झारखंड में पांच चरणों 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक चुनाव होने हैं और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दावा है कि पार्टी 81 सदस्यीय वाली विधानसभा में 65 से ज्यादा सीटें जीतकर एक बार फिर सरकार बनाएगी। हालांकि अंदरुनी सूत्रों ने भाजपा के इस दावे पर सवाल उठाए हैं, उनका कहना है कि चुनाव में उन्हें चार बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसमें आदिवासियों के बीच भाजपा विरोधी भावना, मुख्यमंत्री रघुवर दास की छवि, आपराधिक मामलों वाले नेताओं को पार्टी में शामिल करना और टिकट वितरण जैसे मुद्दे बड़े मुद्दे हैं।
सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे ने पिछले चुनाव में भाजपा को राज्य में सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में मदद की थी। अब हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावी परिणाम का हवाला देते हुए एक भाजपा ने नेता ने कहा, ‘हम अति आत्मविश्वासी नहीं हो सकते। चुनौती कई गुना ज्यादा हैं। इसमें जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं का अंसतोष शामिल हैं क्योंकि एक धारणा है कि नेतृत्व उनकी बात नहीं सुनता।’
चुनाव में ये मुद्दे भाजपा को पहुंचा सकते हैं नुकसान-
आदिवासी बहुल सीटों पर भाजपा विरोधी भावनाएं-
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा और AJSU यानी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन गठबंधन ने 28 एससी रिजर्व सीटों में से 13 पर जीत हासिल की थी। इसके उलट पार्टी इस साल हुए लोकसभा चुनाव में पांच आरक्षित सीटों में से तीन सीटें जीतने में कामयाब रही। भाजपा ने इनमें से दो सीटें बहुत छोटे से अंतर से जीतीं। पार्टी नेताओं के मुताबिक पत्थलगड़ी आंदोलन के समय राज्य सरकार की प्रतिक्रिया ने आदिसावियों के बीच पार्टी को छवि को नुकसान पहुंचाया था। दरअसल आदिवासियों ने आंदोलन सरकार के उस कदम के खिलाफ किया जिसमें रधुबर दास के नेतृत्व वाली सरकार ने कुछ ऐसे कानून बनाने की कोशिश की जिससे आदिवासियों को डर सताने लगा कि उनकी जमीनें छीन ली जाएंगी और कॉरपोरेट्स को दे दी जाएंगी। भाजपा नेता ने कहा कि इसके अलावा आदिवासी ईसाई धर्म विरोधी बिल को उनके खिलाफ उठाए गए एक कदम के रूप में देखते हैं।
मुख्यमंत्री रघुवर दास की छवि-
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सीएम रघुवर को पार्टी पदाधिकारियों संग ‘रूखा’ व्यवहार रखने वाला कहा जाता है। उन्होंने कई बार रैलियों में उनके खिलाफ अभद्र भाषा तक का इस्तेमाल किया। हाल की बोकारो रैली में दास ने गलती से कहा था, ‘जारखंड पहला राज्य बने जो आदिवासी मुक्त हो।’
आपराधिक मामले-
कई निष्ठावान कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी का चाल, चरित्र, चेहरा और चिंतन को तब खासा नुकसान पहुंचा जब आपराधिक मामले वाले कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया गया। शशि भूषण मेहता के खिलाफ हत्या के मामले में ट्रायल चल रहा है। मेहता जेएमएम छोड़ने के बाद हाल के दिनों में भाजपा में शामिल हुए हैं। इसी तरह निर्दलीय विधायक भानू प्रताप भारती को भी हाल में भाजपा में शामिल कराया गया। भानू पर भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के आरोप हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सहयोगी संग यौन उत्पीड़न का आरोप लगने के बाद जेएमएम से निकाले गए प्रदीप यादव भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। पार्टी के ही एक नेता के मुताबिक, ‘झरिया से विधायक संजीव सिंह को टिकट दिया जा सकता है। संजीव को हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया है। बाघमारा से मौजूदा विधायक धुल्लु मेहतो के खिलाफ भी कई मामले दर्ज हैं।’
टिकट वितरण-
टिकटों वितरण के दौरान विपक्षी नेताओं को पार्टी में शामिल कराने के चलते भी खासी मुश्किल हो सकती है। उदाहण के लिए बहरागोरा से जेएमएम विधायक कुणाल सारंगी और कांग्रेस नेता सुखदेव भगत के हाल में भाजपा में शामिल हुए हैं। इससे पार्टी नेताओं के एक वर्ग के बीच खासी नाराजगी है। दिनेश आनंदा गोस्वामी जो साल 2014 के चुनाव में सांरगी से हारे, चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। इसी तरह लोहरदगा AJSU की सीटिंग सीट है, मगर भगत को टिकट मिलना अब तय है। ऐसे कई मामले हैं जो बागी उम्मीदवारों को पैदा कर सकते हैं और भाजपा की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इसी बीच AJSU नेता सुदेश मेहतो ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हमने भाजपा को संकते दिया है कि पार्टी 25 सीटों पर काफी मजबूत है।’ भाजपा के अंदरुनी सूत्र ने बताया कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद AJSU मुखर हो रहा है। ये कुछ समस्या पैदा कर सकते हैं। पार्टी नेतृत्व को इससे निपटना होगा।
उल्लेखनीय है साल 2014 के चुनाव में भाजपा ने 37 और सहयोगी दल AJSU ने पांच सीटें जीतीं थीं। इससे पार्टी बहुमत के लिए जरुरी 41 सीटों का आंकड़ा छूने में कामयाब रही। बाद में छह विधायक अन्य विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए।