Article 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म होने के बाद जम्मू और कश्मीर में मोदी सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदियों पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की। शीर्ष कोर्ट ने सख्त लहजे में साफ किया, “प्रतिबंधों के पीछे पुख्ता वजह होना जरूरी है। जब तक बहुत जरूरी न हो तब तक इंटरनेट पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।” कोर्ट ने इन पाबंदियों की समीक्षा का आदेश देते हुए सात दिनों का वक्त दिया है। साथ ही कहा है कि लगातार प्रतिबंध लगाए रहना सत्ता का दुरुपयोग है।

कोर्ट ने अनुच्छेद 370 के प्रावधान खत्म होने के बाद इस मसले पर दी गई याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणियां कीं। समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि नागरिक अधिकारों की रक्षा करना जरूरी है। आप बेवजह इंटरनेट पर रोक नहीं लगा सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि सात दिनों के भीतर धारा 144 की समीक्षा की जानी चाहिेए।

बकौल कोर्ट, “इसमें कोई दोराय नहीं है कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी बेहद अहम चीज है। बोलने की आजादी से जुड़े आर्टिकल 19 (1) (ए) के तहत इंटरनेट की सुविधा संवैधानिक अधिकार है।”

हालांकि, कोर्ट ने यह भी बताया कि कश्मीर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। और, राजनीति में दखल देना उसका काम नहीं है। फैसले के दौरान कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर प्रशासन से यह भी कहा कि वह हफ्ते भर में पाबंदियों से संबंधित सभी आदेशों की समीक्षा करे। और, जल्द से जल्द ई-बैंकिंग और व्यापारिक सेवाएं बहाल की जाएं।

सुनवाई के बाद वकील सदन फरासत ने इस बारे में पत्रकारों को बताया, “कोर्ट ने कहा है कि हमारे संविधान के तहत सरकार द्वारा अनिश्चकालीन इंटरनेट प्रतिबंध मान्य नहीं है। यानी सरकार इसे लंबे समय तक नहीं लागू कर के सकती है। साथ ही यह सत्ता का भी दुरुपयोग है।”

ये हैं SC के फैसले की बड़ी बातें:

– इंटरनेट की बेमियादी प्रतिबंध पर सवालिया निशान लगे
– 7 दिनों के अंदर पाबंदियों की समीक्षा होनी है
– प्रतिबंध की समीक्षा के लिए कमेटी बनेगी
– धारा 144 की आवश्यक्ता पर जरूरी जवाब-तलब होगी
– हाल-ए-कश्मीर पर ग्राउंड रिपोर्ट मांगी गई है