कोरोना वायरस के फैलके संक्रमण के चलते देशभर में लागू लॉकडाउन  के चलते लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। प्रवासी मजदूर की तस्वीरें देश ने देखी है। देश के अलग-अलग राज्य के कोने-कोने से मजदूर पैदल, ट्रकों से और जो भी साधन मिल पा रहा है अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं। खाने पीने और जीवन व्यापन के जरिए पर ही ताला लगा हुआ है तो फिर घर जाने के अलावा इनके पास कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में सोशल  मीडिया पर एक वीडियो वायल हो रही है जिसमें एक मजदूर अपनी गर्भवती पत्नी और दो साल की बच्ची को हाथ से बनी लकड़ी की गाड़ी पर खींचकर घर की ओर जा रहा है।

टीवी न्यूज चैनल एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक यह शख्स हैदराबाद में रहता था और सारे विकल्प तलाशने के बाद जब घर जाने का इंतेजाम नहीं हो पाया तो यह प्रवासी मजदूर अपनी पत्नी और बच्ची के साथ ही पैदल निकल पड़ा। रास्ते में पड़े बांस और लकड़ी से इसने गाड़ी बनाई और उसी पर पत्नी और बच्ची को बैठाकर खींचता हुआ 800 किलोमीटर दूर निकल आया।

इस  प्रवासी मजदूर का नाम रामू है।उसने बताया कि वह  तपती दोपहरी में 17 दिन पैदल चला जिसके बाद बालाघाट पहुंचा है। उसने बताया कि  जिले की रजेगांव सीमा पर जवानों ने इस दंपति को आते देखा जिसके बाद उन लोगों ने इनकी मदद की। बेटी के पैरों में चप्पल तक नहीं थी जिसके बाद पुलिसन ने बच्ची को चप्पल दिलाए और फिर रामू के परिवार के घर तक के लिए एक निजी गाड़ी का इंतेजाम किया।

कुछ ऐसी ही कहानी बालकृष्ण की है जो महाराष्ट्र के भिवंडी से उत्तर प्रदेश के जौनपुर के लिए निकले हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई को उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र, भिवंडी से पैदल आ रहा हूं,मुझे जौनपुर जाना है।हम लोगों को यात्रा करते हुए आज 8-9 दिन हो गए हैं। जब तक पैसा था तब तक खाना खाया जब मरने वाली स्थिति हुई तो पैदल चल दिए।रास्ते में बच्चे को देखकर लोग थोड़ा बहुत कुछ खाने को देते थे। बालकृष्ण ने कहा कि वहां रहते तो भूखे मर जाते। फैक्ट्री मालिक से मदद मांगते थे तो वो कहते थे कि घर चले जाओ। हमारे पास को रास्ता ही नहीं था इसलिए हमने पैदल चलने का रास्ता चुना।

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