Kulbhushan Jadhav Case: जेनेवा में भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव दीपक मित्तल का पाकिस्तान के अटॉर्नी जर्नल (एजी) अनवर मंसूर खान से जब सामना हुआ, तो उन्होंने शुरू में खान को नजरअंदाज कर दिया था। आगे हाथ मिलाने की बारी आई, तब मित्तल ने नमस्ते कहकर जवाब दे दिया। भारतीय अफसर का यह अंदाज आस-पास में मौजूद सभी लोग देखते रह गए। दरअसल, सोमवार (18 फरवरी, 2019) को दोनों देश भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले के सिलसिले में द हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में हाजिर हुए थे।

कोर्ट में तर्क रखे जाने से पहले खान ने मित्तल को देखते ही उनकी ओर हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया था, पर मित्तल ने उसका नमस्ते से जवाब देना ही ठीक समझा। आगे सुनवाई में भारत ने मांग की कि पाक के मिलिट्री कोर्ट द्वारा जाधव पर चलाया गया मुकदमा कानूनी प्रक्रिया के न्यूनतम मानकों को भी पूरा करने में नाकाम रहा। ऐसे में आईसीजे उस मुकदमे को ‘गैरकानूनी’ घोषित कर दे।

भारत ने सुनवाई के पहले दिन दो मूल मुद्दों के आधार पर पक्ष रखा। इनमें राजनयिक संपर्क पर वियना संधि का उल्लंघन शामिल है। भारत ने सुनवाई के पहले दिन दो मूल मुद्दों के आधार पर पक्ष रखा। इनमें राजनयिक संपर्क पर वियना संधि का उल्लंघन शामिल है। देश का प्रतिनिधित्व कर रहे पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे बोले, “यह ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण मामला है, जहां एक निर्दोष भारतीय की जिंदगी दांव पर है। पाक का पक्ष पूरी तरह से जुमलों पर आधारित है, तथ्यों पर नहीं।”

बकौल साल्वे- राजनयिक संपर्क के बिना जाधव को निरंतर हिरासत में रखने को गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए। पाक ने ने आतंकवाद के किसी कृत्य में जाधव की संलिप्तता के ‘विश्वसनीय साक्ष्य’ नहीं दिए। जाधव का कथित कबूलनामा स्पष्ट रूप से ‘दबाव में’ दिया गया बयान नजर आता है।

बहरहाल, पाकिस्तान के एजी से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय अफसर के हाथ न मिलाने पर कई मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो मित्तल के इस अंदाज से देश ने पुलवामा हमले को लेकर इशारों में पाक के खिलाफ विरोध जाहिर किया। रोचक बात है कि सुनवाई में यह वाकया तब देखने को मिला, जब चार दिन पहले (14 फरवरी) जम्मू-कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए, जिस पर दोनों मुल्कों के रिश्ते तल्ख हैं।

बता दें कि अप्रैल 2017 में 48 वर्षीय जाधव को पाकिस्तान के मिलिट्री कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। पाक ने उन पर जासूसी और आतंकवाद के आरोप लगाए थे, जबकि उसी साल मई में भारत पड़ोसी मुल्क के फैसले को लेकर न्याय के लिए आईसीजे पहुंचा था। सोमवार को उसी मामले पर चार दिवसीय सार्वजनिक सुनवाई की शुरुआत हुई है। सुनवाई के बीच देश ने पाक पर आईसीजे का दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।