Koregaon-Bhima Violence: भीमा-कोरेगांव हिंसा (Koregaon-Bhima Violence) मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा (Gautam Navlakha) जमानत पर रिहा कर दिया गया है। हालांकि, रिहा होने के बाद उन्हें नजरबंद रहना होगा। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश के बाद नवलखा को शनिवार (19 नवंबर, 2022) को तलोजा केंद्रीय कारागार से रिहा कर दिया गया। अब उन्हें नवी मुंबई में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के स्वामित्व वाले एक सामुदायिक हॉल में नजरबंद रखा जाएगा।

नवलखा को घर में नजरबंद रखने के 10 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को वापस लेने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अर्जी दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने शुक्रवार को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि नवलखा को 24 घंटे के अंदर जेल से शिफ्ट करके घर में नजरबंद किया जाए। बता दें कि नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में जेल में बंद थे।

एक्टिविस्ट गौतम नवलखा हुए जेल से रिहा

शीर्ष अदालत ने नवलखा को उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण नजरबंद करने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने आदेश में कुछ शर्तें भी रखी हैं। उन्हें हाउस अरेस्ट के दौरान सीसीटीवी निगरानी में रहना होगा, ​​फोन इस्तेमाल नहीं कर सकते और इंटरनेट उपयोग करने पर भी प्रतिबंध है। इसके अलावा, कोर्ट ने नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन को उनकी बहन की जगह उनके साथ रहने की इजाजत दे दी है।

एनआईए ने चुने गए परिसरों पर सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए हाउस अरेस्ट पर आपत्ति जताई थी । एनआईए की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने अदालत को बताया कि यह इमारत कम्युनिस्ट पार्टी की है और यह फ्लैट नहीं बल्कि एक सार्वजनिक पुस्तकालय का हिस्सा है।

एनआईए की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी को चेतावनी दी कि अगर आप हमारे आदेश की अवहेलना करने के लिए कोई खामी खोजने की कोशिश कर रहे हैं, तो हम इसे गंभीरता से लेंगे। इससे पहले बुधवार को शीर्ष अदालत ने नवलखा की हाउस अरेस्ट के लिए तलोजा जेल से रिहाई के लिए सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट की आवश्यकता को समाप्त कर दिया था।

बता दें कि वह भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में यूएपीए के आरोपों का सामना कर रहे हैं। यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस का दावा है कि इन भाषणों के कारण अगल दिन इलाके में हिंसा भड़क गई थी। पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया कि कॉन्क्लेव का आयोजन माओवादियों से जुड़े लोगों ने किया था। बाद में ये जांच एनआईए के पास चली गई थी।