राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार (10 अगस्त, 2022) को भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति यूयू ललित की नियुक्ति के लिए एक नोटिस जारी किया। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना का स्थान लेंगे। जिनका कार्यकाल 26 अगस्त को समाप्त हो रहा है।
जस्टिस यूयू ललित मूल रूप से महाराष्ट्र के रहने वाले हैं। उनका जन्म 9 नवंबर, 1957 को हुआ था। उन्होंने जून 1983 में अपना कानूनी करियर शुरू किया और दिसंबर 1985 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में काम किया। बाद में वे दिल्ली चले गए। उन्हें अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक वरिष्ठ वकील के रूप में नियुक्त किया गया था।
8 नवंबर को पद से रिटायर हो जाएंगे जस्टिस यूयू ललित
यूयू ललित के पिता जस्टिस यूआर ललित भी एक सीनियर एडवोकेट थे और दिल्ली हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं। जस्टिस ललित अटल सरकार में अटॉर्नी-जनरल रहे सोली जे. सोराबजी के साथ भी काम किया है। 13 अगस्त 2014 को जस्टिस ललित सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त हुए थे। जस्टिस ललित का कार्यकाल तीन महीने से कम का होगा। वह 8 नवंबर को पद से रिटायर होने के बाद 65 साल के हो जाएंगे।
13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त हुए
बार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश किए जाने से पहले यूयू ललित ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में कार्य किया। उन्हें 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया गया था।
4 अगस्त को CJI एनवी रमना ने की थी सिफारिश
बता दें, न्यायमूर्ति रमना ने 4 अगस्त को केंद्र को सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति ललित के नाम की सिफारिश करके अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति की प्रक्रिया को गति प्रदान की थी। CJI ने व्यक्तिगत रूप से अपने अनुशंसा पत्र की एक प्रति न्यायमूर्ति ललित को सौंपी थी।
24 अप्रैल, 2021 को एस ए बोबडे से भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में पदभार संभालने वाले भारत के 48 वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमना 16 महीने से अधिक के कार्यकाल के बाद 26 अगस्त को पद से रिटायर होंगे।
जस्टिस ललित से जुड़े हाई-प्रोफाइल केस
जस्टिस ललित कई हाई-प्रोफाइल मामलों से जुड़े रहे हैं। इसमें बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान का काला हिरण शिकार मामला, जन्मतिथि से जुड़ा पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह का मामला, तीन तलाक का मामला आदि शामिल हैं।
तीन तलाक और पॉक्सो एक्ट के साथ-साथ राजद्रोह कानून पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजने के मामले में जस्टिस ललित की तारीफ हुई थी। वहीं अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी न करने का आदेश देने की वजह से जस्टिस ललित आलोचना का शिकार भी हो चुके हैं। दरअसल, एससी एसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत केस दर्ज होने पर गिरफ्तारी तय होती है। क्योंकि एक्ट के सेक्शन 18 के तहत अग्रिम जमानत की मनाही है।
साल 2018 में जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने अग्रिम जमानत की इजाज़त दे दी थी। इससे आरोपी तुरंत गिरफ्तारी से बच सकते थे। कोर्ट के इस फैसले के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुआ था। आखिरकार केंद्र सरकार को कानून में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान दोबारा बहाल करना पड़ा।
जस्टिस यूयू ललित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कर चुके हैं पैरवी
जस्टिस ललित साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने। क्रिमिनल लॉ का अनुभव होने के कारण उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल केस लड़े। इसी कड़ी में उन्होंने तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की पैरवी की थी। इस मामलों में शाह पर हत्या और साजिश रचने का आरोप लगा था।