Karnataka Caste Survey: कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग यानी KSBCC द्वारा सिद्धारमैया सरकार को प्रस्तुत किए जाने के 13 महीने बाद 11 अप्रैल को कैबिनेट में पेश की गई। कर्नाटक जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ओबीसी की जनसंख्या 69.6% है, जो मौजूदा अनुमान से 38% अधिक है। सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण ने राज्य में ओबीसी कोटा को मौजूदा 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की।

कर्नाटक की इस जातिगत सर्वे की रिपोर्ट को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। इसमें सबसे पिछड़े वर्गों के बीच एक नई सबकैटेगरी बनाने की सिफारिश की गई है, ताकि उन समुदायों को समायोजित किया जा सके, जो वर्तमान में ओबीसी और दलितों के बीच समायोजित किए गए हैं या फिर ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं।

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2014 में ही हो गया था सर्वे

बता दें कि जातिगत सर्वे की यह रिपोर्ट 2014 में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के दौरान तत्कालीन केएसबीसीसी अध्यक्ष एच कंथराज की अध्यक्षता में बने एक पैनल द्वारा तैयार की गई थी। यह रिपोर्ट पिछले साल 29 फरवरी को प्रस्तुत की गई थी लेकिन कांग्रेस के भीतर वोक्कालिगा और लिंगायत जैसे प्रमुख समुदायों की संभावित नेगेटिव प्रभाव के बारे में आशंकाओं के कारण इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। उस दौरान वोक्कालिगा से संबंध रखने वाले उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी सर्वेक्षण जारी करने का विरोध किया।

जातिगत सर्वे और जनगणना की मांग कर रही है कांग्रेस

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने पिछले सप्ताह अहमदाबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सत्र में सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। 9 अप्रैल के प्रस्ताव में कांग्रेस शासित तेलंगाना में किए गए जाति सर्वेक्षण पर प्रकाश डाला गया और राष्ट्रीय जनगणना की मांग की गई। इसके दो दिन बाद ही 11 अप्रैल को कर्नाटक में ये रिपोर्ट पेश कर दी गई। जातिगत सर्वे के अन्य प्रमुख निष्कर्षों में यह अहम है कि मुख्य पिछड़ी जातियों में सभी समुदायों की संख्या आरक्षण के लिए अनुमानित संख्या से अधिक है।

वोक्कालिगा और लिंगायत को लेकर सर्वे में क्या?

ओबीसी आरक्षण की III ए और III बी श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले दो प्रमुख समुदायों, वोक्कालिगा और लिंगायत की संख्या क्रमशः 12.2% और 13.6% पाई गई है। इन प्रभावशाली समुदायों की सामान्य जनसंख्या का अनुमान 17 और 15 प्रतिशत तक है। इन्हें राज्य की नौकरियों और शिक्षा में भी आरक्षण मिलता है। उनका ओबीसी आरक्षण वर्तमान में क्रमशः 4% और 5% है। दोनों समुदाय हाल के दिनों में बढ़े हुए कोटे की मांग कर रहे हैं।

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मुस्लिम एवं अन्य ओबीसी

कर्नाटक में पिछड़े वर्गों की II B श्रेणी में आने वाले मुसलमानों की संख्या 12.58% आंकी गई है, जो दलितों (102 उपजातियां) हैं और लिंगायतों के बाद सबसे बड़ा समूह है। वर्तमान में II A श्रेणी में रखे गए OBC की संख्या 25.36% पाई गई। सबसे पिछड़ा वर्ग (IA श्रेणी) 5.84% है। मुसलमानों को वर्तमान में II B श्रेणी के तहत 4% कोटा मिलता है, जबकि उनकी आबादी लगभग 12% होने का अनुमान है।

