जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कब होंगे, यह अभी तक क्लियर नहीं है। बीजेपी लगातार दावा कर रही है कि जब भी जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे, मोदी सरकार के कामकाज का फायदा उन्हें मिलेगा। इस बीच बीते शुक्रवार को बीजेपी जम्मू-कश्मीर ने एक बयान जारी कर संगठन में तीन बदलावों के बारे में जानकारी दी।

बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में अपने सोशल मीडिया प्रभारी अभिजीत जसरोटिया को हटा दिया और दो पदाधिकारियों- वीर सराफ (साउथ कश्मीर पूर्णकालिक) और मुद्दसिर वानी (नॉर्थ कश्मीर पूर्णकालिक) को जम्मू मुख्यालय वापस बुला लिया। ये दोनों पूर्णकालिक घाटी से ही संबंध रखते हैं।

जम्मू-कश्मीर बीजेपी का यह कदम घाटी में पार्टी के कई नेताओं द्वारा सामूहिक रूप से इस्तीफा देने की धमकी के तुरंत बाद आया है। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गुरुवार को कश्मीर पहुंचा था। कश्मीर घाटी के बहुत सारे बीजेपी नेताओं का आरोप है कि पार्टी लीडरशिप घाटी में अपने मुस्लिम नेताओं पर विश्वास नहीं करती है और उन पर जम्मू के नेताओं को थोपा जा रहा है।

क्यों नाराज हैं कश्मीर के बीजेपी नेता?

इस्तीफे के धमकी देने वाले घाटी के नेताओं में से एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि हम वो लोग हैं जिन्होंने बीजेपी को घाटी में पैर जमाने का मौका दिया। हमने उस समय बीजेपी ज्वॉइन की, जब कोई इस बारे में भी सोचता भी नहीं था। हमने उग्रवादियों की धमकी और हमलों का सामना किया और बलिदान दिया। हमारे काम और बलिदान की वजह से ही आप कश्मीर घाटी में लोगों को बीजेपी का झंडा उठाते हुए देखते हैं। लेकिन हमारे नेताओं के लिए हम अछूत बने हुए हैं। वो अभी भी सोचते हैं कि लीडरशिप रोल्स को लेकर हम पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

हालांकि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी लीडरशिप यह दिखा रही है कि इस मुद्दे को फिलहाल सुलझा लिया गया है लेकिन पिछले हफ्ते जो नाटक सामने आया वो एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है।

2015 के बाद कश्मीर में बड़ा बीजेपी का ग्राफ

जम्मू-कश्मीर में बीजेपी सिर्फ एक बार सत्ता का स्वाद ले पाई है, तब बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन किया था। जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का ज्यादातर सपोर्ट बेस जम्मू रीजन में ही है। हालांकि आतंकवाद शुरू होने से पहले भी बीजेपी के पास कश्मीर घाटी में कुछ चेहरे थे, लेकिन 2015 में पीडीपी के साथ गठबंधन में सत्ता में आने के बाद ही कश्मीर में बीजेपी नेतृत्व साफ तौर पर दिखाई देने लगा।

कश्मीर के गिने-चुने नेताओं को J&K BJP में दिया गया मौका

कहा जाता है कि कश्मीर घाटी में बीजेपी नेताओं पर जम्मू के लीडर्स का प्रभाव साफ तौर पर देखने को मिलता है। जम्मू-कश्मीर बीजेपी के अध्यक्ष रविंद्र रैना जम्मू रीजन से हैं। पार्टी के कोर ग्रुप के 18 सदस्यों में से सिर्फ एक सदस्य दरक्षण अंद्राबी (Darakshan Andrabi) कश्मीर से हैं। 11 उपाध्यक्षों में से सिर्फ 1 सोफी यूसूफ कश्मीर से हैं जबकि चार जनरल सेक्रेटरी में से एक भी कश्मीर घाटी से नहीं है। जम्मू-कश्मीर बीजेपी के 20 प्रवक्ताओं में से सिर्फ 2 कश्मीरी हैं। पार्टी के 94 कार्यकारी समिति के सदस्यों में से 10 से भी कम घाटी से हैं।

अचानक नहीं फूटा कश्मीर के नेताओं का गुस्सा

कश्मीर घाटी में बीजेपी नेतृत्व विशेषकर युवाओं में लंबे समय से नाराजगी थी क्योंकि लोकल यूनिट के अधिकांश पद जम्मू के नेताओं को दे दिए थे। बीते बुधवार को घाटी के बीजेपी नेताओं का गुस्सा उस समय फूटा, जब वो श्रीनगर के एक होटल में मिले और उन्होंने पार्टी नेतृत्व को सामूहिक इस्तीफे की धमकी दे दी।

कश्मीर घाटी से बीजेपी के एक नेता ने कहा कि हम हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं कर रहा है। चाहे जो भी सक्षम हो- हिंदू या मुस्लिम- जम्मू से या कश्मीर से उसका यहां स्वागत है। हमारे पास अशोक कौल और सुनील शर्मा जैसे नेता हैं जिनकी विधानसभा घाटी में है।

उन्होंने आगे कहा कि समस्या ये है कि जब कश्मीर के इतिहास, कल्चर और सियासत से अनजान लोगों को जब यहां भेज दिया जाता है। जम्मू से कई अन्य नेता भी हैं जो यहां आते हैं, बैठकें बुलाते हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश देते हैं जबकि पार्टी ने उन्हें ऐसा करने का आदेश भी नहीं दिया है। हम नाराज हैं क्योंकि पार्टी उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेती।

कश्मीर बीजेपी नेताओं का कहना है कि घाटी में “राजनीतिक नौसिखियों” को भेजकर बीजेपी ने खुद को नुकसान पहुंचाया है। एक अन्य युवा नेता ने कहा कि इनमें से अधिकतर लोग यहां के हालात से निपटने में सक्षम नहीं हैं। वे खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए पार्टी के भीतर लॉबी और गुट बनाते हैं, जो घाटी में पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। वो आगे कहते हैं कि कश्मीर में हमारे पास सक्षम नेता हैं। उन्हें पद क्यों नहीं दिए जा रहे हैं? वो चुनौतियों के सामने खड़े हुए, किसी भी दबाव के आगे झुके बिना पार्टी के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया है।