साल 2007 में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में राजद सुप्रीमो लालू यादव ने बताया था कि साल 2004 में उनकी रेल मंत्री बनने में दिलचस्पी नहीं थी। लालू यादव ने कहा था कि वे चाहते थे उनको या तो गृह मंत्रालय या फिर रक्षा मंत्रालय दिया जाए। लालू यादव ने बताया था कि रेल दुर्घटनाओं को लेकर मन में डर था कि कहीं ऐसी घटनाएं हुईं तो रोज बदनामी होगी। रोज उनके इस्तीफे की मांग की जाएगी।

लालू यादव ने बताया था कि भारत में लोकतंत्र की नींव बहुत गहरी है। अगर भारत में लोकतंत्र नहीं होता तो वे चरवाहे ही होते। न तो वे और न ही उनकी पत्नी राबड़ी देवी कभी सीएम बन पाते। आम आदमी देश की सत्ता के शीर्ष पर आकर बैठता है। यह सिर्फ लोकतंत्र में हो सकता है। लालू यादव ने कहा, ‘ हमने सोचा कि रेल का भाड़ा बढ़ाने से गरीब आदमी परेशान होगा और इससे रेलवे की आमदनी नहीं बढ़ने वाली है।’ लालू यादव ने कहा, ‘मैंने रेल भवन में अधिकारियों से सबसे पहले यही कहा था कि हमारे काम में ईमानदारी, प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता होनी चाहिए।’

उन्होंने बताया, ‘हमारी सरकार ने किराए को कम करने का काम किया। हमने यह भी कहा था कि हम भारतीय रेल का निजीकरण नहीं करेंगे। जिन रेल कर्मचारियों को ये लगता था कि कल को हमारी नौकरी रहेगी कि नहीं रहेगी । उनको भरोसा दिया कि आपकी नौकरी सुरक्षित है। हमने कुछ कर्मचारियों को दंडित किया और चोरी को रोका।’

बता दें कि लालू यादव 2004 से 2009 के बीच यूपीए सरकार में रेल मंत्री थे। रेल मंत्री के रूप में, यादव ने यात्री किराए के अलावा रेलवे के राजस्व के अन्य स्रोतों पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने रेलवे स्टेशनों पर चाय परोसने के लिए प्लास्टिक के कपों पर प्रतिबंध लगा दिया और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक रोजगार पैदा करने के लिए कुल्हड़ (मिट्टी के कप) की शुरुआत की।

जून 2004 में, उन्होंने घोषणा की कि वह रेल की समस्याओं का निरीक्षण करने के लिए खुद रेल का सफर करेंगे और आधी रात को पटना से रेल में चढ़ गए थे।

जब उन्होंने पदभार संभाला तो भारतीय रेलवे घाटे में चलने वाला संगठन था। उनके नेतृत्व में चार वर्षों में, इसने 250 बिलियन रुपए का कुल लाभ कमाया।