Karnataka Hassan Lok Sabha Seat: कर्नाटक की हाई प्रोफाइल सीट हासन लोकसभा पर गौड़ा परिवार का वर्चस्व है। मोदी लहर में जब देश के बड़े-बड़े किले ढह गए, ऐसे में भी यह सीट बीजेपी जीत नहीं पाई। इतिहास पर नजर डालें तो बीजेपी आज तक एक बार भी इस सीट पर काबिज होने में कामयाब नहीं हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना ने यहां से जीत दर्ज की थी।

हासन जिले को ‘रिपब्लिक ऑफ जेडीएस’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका बड़ा कारण वोक्कालिगा समुदाय की गौड़ा परिवार के प्रति निष्ठा है। यहां से पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने जब भी चुनाव लड़ा उन्हें जीत ही हासिल हुई। यह जिला पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और एचडी रेवन्ना का घर है। इस परिवार की वोक्कालिगा वोट बैंक पर काफी मजबूत पकड़ है।

2024 को लोकसभा चुनाव को लेकर हासन लोकसभा सीट को वर्चस्व की जंग के रूप में देखा जा रही है। क्योंकि यहां गौड़ा वर्सेस गौड़ा की पुरानी जंग है, जो अब भी कायम है।

हासन लोकसभा सीट से प्रज्वल और श्रेयस की टक्कर

इसी बीच 92 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने शनिवार को अपने पोते सांसद प्रज्वल रेवन्ना के लिए वोट मांगे। इस दौरान उन्होंने गृहनगर हासन में तेज गर्मी के बाद भी एक रोड शो किया। क्योंकि देवेगौड़ा इस सीट से कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं, यही वजह कि पूर्व प्रधानमंत्री को घर से बाहर निकलना पड़ा।

स्थानीय राजनीति में उनके सबसे कट्टर दुश्मन दिवंगत जी पुट्टस्वामी गौड़ा एक बार फिर हासन में देवेगौड़ा कबीले को परेशान करने के लिए लौट से आए हैं, जिससे जनता दल (सेक्युलर) खेमे में घबराहट फैल गई है। क्योंकि कांग्रेस ने पुट्टस्वामी गौड़ा के पोते श्रेयस को हासन में इस उम्मीद से मैदान में उतारा है कि वहां पूर्व पीएम देवेगौड़ा के वर्चस्व को खत्म किया जा सके।

एचडी देवेगौड़ा और पुट्टस्वामी गौड़ा के बीच दुश्मनी प्रसिद्ध है, क्योंकि वे दशकों तक एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे, कुछ में जीत हासिल की और कुछ में हार गए। यही दुश्मनी की पुरानी पीढ़ी अब तीसरी पीढ़ी तक पहुंच गई है, जिससे यह कर्नाटक की राजनीति की सबसे पुरानी और भीषण लड़ाई बन गई है।

दोनों (एचडी देवेगौड़ा और पुट्टस्वामी गौड़ा)कभी घनिष्ठ मित्र हुआ करते थे। लेकिन 1980 के दशक की शुरुआत में दोनों ने एक-दूसरे खत्म करने की कसम खा ली और एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए।

इस तरह से देवेगौड़ा और पुटुस्वामी के बीच चला राजनीतिक युद्ध

1989 के विधानसभा चुनाव में देवेगौड़ा को पुट्टस्वामी गौड़ा के हाथों अपनी पहली चुनावी हार का सामना करना पड़ा। विजयी गौड़ा कर्नाटक सरकार में एक प्रमुख कैबिनेट मंत्री बने। 1994 में देवेगौड़ा के बेटे एचडी रेवन्ना ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में पुट्टस्वामी गौड़ा को हराया। देवेगौड़ा मुख्यमंत्री भी बने और प्रधानमंत्री भी।

पराजित और घायल पुट्टस्वामी गौड़ा को उन पांच वर्षों के दौरान बहुत कठिन समय से गुज़रना पड़ा। लेकिन, 1999 के संसदीय चुनाव में पुट्टस्वामी गौड़ा ने पूर्व प्रधानमंत्री को भारी अंतर से हरा दिया। उस चुनाव में देवेगौड़ा परिवार का सफाया हो गया और वे सभी सीटें हार गये।

2004 के आम चुनावों में एचडी देवेगौड़ा हासन लौट आए और पुट्टस्वामी गौड़ा को हराया। दो साल बाद पुट्टस्वामी गौड़ा की कई अंगों की विफलता के कारण मृत्यु हो गई। सभी ने सोचा कि दुश्मनी यहीं खत्म हो जाएगी, क्योंकि उनके इकलौते बेटे की पहले ही मौत हो चुकी थी।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में पुट्टस्वामी गौड़ा की बहू अनुपमा ने होलेनारासीपुरा में कांग्रेस के टिकट पर एचडी रेवन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहीं। उन्होंने देवेगौड़ा परिवार से हाथ मिलाने से इनकार करते हुए पारिवारिक शत्रुता का झंडा बुलंद रखा।

पिछले विधानसभा चुनाव में उनके 20 साल के युवा बेटे श्रेयस पटेल ने एचडी रेवन्ना को हराया और होलेनरासिपुरा में केवल दो हजार वोटों से हार गए। अब वह कर्नाटक के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले चुनावों में से एक में रेवन्ना के बेटे प्रज्वल का सामना कर रहे हैं। कुछ स्थानीय लोगों के मुताबिक इस चुनाव पर लोग कई लाख रुपये का सट्टा लगा रहे हैं।

प्रज्वल को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है और हासन के पूर्व भाजपा विधायक प्रीतम गौड़ा प्रचार में उनसे दूरी बनाए हुए हैं। हासन में भारतीय जनता पार्टी तीसरे स्थान पर है और उसने इस चुनाव में राज्य में अपने छोटे साथी जद (एस) को समर्थन दिया है।

हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया रेवन्ना के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए हैं, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार गौड़ा को उनके घरेलू मैदान में ही खत्म करना चाहते हैं। सिद्धारमैया के एचडी कुमारस्वामी और देवेगौड़ा के साथ बड़े मुद्दे हैं। उन्होंने जिला कांग्रेस को स्पष्ट निर्देश दिया है कि किसी भी कीमत पर प्रज्वल को हराना है।

अपने-अपने बेटे के प्रचार में उतरीं अनुपमा और भवानी

इन घटनाक्रमों से चिंतित, बूढ़े और बीमार देवेगौड़ा मतदाताओं से आखिरी बार अपने परिवार की मदद करने की भावनात्मक अपील कर रहे हैं, और दावा कर रहे हैं कि वह अगले चुनाव के लिए जीवित नहीं रहेंगे।

जिले के सकलेशपुरा शहर के एक कॉफी बागान मालिक के अनुसार, लिंगायत, जो भाजपा का मुख्य वोट बैंक हैं, प्रज्वल से खुश नहीं हैं और वे पुट्टस्वामी गौड़ा के पारंपरिक समर्थक रहे हैं और शायद उनका समर्थन भी कर सकते हैं।

श्रेयस की मां अनुपमा और प्रज्वल की मां भवानी भी अपने बेटे के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं, जिससे चुनाव हाई प्रोफाइल हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि नतीजा चाहे जो भी हो, दुश्मनी लंबे समय तक जारी रहेगी।