मुकेश भारद्वाज
राजनीति में शुचिता अब वस्तुनिष्ठ न रहकर व्यक्तिनिष्ठ हो गई है। दुर्भाग्य से अब कोई भी दल अपवाद नहीं रहा। भारतीय जनता पार्टी के जो नेता कभी आइपीएल की धांधली पर संसद में बहुत सवाल उठाते थे, अब वे अपनी समूची शक्ति के साथ केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को बचाने में लगे हैं। प्रत्यक्ष तौर पर ही सुषमा स्वराज आरोपों की दलदल में गहरे धंसी हुई दिखाई दे रही हैं, लेकिन उनकी अपनी पार्टी को ऐसा कुछ नहीं लग रहा। लिहाजा वही पुराने राजनीतिक जुमलों, ‘देखेंगे, ऐसा लगता नहीं है, वे तो समर्पित कार्यकर्ता हैं, सब झूठ है’ की गूंज चहुं ओर से सुनाई दे रही है।
खास बात यह भी है कि पहले ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद सुषमा स्वराज की वरिष्ठता व ऊंचे ओहदे को देखते हुए पार्टी उनके बचाव की मुद्रा में है, लेकिन पिछले एक सप्ताह में एक के बाद एक पार्टी की चार महिला नेता जिस तरह से विवादों में घिरी हैं और जिस तरह से पार्टी अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ उनके बचाव में उतरी है, उससे तो यही आभास हो रहा है कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और।
वरना दूसरे दलों में ऐसे ही आरोपों में घिरे नेता और पार्टियां गलत और अपने नेता भी ठीक और पार्टी भी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मौन रहना गलत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुप रहना सही। आम आदमी पार्टी के नेता जितेंद्र तोमर तो डिग्री विवाद में गलत, लेकिन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी सही। कांग्रेस नेताओं की ललित मोदी से दोस्ती पारिवारिक या व्यावसायिक रिश्ते गलत पर सुषमा स्वराज व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के वैसे ही ताल्लुकात सही। राजे के खिलाफ एक-एक करके दस्तावेजों की झड़ी लगी पर वे फिर भी सलामत। सबसे ताजा मामला महाराष्ट्र की महिला व बाल कल्याण विभाग की प्रमुख पंकजा मुंडे का है। उन पर आरोप है कि उन्होंने 206 करोड़ रुपए की खरीद बिना टेंडर मंगवाए ही मंजूर कर दी।
स्मृति ईरानी का डिग्री विवाद नया नहीं है। ये आरोप पहले भी सामने आ चुके हैं कि उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यताओं के बारे में झूठ बोला। अब तो उनके झूठ पर अदालती मुहर भी है। लेकिन पार्टी में उनकी जूनियर स्थिति, शैक्षणिक योग्यताओं में कमी व उनके झूठे हल्फनामों के बावजूद उनको मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिया गया। यह ठीक है कि मंत्री पद के लिए कोई योग्यता तय नहीं, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि शिक्षा का स्वरूप तय करने वाले महकमे में भी इसे दरकिनार कर दिया जाए। सरकार का गृह, रक्षा और विदेश के बाद यह चौथा सबसे बड़ा महकमा है और इसी के प्रमुख पर शैक्षणिक योग्यता के बारे में ही झूठ बोलने का आरोप है।
जाहिरतौर पर ही अब सभी राजनीतिक दलों ने अपने मानदंडों के दो सैट तैयार कर लिए हैं। एक अपनों के लिए और दूसरा बेगानों के लिए। इसलिए उनको अब आरोप लगाने और आरोपों से बचाने के सभी तरीके बखूबी आ गए हैं। ऐसे में कोई एकाध आवाज कहीं सुनाई देती है तो वह बड़े जीवट का काम लगता है। मौजूदा स्थिति में एक ऐसी ही आवाज सांसद कीर्ति आजाद की लग रही थी, लेकिन अंत पल वह भी कहीं न कहीं पक्षधारता ही दिखाई पड़ रही है। आजाद की कोशिश इस सारे विवाद के निशाने से सुषमा को हटाकर उनकी जगह पार्टी के दूसरे नेता को निशाना बनाने की है। उनका दावा है कि सुषमा अंदरूनी राजनीति की शिकार हो रही हैं।
बहरहाल, अगर सुषमा पार्टी की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो रही हैं तो क्या राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी पार्टी की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो रही है। एक बात तो तय है कि भाजपा की ये दोनों बड़ी नेत्रियों का पार्टी रुतबा-रसूख ऐसा है कि इनके खिलाफ कोई आवाज पार्टी के अंदर तो कम से कम बुलंद नहीं। हां, कुछ आवाजें जो सदा सुनाई देती हैं वे बंद जरूर हैं। संयोग की बात है कि जिनकी तरफ कीर्ति आजाद इशारा कर रहे हैं वे खुद भी सुषमा के लिए कम से कम सार्वजनिक तौर पर ‘क्लीन चिट’ जारी कर ही चुके हैं।
दोनों नेता बेशक इस इतने बड़े विवाद को सफाई से झेल गई हों, लेकिन दोनों के मामले में सरसरी तौर पर ही हितों का टकराव साफ दिखाई देता है। आइपीएल के कभी के सबसे बड़े खिलाड़ी ललित मोदी के साथ न सिर्फ इन दोनों का वरन, इनके परिवार के सदस्योें का भी नाता जोड़ा जा रहा है, लेकिन कहीं इनको निजी और पारिवारिक और कहीं व्यावसायिक रिश्तों का जामा पहनाया जा रहा है।
