केंद्र की भाजपा सरकार भले ही तीन साल की उपलब्धियों का बखान करने जा रही हो लेकिन हजारों ऐसे भारतीय आईटी पेशेवर हैं जिन पर अब बेरोजगारी का संकट छा गया है। आईटी क्षेत्र की मशहूर कंपनी आईबीएम ने हजारों भारतीयों को नौकरी से बाहर करने का फैसला किया है। बता दें कि ऐसा माना जाता था कि दुनिया भर में हर तीन में से एक आईटी कर्मचारी आईबीएम का होता है। बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक, आईबीएम हिन्दुस्तान की कई यूनिट्स से लोगों की छंटनी करेगा। अगर ऐसा होता है तो यह केन्द्र सरकार के लिए झटका हो सकता है क्योंकि रोजगार सृजन की बात करने वाली मोदी सरकार के कार्यकाल में लोगों की नौकरियां जाएंगी। इससे सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ेगा।

अपने कर्मचारियों की छंटनी करने के मामले में आईबीएम स्थानीय आईटी क्षेत्र की कंपनियों विप्रो, इन्फोसिस, कॉग्निजेंट और टेक महिंद्रा की कतार में जा खड़ी हुई है। ये कंपनियां भी मैनिंग लीगेसी सिस्टम से लेकर डिजिटल और क्लाउड तक ऑटोमेशन के तकनीकि बदलाव के दौर में कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं। हालांकि, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आईबीएम (इंडिया) व्यापार में बदलाव और डिजिटल प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की मांग के साथ सभी परियोजनाओं में 100 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल कर रहा था प्राप्त करने” का लक्ष्य देख रहा था।

हालांकि, आईबीएम ने अभी तक ये खुलासा नहीं किया है कि 380,000 कर्मचारियों में से कितने भारतीय यूनिट के लिए हैं। आईबीएम के प्रवक्ता ने भी कहा, “यह वास्तव में ग़लत है। हम अफवाहों और अटकलों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।”

दरअसल, ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का चलन बढ़ने की वजह से आईटी सेक्टर में छंटनी शुरू हुई है। इन तकनीकि बदलाव की वजह से आईटी कंपनियों को अब लोगों की जरूरत कम होती जा रही है। वहीं ग्लोबल इकोनॉमी में मंदी जारी रहने का असर आईटी सेक्टर की कंपनियों की ग्रोथ पर भी दिखने लगा है। उधर, आईटी सेक्रेटरी का कहना है कि सरकार की नजर इस पर बनी हुई है। कुछ छंटनीग्रस्त आईटी कर्मचारियों के लामबंद होने की भी खबरें हैं। ये लोग अपनी छंटनी के खिलाफ कानूनी जंग का एलान कर सकते हैं।