Karnataka News: कर्नाटक के चामराजनगर स्थित एक मठ में सोमवार को 22 वर्षीय एक संत को अपना पद छोड़ना पड़ा। इसकी वजह यह रही कि ग्रामीणों को पता चल गया था कि लिंगायत संत का बैकग्राउंड मुस्लिम समाज है, जिसके चलते ग्रामीणों ने उसकी बसव दीक्षा और नियुक्ति पर आपत्ति जताई, नतीजा ये कि उसे मठ से निकाल दिया गया।

लिंगायत मठ के संत का नाम निजलिंग स्वामी है जिन्होंने गुंडलुपेट तालुका में एक वर्ष पुराने मठ के महंत के रूप में मात्र छह सप्ताह तक सेवा की थी। निजलिंग ने पास साल पहले 17 साल की उम्र में धार्मिक दीक्षा ली थी जो कि मूल रूप से कर्नाटक के ही यादगीर जिले के रहने वाले हैं।

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आधार कार्ड से खुला सारा भेद

निजलिंग को लेकर पूरा विवाद पिछले हफ्ते शुरु हुआ था, जब एक लोकल शख्स ने उनका आधार कार्ड देख लिया था। इसके चलते उसे निजलिंग की पुरानी पहचान का पता लगा था। इसमें उसका धर्म इस्लाम लिखा हुआ था। इस बात की जानकारी के बाद भक्तों के एक वर्ग ने विरोध किया और दावा किया कि नियुक्ति से पहले उन्हें उनकी पृष्ठभूमि के बारे में पता नहीं था।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए निजलिंग स्वामी ने बताया कि उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में मोहम्मद निसार के रूप में हुआ था। वे बहुत कम उम्र में ही बसवन्ना और उनके विचारों की ओर आकर्षित हो गया था। मैं किसी भी लिंगायत की तरह पूजा-अर्चना करता था। मेरे माता-पिता डर गए और उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए एक मदरसे में भेज दिया। इसने मुझे एक नया आयाम दिया और 17 साल की उम्र में मैंने लिंगायत बनने के लिए दीक्षा ली।

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ऑस्ट्रेलिया के एक शख्स ने मठ के लिए दी जमीन

बता दें कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले एक व्यक्ति महादेव प्रसाद ने चामराजनगर जिले के चौडाहल्ली में एक मठ बनाने के लिए ज़मीन दान की थी। गुरुमल्लेश्वर शाखा मठ की स्थापना के बाद निजलिंग स्वामी को इसका प्रमुख नियुक्त किया गया क्योंकि वे पहले से ही बीदर के बसवकल्याण स्थित एक मठ में लिंगायत रीति-रिवाजों का पालन कर रहे थे।

निजलिंग ने बताया है कि उन्होंने मेरे गुरु से मठ के लिए एक संत का सुझाव मांगा और उन्होंने मेरा नाम सुझाया। कुछ शुभचिंतकों ने मुझे अपनी पिछली पहचान मुस्लिम के रूप में उजागर न करने और मठ की बेहतरी के लिए काम करने को कहा। संत के पास दो मोबाइल फोन थे, जिनमें से एक का इस्तेमाल उन्होंने दीक्षा लेने से पहले किया था। पिछले हफ़्ते निजलिंग स्वामी का मोबाइल काम नहीं कर रहा था, इसलिए उनके एक कर्मचारी ने उनका मोबाइल फोन मांगा और संत ने उसे पुराना मोबाइल फोन दे दिया।

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निजलिंग का फोन देखने पर मिली बड़ी जानकारी

निजलिंग का फोन देखने पर कर्मचारी को उसमें आधार कार्ड, टोपी पहने निसार की तस्वीरें और बीयर की बोतल पकड़े एक और तस्वीर दिखाई दी। उसने तुरंत मठ के भक्तों को इसकी सूचना दी। पूछताछ करने पर संत ने स्वीकार किया कि लिंगायत धर्म अपनाने से पहले वे मुसलमान थे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म परिवर्तन के बाद उन्होंने बीयर पीने जैसी कोई “अपवित्र” गतिविधि नहीं की। हालाकि, तब तक भक्तों ने उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।

दूसरे मठ में शरण की तलाश

निजलिंग स्वामी ने कहा कि मैंने अपने माता-पिता और इस्लाम धर्म सिर्फ़ इसलिए छोड़ा क्योंकि मैं बसवन्ना की विचारधारा में विश्वास करता हूं। मैं ऐसा करता रहूगा और मुझे ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता। कई संत और लिंगायत समुदाय के लोग मेरे समर्थन में आगे आए हैं। हावेरी ज़िला के एक अन्य लिंगायत मठ ने मुझे शरण दी है। मैं बसवन्ना और उनके विचारों का अनुसरण करता रहूंगा।

हालांकि, जब इस मामले में विवाद बढ़ गया तो उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने उनके चरित्र के खिलाफ अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं और यहां तक कि उन पर वित्तीय हेराफेरी का झूठा दावा भी किया। उन्होंने आगे कहा कि मैं हार नहीं मानूँगा, बल्कि अपना बाकी जीवन बसवन्ना के विचारों का प्रचार करने में लगा रहूंगा।

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