कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय ने न्यायपालिका से इस्तीफा देकर मंगलवार को राजनीति में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की। वह 7 मार्च को भाजपा में शामिल होंगे। इस्तीफा देने के बाद कोलकाता में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संभवत: 7 मार्च को दोपहर में एक कार्यक्रम का आयोजन होना है, जिसमें वह भाजपा में शामिल होंगे। जिसके बाद से एक न्यायाधीश के इस तरह के कदम उठाने पर चर्चा शुरू हो गयी है।
इससे पहले भी दो न्यायाधीशों के उदाहरण सामने आए हैं, जिन्होंने अलग-अलग परिस्थितियों में चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था। पहला उदाहरण भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) कोका सुब्बा राव हैं। उन्होंने 30 जून, 1966 को अमल कुमार सरकार के बाद सीजेआई के रूप में कार्यभार संभाला था। उन्होंने पद संभालने के महज एक साल के भीतर और अपनी सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले इस्तीफा दे दिया था। जिन परिस्थितियों में उन्होंने इस्तीफा दिया था उस समय इसकी काफी चर्चा हुई थी।
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कोका सुब्बा राव
फरवरी 1967 में, सुब्बा राव ने गोलकनाथ मामले में सरकार को हार दिलायी थी। इस फैसले में कहा गया कि संसद को किसी भी मौलिक अधिकार को छीनने का अधिकार नहीं होगा। लीगल स्कॉलर गैडबोइस लिखते हैं, “यह उस समय तक न्यायालय के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक कानून निर्णयों में से एक था।”
उसी महीने चौथा संसदीय चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस 283 सीटें जीतकर सत्ता में लौटी। दो महीने बाद 11 अप्रैल 1967 को राव ने इस्तीफा दिया था। न्यायाधीश सुब्बा राव को संसद में विपक्ष के नेता, स्वतंत्र पार्टी के मीनू मसानी ने 1967 में भारत के राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में आमंत्रित किया था। सुब्बा राव ने एक दिन बाद राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन स्वीकार कर लिया। हालांकि, कांग्रेस उम्मीदवार जाकिर हुसैन ने उन्हें 1.07 लाख वोटों से हराया था। चुनाव के बाद, सुब्बा राव ने किताबें लिखना और प्रकाशित करना जारी रखा। वह 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के भी कट्टर आलोचक थे।
जस्टिस बहरुल इस्लाम
दूसरा उदाहरण सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बहारुल इस्लाम का है, जिन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति से छह हफ्ते पहले इस्तीफा दे दिया था और 1983 में असम के बारपेटा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था। सुब्बा राव के विपरीत इस्लाम छोटी उम्र से ही राजनीति से जुड़े हुए थे। गैडबोइस लिखते हैं कि 1948 से 1956 तक इस्लाम असम सोशलिस्ट पार्टी की कार्यकारी समिति के सदस्य थे। वह 1956 में कांग्रेस में शामिल हुए और 1957 और 1972 के बीच असम कांग्रेस इकाई में कई पदों पर रहे। वह 3 अप्रैल, 1962 को कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए भी चुने गए और 1968 में उन्हें एक और कार्यकाल मिला।
इसके बाद, 20 जनवरी 1972 को उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और गुवाहाटी हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति स्वीकार कर ली। 4 दिसंबर, 1980 को इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया। 13 जनवरी 1983 को उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की। एक दिन बाद उन्हें बारपेटा से कांग्रेस का नामांकन मिल गया. कुछ हफ्ते बाद लोकसभा चुनाव होने वाले थे लेकिन असम आंदोलन के कारण बारपेटा में चुनाव नहीं हो सका। मई 1983 में वह दोबारा राज्यसभा सांसद बने।
(Story by Vidhatri Rao)