भाजपा से लगातार दो लोकसभा चुनावों में हार झेलने वाली कांग्रेस के लिए कुछ छिटपुट राज्यों की सफलता छोड़ दें, तो राष्ट्रीय स्तर पर अब भी सब ठीक नहीं रहा है। पिछले साल अगस्त में पहली बार कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर संगठन में बड़े बदलावों की मांग उठाई थी। बाद में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) के चुनाव जून में कराने की बात कह कर उभरे विवादों को शांत करने की कोशिश की गई। लेकिन अब एक बार फिर कांग्रेस में उन चिट्ठियों का प्रसार शुरू हो गया है। अफवाह है कि कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को 23 वरिष्ठ नेताओं की ओर से लिखी गई चिट्ठी की कॉपी पोस्ट के जरिए मिल रही है।

कांग्रेस के एक नेता ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि उन्हें 23 नेताओं द्वारा लिखी गई वह चिट्ठी डाक के जरिए मिली है। इसके अलावा ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के कुछ अन्य डेलिगेट्स को भी चिट्ठी के मिलने की बात सामने आई है। बता दें कि कांग्रेस के आंतरिक संविधान के मुताबिक, ये AICC के सदस्य ही हैं, जो नए अध्यक्ष के लिए वोटिंग करेंगे। अगर पार्टी नेतृत्व वर्किंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव कमेटी (CEC) में चुनाव के लिए राजी होता है, तो उसके लिए भी इन्हीं सदस्यों के वोट गिने जाएंगे।

किन नेताओं ने लिखी थी सोनिया गांधी को चिट्ठी?: कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को अगस्त में पत्र लिखकर पार्टी में ऊपर से नीचे तक व्यापक बदलाव करने का आह्वान किया था। पत्र लिखने वालों में पांच पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति के कई सदस्य, सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल थे।

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद, पार्टी के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर; सांसद विवेक तन्खा भी शामिल रहे थे। एआईसीसी के पदाधिकारी और सीडब्ल्यूसी सदस्य मुकुल वासनिक के साथ ही जितिन प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, राजेंदर कौर भट्टल, एम वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज भवन, पी जे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, और मिलिंद देवड़ा भी हस्ताक्षर करने वालों में शामिल थे।

चिट्ठी में नेताओं ने क्या रखी थी मांग?: 23 नेताओं ने चिट्ठी के जरिए कांग्रेस में व्यापक सुधार, सत्ता के विकेंद्रीकरण, राज्य इकाइयों के सशक्तीकरण, हर स्तर पर संगठन के चुनाव, ब्लॉक से सीडब्ल्यूसी और एक केंद्रीय संसदीय बोर्ड के तत्काल संविधान की मांग की गई थी। पार्टी नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में हार के एक साल बाद भी, पार्टी ने ‘निरंतर गिरावट’ के कारणों का पता लगाने के लिए कोई ‘ईमानदार आत्मनिरीक्षण’ नहीं किया है।