Kargil Vijay Diwas: आज कारगिल युद्घ में भारत को विजय मिले 25 साल हो गए हैं और पूरे देश में एक तरफ जहां एक विजय का जश्न मनाया जा रहा है तो दूसरी ओर उन शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी जा रही है, जिन्होंने इस युद्ध में देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। यह युद्ध उस इलाके में लड़ा गया था, जहां तापमान -50 डिग्री से भी कम था। इस युद्ध के दौरान एक समय ऐसा भी आया था कि जब दो भारतीय जनरल पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करने को लेकर आमने-सामने आ गए थे।
मुशर्रफ की फौज का मुकाबला करने को लेकर दो जनरलों के बीच इस बात को लेकर बंद कमरे में बहस हुई थी कि क्या युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल किया जाए या नहीं। लड़ाई के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख रहे वेद प्रकास मलिक यह चाहते थे कि युद्ध में एयरफोर्स को उतारा जाए, दूसरी ओर वायुसेना अध्यक्ष यशवंत टिपनिस इसको महत्व नहीं दे रहे थे। हालांकि तत्कालीन चीफ ऑफ एयरस्टाफ चंद्रशेखर कारगिल में वायुसेना भेजने क पक्ष में थे और उन्होंने इसकी पैरवी की थी।
अंत में वायुसेना के इस्तेमाल पर बनी थी सहमति
सेना अध्यक्ष वीपी मलिक ने युद्ध के दौरान बंद कमरों की एक मीटिंग में यह स्पष्ट किया था कि कारगिल व लद्दाख में लड़ रही सेना के लिए वायुसेना की मदद पहुंचना जरूरी है। मैं इसके लिए कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) के सामने आपका यानी अनिल यशवंत टिपनिस का विरोध करूंगा। इसके बाद कभी सीसीएस तो कभी विदेश मंत्री जसवंत सिंह वायु सेना के इस्तेमाल के खिलाफ खड़े हो गए। हालांकि बाद में वायुसेना को कारगिल में उतारने को लेकर सहमति बन गई थी।
पूर्व सेनाध्यक्ष ने अपनी किताब में किया था जिक्र
दरअसल, कारगिल की लड़ाई में भारतीय वायु सेना की भूमिका को लेकर सेनाध्यक्ष जन. वीपी मलिक ने अपनी किताब ‘फ्रॉम सरप्राइज टू विक्टरी’ में अहम बिंदु पेश किए हैं। किताब में बताया गया है कि कारगिल में एयरफोर्स भेजी जाए या नहीं, इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व को राजी करना आसान नहीं था। एक समय ऐसा भी आया, जब इस मुद्दे पर वायुसेना चीफ और थल सेना प्रमुख के बीच सहमति नहीं बन सकी। कभी रक्षा मंत्रालय तो कभी विदेश मंत्रालय, इस राह में बाधा बन जाता था।
पूर्व सेनाध्यक्ष ने अपनी किताब में कहा था कि पाकिस्तान की सेना के प्रमुख परवेज मुशर्रफ को भी यह अहसास था कि देर सवेर, वायुसेना कारगिल में पहुंच सकती है। उन्होंने पहले ही धमकी दे डाली कि भारत ने कोई बड़ा कदम यानी एयर मारक क्षमता का इस्तेमाल या मिसाइल जैसा कुछ दागा तो पाकिस्तान उसका जवाब देगा। जानकारी के मुताबिक 18 मई 1999 को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक चल रही थी और उस दौरान तत्कालीन वाइस चीफ ऑफ एयरस्टाफ चंद्रशेखर ने जन. वीपी मलिक का समर्थन करते हुए कारगिल में वायुसेना की मदद की बात कही। उन्होंने कहा कि इस अपमानजनक स्थिति में वायुसेना की मारक क्षमता का इस्तेमाल जरूरी है। सीसीएस ने उनके प्रपोजल को नकार दिया।
सीसीएस ने नकार दी थी वायुसेना के इस्तेमाल की बात
सेनाध्यक्ष मलिक के मुताबिक चंद्रशेखर ने मुझे विश्वास दिलाया कि कारगिल में वायुसेना की उपस्थिति जरूरी है। वायुसेना और नेवी के मामले में भारत, पाकिस्तान पर भारी हैं। बैठकें और तर्क-वितर्क चलते रहे, मगर हमें अपने फाइटर जहाजों को उड़ाने की मंजूरी नहीं मिली। सीसीएस का मानना था कि वायुसेना कारगिल नहीं जाएगी। हमें पाक के इरादों का पता नही है। हमारी छोटी सी गलती युद्ध को बुलावा दे सकती है। ऐसी हालत में भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था को कैसे और क्या जवाब देगी।
दूसरी मीटिंग में बनी थी सहमति
सेनाध्यक्ष ने अपनी किताब में बताया कि जब दोबारा अहम बैठक हुई तो उसमें नौसेना प्रमुख सुशील कुमार भी शामिल हुए थे। उन्होंने वायुसेना के इस्तेमाल का समर्थन किया। हालांकि वायुसेना अध्यक्ष अनिल यशवंत टिपनिस उस वक्त तक खुद भी इस पहल को कोई खास तव्वजो नहीं दे रहे थे। उनका तर्क था कि ज्यादा ऊंचाई पर हेलीकॉप्टर ले जाना जोखिम भरा है। टिपनिस ने जनरल मलिक को पत्र लिखकर हवाई मारक क्षमता और राजनीतिक एवं सामरिक बाध्यता के बारे में बताया। अंत में लिखा, एक बार फिर सोचें। जन. मलिक ने जवाब दिया कि कारगिल व लद्दाख में लड़ रही सेना को वायुसेना का सहयोग जरूरी है। मैं इसके लिए सीसीएस के सामने आपका यानी टिपनिस का विरोध करूंगा।
सीसीएस की अगली बैठक में एनएसए ब्रजेश मिश्र, रॉ-आईबी, आर्मी इंटेलीजेंस और रक्षा मंत्रालय के अफसर भी बैठक में उपस्थित थे। वायुसेना को कारगिल भेजने पर सबकी सहमति बन ही रही थी कि विदेश मंत्री जसवंत सिंह अड़ गए। उन्होंने कहा है कि वायुसेना अगर कारगिल में उतरती है तो स्थिति बिगड़ जाएगी। अंतिम निर्णय यह हुआ कि पहले एलओसी से घुसपैठ हटाओ। हालांकि सीमा पार न करने की सख्त सलाह दी गई थी और 24 मई को युद्ध के मैदान में वायुसेना की एंट्री हो गई थी।