Jharkhand Lok Sabha Elections: लोकसभा चुनाव को लेकर प्रवासी मजूदरों का झारखंड लौटना जारी है। उन्हीं में से एक बासुदेव हेम्ब्रोम हैं, जो वोट देने के लिए झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में अपने गांव पहुंचे हैं। वो ओडिशा में एक निर्माण स्थल पर काम करते हैं। वो अपनी पत्नी की वोट देने की अपील के बाद आए हैं। हेम्ब्रोम ने कहा कि लोगों ने भी उनसे मुझे फोन करने की अपील की थी।

सरायकेला-खरसावां झारखंड के कई जिलों में से एक है, जिसने राज्य के श्रम विभाग के साथ मिलकर पहली बार प्रवासी मजदूरों को वोट देने के लिए घर लौटने की अपील करने के लिए साझा कोशिश की है।

कोशिश की इस श्रंखला में प्रवासियों को व्यक्तिगत कॉल करना, बड़ी संख्या में एसएमएस भेजना, उनके परिवारों तक पहुंचना, यह सुनिश्चित करना कि रांची से उनके गृहनगर के लिए बसें उपलब्ध हैं, और यहां तक कि उनके नियोक्ताओं से संपर्क करना भी शामिल है। बता दें, झारखंड में लोकसभा चुनाव चार चरणों होने हैं-13, 20, 25 मई और 1 जून होना है।

महामारी के वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान लगभग 10 लाख प्रवासी श्रमिक झारखंड लौट आए थे। अधिकारियों का अनुमान है कि 60 प्रतिशत से अधिक लोग काम के लिए फिर से राज्य छोड़ चुके हैं।

श्रम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘राज्य के बाहर लगभग 6 लाख लोग हैं जिन तक हम पहुंचना चाहते हैं। कुछ जिलों के पास व्यक्तिगत डेटा है, और राज्य स्तर पर, श्रम विभाग के साथ प्रवासी नियंत्रण कक्ष अंतर राज्य प्रवासी अधिनियम के तहत पंजीकृत 1.7 लाख श्रमिकों तक पहुंच रहा है। पहले के चुनावों में प्रवासियों तक पहुंचने की सतही कवायद होती थी, क्योंकि हमारे पास कोई डेटा नहीं होता था, लेकिन इस बार, हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं।’

झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रवि कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम सभी पंजीकृत श्रमिकों को आने और मतदान करने के लिए मैसेज भेजेंगे। हमें 400 से अधिक सिक्योरिटी एजेंसियों की सूची मिली है जो झारखंड के लोगों को रोजगार देती हैं। हम इनमें से प्रत्येक कंपनी को पत्र भेजने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि रांची को अन्य शहरों और गांवों से जोड़ने वाली बसें “चुनावी ड्यूटी में न लगें”, और प्रवासियों के लिए राज्य की राजधानी से उनके गृहनगर तक पहुंचने के लिए उपलब्ध हों।

उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद, केवल एक छोटे प्रतिशत के वापस लौटने की उम्मीद है, लेकिन हमारा अनुमान है कि 6-7 लाख श्रमिकों में से केवल 4-5 प्रतिशत ही वापस आएंगे।” यात्रियों के वापस आने में लगने वाला भाड़ा और वेतन कटौती भी एक बड़ा मुद्दा है।

महज 19 साल की उम्र में विंसेंट बागे, जिनके पिता की पांच साल पहले मृत्यु हो गई, वो एकमात्र कमाने वाले हैं। गुमला जिले के रामडीह गांव के बागे गोवा में एक वेल्डर हैं, जिस दिन उन्हें काम मिल जाता है, वे 500 रुपये कमाते हैं। उनका कहना है कि वह घर वापस आने का खर्च वहन नहीं कर सकते। बागे ने फोन पर कहा, “मैं अपनी बचत खत्म नहीं कर सकता।”

श्रम विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, राज्य चुनाव आयोग ने कहा था कि वे “प्रवासियों को वापस लाने के लिए रसद सहायता प्रदान नहीं कर सकते”।

उनके वोट महत्वपूर्ण हो सकते हैं, खासकर उन सीटों पर जहां पिछली बार जीत का अंतर 10,000 से कम था। उदाहरण के लिए, खूंटी लोकसभा सीट पर बीजेपी के अर्जुन मुंडा ने कांग्रेस के काली चरण मुंडा को महज 1,445 वोटों के अंतर से हराया था। इसे ध्यान में रखते हुए, कई जिले अपने दम पर प्रवासियों तक पहुंच रहे हैं।

लगभग 70,000 प्रवासी श्रमिकों के गृह जिले गुमला ने श्रमिकों की पहचान के लिए घर-घर सर्वेक्षण और सामुदायिक स्तर की बैठकें आयोजित की हैं। गुमला के उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी ने कहा कि हमने फोन और व्हाट्सएप पर 30,000 से अधिक प्रवासी श्रमिकों से संपर्क किया है। वो कहते हैं कि हम मतदाता पर्ची वितरण के दौरान उनसे दोबारा मिलेंगे।

गुमला में कॉल पर ध्यान देने वालों में से एक 32 वर्षीय शेरू ओरांव थे, जो बिहार में एक ईंट भट्ठे पर काम करते हैं। उन्होंने कई राज्यों में मजदूर के रूप में काम करते हुए कई साल बिताए हैं और इन वर्षों में उन्होंने कुछ पैसे भी बचत के रूप में जमा किए हैं।

वह लोहरदगा लोकसभा सीट पर 13 मई को होने वाले मतदान के लिए समय पर घर जाने की तैयारी कर रहे हैं – यह उन निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है जहां 2019 में जीत का अंतर 10,000 से कम था। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने स्थानीय बूथ स्तर के अधिकारी से सलाह मिलने के बाद यह निर्णय लिया।

(अभिषेक अंगद)