ओबीसी को II A श्रेणी के तहत 15% मिलता है, जबकि सबसे पिछड़े वर्गों को IA श्रेणी के तहत 4% कोटा मिलता है, जबकि दोनों समूहों की संयुक्त आबादी 33% होने का अनुमान है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ ओबीसी और मुसलमानों को कांग्रेस का प्रमुख और पारंपरिक वोट आधार माना जाता है।

सर्वेक्षण में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 32% से बढ़ाकर 51% करने का प्रस्ताव है। राज्य में कुल आरक्षण सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 75% तक पहुंच जाएगा। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण जोड़ने पर यह 85% हो जाएगा। नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने EWS कोटा को मंजूरी देते हुए कहा था कि 50% की सीमा अटल नहीं है।

कैबिनेट 17 अप्रैल को करेगी विस्तृत चर्चा

11 अप्रैल को कैबिनेट की बैठक में रिपोर्ट के निष्कर्षों पर 17 अप्रैल को गहन चर्चा करने का निर्णय लिया गया। हालांकि, पार्टी के नेताओं के प्रभावशाली वर्ग की ओर से इसका विरोध होने की उम्मीद है। हालांकि डिप्टी सीएम शिवकुमार और उद्योग मंत्री एमबी पाटिल जाति सर्वेक्षण के मुखर आलोचक रहे हैं, लेकिन अब उनसे पार्टी नेतृत्व के अनुसार काम करने की उम्मीद है, क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के समर्थन के कारण रिपोर्ट चर्चा में आई है।

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इन सिफारिशों ने सर्वेक्षण के प्राथमिक प्रभाव को कम कर दिया है तथा प्रत्येक ओबीसी समूह के लिए कुछ न कुछ सिफारिश की गई है। माना जा रहा है कि रिपोर्ट पर किसी भी नेगेटिव प्रतिक्रिया से बचने के लिए उनके पास कुछ तरकीबें हैं। ऐसा ही एक कदम फिर से सर्वेक्षण हो सकता है, जिसका आदेश हाल ही में राज्य में अनुसूचित जातियों को आंतरिक आरक्षण प्रदान करने के लिए एक मानदंड पर पहुंचने के लिए दिया गया था।

सीएम सिद्धारमैया ने सर्वेक्षण के लिए क्या कहा?

सीएम सिद्धारमैया ने रिपोर्ट पेश किये जाने का स्वागत करते हुए पूछा कि यदि हमारे पास जातिगत आंकड़े नहीं हैं, तो हम परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को कैसे समझ सकते हैं? सीएम ने कहा कि अदालतें हमेशा डेटा मांगती हैं। उन्होंने कहा कि अदालतों द्वारा डेटा मांगा जा रहा है। यह मंडल आयोग का भी एक हिस्सा था। सर्वेक्षण में 1.6 लाख लोग शामिल थे और 1.33 लाख शिक्षक थे। शिक्षक समुदाय में ज़्यादातर सामान्य वर्ग से हैं। इस आधार पर सर्वेक्षण पर सवाल कैसे उठाया जा सकता है?

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BJP-JDS ने बोला हमला

दूसरी ओर जेडीएस और बीजेपी ने जाति जनगणना को सिद्धारमैया की सत्ता में बने रहने की कोशिश करार दिया है। जेडीएस नेता और केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि जाति जनगणना का कोई मतलब नहीं है। कंथराज आयोग की रिपोर्ट एक दशक पहले तैयार की गई थी। इसे लागू क्यों नहीं किया गया? अब, विफल गारंटियों, भ्रष्टाचार और मूल्य वृद्धि पर जनता के आक्रोश के साथ, सरकार लोगों को गुमराह कर रही है।

वहीं बीजेपी सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि सिद्धारमैया ओबीसी को लेकर केवल दिखावटी बातें कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ़ पिछड़े समुदायों के बारे में बात करने से किसी का पेट नहीं भरेगा। पिछले तीन-चार सालों से वे इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं। सिद्धारमैया प्रतिबद्ध नहीं हैं। जहां प्रतिबद्धता नहीं है, वहां समिति बनाई जाएगी।

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