आइपीएल में सब कुछ ठीक नहीं था। यह किसी से छुपा नहीं। अंधाधुंध व दिखावटी खर्च से लेकर मैच फिक्सिंग तक की दलदल में क्रिकेट के खेल की यह विधा गहरे फंसी है। इस खेल में कितने खेल हुए यह तो खैर अलग ही शोध का विषय है, लेकिन इसमें राजनीतिकों की भूमिका अपने आप में बड़ी दिलचस्प है। मैच का फीता काटने से लेकर क्रिकेट में एक उत्सव का दर्जा पा चुके आइपीएल में नेताओें ने अपने विशेषाधिकारों के चलते खूब लाभ उठाए। तो फिर कभी न कभी तो इस सबकी भरपाई करनी ही पड़ती। खासतौर से खेल के मुख्य खिलाड़ी को।
आज विदेश की धरती से ललित मोदी अपनी बेगुनाही की दुहाई दे रहे हैं। कहीं यह आभास भी दिया जाता है कि सुषमा व उनके प्रति स्वराज कौशल और परिवार से उनके संबंधों के उजागर होने के बाद अब कोई बड़ा राजनीतिक तूफान आने ही वाला है, जिसकी हद में आकर कई मुखौटे उड़ जाएंगे। क्रिकेट की चमकती दमकती दुनिया का जलवा भी कोई बालीवुड से कम नहीं।
जाहिर है कि अपने भारी भरकम खजाने व प्रभाव के चलते यह खेल राजनीतिकों की पहली पसंद रहा है। महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला, भाजपा के उभरते सितारे व हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही इस मामले में कोई अपवाद न खड़ा कर पाएं। खेल में राजनीति के इस दखल पर बोलते-बोलते विद्वानों की जुबान पक गई और कलम टूट गई, लेकिन हासिल कुछ न हुआ।
बहरहाल, बात आइपीएल (इसकी चमक और इसके घोटालों की और बात ललित मोदी की) खेल की इस विधा की मकबूलियत और रुसवाई के लिए एक से जिम्मेवार मोदी आज विदेशी धरती से चिल्ला-चिल्ला कर अपनी मासूमियत की दुहाई दे रहे हैं। इस विवाद के लपेटे में आई सुषमा और वसुंधरा से अपने पारिवारिक संबंध बता रहे हैं, लेकिन उन दोनों से ही क्यों? क्या वे बाकी राजनीतिकों से भी अपने ऐसे पारिवारिक संबंधों का खुलासा करेंगे? या फिर इंतजार करेंगे कि कब उनकी कोई और ई-मेल लीक हो और उनके स्मृति पटल पर एक और नाम उभरे?
अगर मोदी निर्दोष हैं तो विदेश में क्यों हैं? सरकार पर उनको वापस लाने के लिए जो ढिलाई के आरोप लग रहे हैं, वे क्यों? अगर मोदी समेत सब इतने ही निर्दोष हैं तो जांच से गुरेज क्यों? ऐसे में तो और जरूरी है कि जांच हो और हो दूध का दूध, पानी का पानी। ऐसा है तो रणदीप सुरजेवाला, आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद और जयराम रमेश ने आरोपों की झड़ी लगाई है, वे अपनी सफाई दें?
भारतीय जनता पार्टी के पास यह समय है खुद को पाक साफ और विवादहीन पार्टी सिद्ध करने का। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चाहे तो वह अपने ही एक अपेक्षाकृत जूनियर व युवा नेता देवेंद्र फडणवीस से सबक ले सकता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने राज्य के आला पुलिस अधिकारी राकेश मारिया से उनके औैर मोदी के बीच विदेश की धरती पर हुई मुलाकात पर सफाई मांगी है और यह उन्होंने तब किया है जब मड़िया यह सफाई भी दे चुके हैं कि मोदी ने उनसे अपनी जान के खतरे को देखते हुए सुरक्षा के नजरिए से बात की औैर यह बात, ऐसा कहा जा रहा है कि मड़िया केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बता भी चुके हैं।
किसने क्या कहा…?
ललित मोदी एक भगौड़ा है। एक भगोड़े अपराधी की मदद करना कानूनी और नैतिक तौर पर गलत है। ललित मोदी को भारत वापस लाने के सभी प्रयास किए जाने चाहिए ताकि उन पर कानूनी रूप से कार्रवाई हो सके।… आरके सिंह, भाजपा सांसद, पूर्व गृह सचिव
सुषमा स्वराज के खिलाफ लगाए आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने मोदी को वीजा के लिए मदद मानवीय आधार पर की न कि किसी और वजह से।… अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष
विपक्ष का भाजपा नेत्रियों से इस्तीफा मांगना गलत है। मंत्रियों के त्यागपत्र नहीं होते। यह यूपीए नहीं एनडीए की सरकार है।… राजनाथ, गृह मंत्री
मेरी और ललित मोदी की कंपनी में करोड़ों का लेनदेन कानूनन और नियमानुसार हुआ। इसमें विदेशी मुद्रा प्रबंधन एक्ट (फेमा) का उल्लंघन नहीं हुआ। अभी वह देश से बाहर हैं, स्वदेश आने के बाद इस मुद्दे पर विस्तार से जानकारी देने को तैयार हैं।… दुष्यंत सिंह, भाजपा सांसद, झालावाड़ (राजस्थान)
राजग सरकार ने ललित मोदी को यहां लाने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए। सरकार को ललित मोदी का पासपोर्ट रद्द कराने के लिए पहल करनी चाहिए थी न कि उसकी मदद।… पी चिदंबरम, कांग्रेस नेता
सुषमा स्वराज ने आव्रजन दस्तावेजों में ललित मोदी की मदद की लेकिन क्या इसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को थी ? अगर थी तो उन्हें सामने आना चाहिए। नहीं, तो यह और भी गंभीर है। मामला गंभीर है और राजग सरकार इससे बच नहीं सकती।… रणदीप सुरजेवाला, कांग्रेस प्रवक्ता