐसे में अधिक श्रमिकों को यहां रोजगार नहीं मिल सकता है। ऐसे लोगों में से एक 30 वर्षीय चितरंजन कुशवाहा ने कहा कि उन्होंने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था।
ऐसा करने वाले वह अपने परिवार में पहले व्यक्ति थे। रोजगार के लिए वह 2014 में पुणे चले गए। वहां उन्हें एक प्रमुख ऑटो-पार्ट्स बनाने वाली कंपनी में असेंबली लाइन की नौकरी पाई। 21,000 रुपए की मासिक औसत कमाई हो रही थी। लॉकडाउन की वजह से वह अपने पैतृक घर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में अपने परिवार के साथ लौट आए।
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कई लोगों के विपरीत, कुशवाहा भाग्यशाली थे कि उनके डिप्लोमा ने उन्हें कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) में नौकरी पाने में मदद की – लेकिन उनके पुणे वेतन का एक तिहाई से भी कम। उनका खर्च कुछ कम हो गया क्योंकि यहां उन्हें किराया नहीं देना था। लेकिन आमदनी में भारी कटौती का मतलब है कि उसे कई अन्य चीजों में कटौती करनी पड़ी।
इसका पहला असर उनके बच्चों की एजुकेशन पर पड़ा। कुशवाहा ने कहा कि मैंने पहले एक महीने की फीस दी। लेकिन उसके बाद मैंने स्कूल से बच्चों का नाम कटवा दिया। मैं तीन बच्चों का 1500 रुपए महीना कैसे चुकाता। कुशवाहा जैसे ही कई लोग हैं जिनपर लॉकडाउन की मार पड़ी है।
ऐसा ही कुछ दुर्दशा बिहार के सुपौल के दीनापट्टी गांव के 32 वर्षीय संतोष कुमार की है। वह मुंबई में एक छोटी विमानन कंपनी में काम करता थे, लेकिन मई में अपने थ्री व्हीलर ऑटो-रिक्शा में तीन अन्य व्यक्तियों के साथ वापस गांव लौट आए। संतोष कहते हैं अभी लॉकडाउन है तो वापस नहीं लौट सकते। जीविका चलाने के लिए खेती पर ही निर्भर हूं। पता नहीं कंपनी में काम कब शुरू होगी।
संतोष ने कहा कि उन्हें सरकार की तरफ से 1,000 रुपए मिले। क्वारंटाइन में रहने के दौरान एक दिन में 300 रुपए भी प्राप्त किए। खाने की व्यवस्था पिता के राशन कार्ड के माध्यम से हो रही है। क्योंकि उनके नाम का अभी राशन कार्ड नहीं है। संतोष ने कहा कि जब भी उसका कंपनी मालिक बुलाएगा तो वह वापस लौट जाएंगे। हालांकि, इसमें अभी समय लग सकता है।
आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि छह राज्यों – बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और ओडिशा (गरीब कल्याण रोज़गार अभियान के तहत कवर) में 116 जिलों के 64 लाख प्रवासी कामगार लौटे हैं। इनमें से एक चौथाई कामगार इन राज्यों से 17 जिलों के हैं। ग्रामीण रोजगार योजना के तहत दर्ज प्रवासियों की सबसे अधिक संख्या बिहार में है।
यहां 32 जिलों में 23.6 लाख कुल प्रवासी श्रमिक है। यह कुल श्रमिकों का 37.2 प्रतिशत हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 17.47 लाख लौटे श्रमिक (कुल का 27.5 प्रतिशत) हैं। मध्य प्रदेश में 10.71 लाख श्रमिकों की वापसी हुई है। यह कुल श्रमिकों का 16.9 प्रतिशत है।