पिछले साल सितंबर में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया था। सरकार का वादा था कि वह राज्य छोड़कर बाहर रहने के लिए मजबूर कश्मीरी पंडितों को वापस बसाएगी। हालांकि, इसके बावजूद घाटी में कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े संगठन- कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) ने स्थानीय प्रशासन द्वारा परेशान किए जाने और अकेला छोड़े जाने का आरोप लगाया है। इसी के चलते संगठन के मुखिया संजय टिक्कू ने फैसला किया है कि वे तब तक आमरण अनशन पर बैठेंगे, जब तक उनकी मांगें नहीं मान ली जातीं।

टिक्कू के मुताबिक, अगर प्रशासन की तरफ से उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो घाटी में रहने वाले 808 कश्मीरी पंडितों के परिवार, जिन्होंने आतंकवाद बढ़ने के बावजूद घाटी छोड़ने के बजाय अपने घरों में ही रुकने का फैसला किया, वे भी प्रशासन के खिलाफ अनशन करेंगे। साथ ही कई युवा भी प्रदर्शन का हिस्सा बनेंगे।

क्या है कश्मीरी पंडितों की मांगें?: कश्मीरी पंडितों की मांग है कि उन्हें सरकारी नौकरियां मुहैया कराई जाएं। संगठन ने कम से कम 500 सरकारी नौकरियों की मांग रखी है। समुदाय का कहना है कि इन नौकरियों की गारंटी उन्हें 2016 के एक हाईकोर्ट के फैसले और गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश से मिली थी। इसके अलावा घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों तक पहुंचने वाले मदद और आर्थिक सहायता रोकने वाले अधिकारियों पर विजिलेंस जांच की भी मांग की गई है। इसके अलावा प्रवासियों के कल्याण के लिए बनाए गए फंड को गैर-अप्रवासियों को देने की जांच की मांग भी की गई है।

टिक्कू ने ‘द प्रिंट’ मीडिया ग्रुप को बताया कि जल्द ही उनकी मांगों के लिए और लोग भी आमरण अनशन में जुटेंगे। उन्होंने बताया- “श्रीनगर डिप्टी कमिश्नर के ऑफिस से दो डिप्टी क्लर्क मेरे पास अनशन शुरू करने की वजह पूछने आए थे। मैंने सिर्फ उन्हें अपनी मांगें बताईं, लेकिन तब से लेकर अब तक कुछ नहीं हुआ है। अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो हमारे समुदाय के दूसरे लोग भी अनशन से जुड़ेंगे।