लाहौर पुलिस ने शनिवार (8 जून) को स्थानीय अदालत में एक एफआईआर की कॉपी सब्मिट की, जो 1928 में दर्ज की गई थी। अनारकली पुलिस थाने में दर्ज यह एफआईआर अंग्रेज अफसर जॉन सॉन्डर्स की हत्या से संबंधित थी, जिसमें वारदात को अंजाम देने वाले आरोपियों को अज्ञात बताया गया था। अदालत ने इस एफआईआर की एक कॉपी लाहौर के वकील और याचिकाकर्ता इम्तियाज राशिद कुरैशी को सौंपी, जो भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं।
जानकारी के मुताबिक, कुरैशी ने याचिका दायर करके उस एफआईआर की प्रमाणित कॉपी मांगी थी, जिसमें शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सॉन्डर्स को हत्या का दोषी बताकर 1931 में पाकिस्तान के लाहौर के शादमान चौक पर अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी।
National Hindi News, 10 June 2019 LIVE Updates: देश-दुनिया की हर खबर पढ़ने के लिए यहां करें क्लिक
कुरैशी ने बताया कि एफआईआर में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के नाम नहीं लिखे थे। हकीकत में यह केस अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज किया गया था। कुरैशी ने बताया कि वह लाहौर हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुके हैं, जिसमें सॉन्डर्स मर्डर केस की दोबारा जांच करके तीनों शहीदों को बेगुनाह साबित करने की मांग की गई है। कुरैशी ने बताया कि फांसी के करीब 8 दशक बाद कोर्ट के आदेश पर लाहौर पुलिस ने अनारकली थाने के रिकॉर्ड खंगाले और सॉन्डर्स मर्डर केस की एफआईआर पेश की।
उर्दू में लिखी यह एफआईआर 17 दिसंबर 1928 के दिन अनारकली पुलिस थाने में शाम 4:30 बजे दर्ज की गई थी। यह शिकायत अनारकली थाने के एक अधिकारी ने दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता और प्रत्यक्षदर्शी ने बताया था कि आरोपी का कद करीब 5 फुट 5 इंच था। देखने में वह हिंदू लग रहा था। उसके छोटी मूंछे थीं। वह स्लिम और मजबूत शरीर का मालिक था। उसने सफेद पायजामा और ग्रे शर्ट के साथ काले रंग की क्रिस्टी हैट पहन रखी थी।
कुरैशी ने मीडिया को बताया, ‘‘यह केस आईपीसी की धारा 302, 102 और 109 के तहत दर्ज किया गया था। लाहौर पुलिस के एक इंस्पेक्टर ने एफआईआर की प्रमाणित कॉपी लिफाफे में सीलबंद करके शनिवार को अडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज (लाहौर) तारिक महमूद जरघाम को सौंपी थी।’’