अनिल बंसल

कर्नाटक सरकार के विशेष सरकारी वकील बीवी आचार्य ने जयललिता को बरी करने वाले हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सिफारिश कर रखी है। लेकिन जयललिता के समर्थक विधायकों ने शुक्रवार को उन्हें फिर एक राय से अपना नेता चुन लिया। तमिलनाडु के राज्यपाल के रोसैया ने भी उन्हें मुख्यमंत्री नियुक्त करने में पल भर की देर नहीं लगाई। कर्नाटक सरकार अपील के बारे में चाहे जो फैसला करे पर केंद्र की मोदी सरकार जयललिता के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगी। आखिर अम्मा का तमिलनाडु में रुतबा ही ऐसा है कि राज्यसभा में अल्पमत का सामना कर रही सरकार उनसे अदावत क्यों करे?

फिल्मों से अपने गुरु एमजी रामचंद्रन के मार्फत राजनीति में आईं जयललिता का तमिलनाडु में गजब का जलवा है। वे पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बनी थीं। फिर 2001 में दोबारा। 1996 से 2001 तक सत्ता में रही द्रमुक सरकार ने तांसी जमीन घोटाले में उन्हें गिरफ्तार कराया। अदालत से सजा हो जाने के कारण वे 2001 का चुनाव भी नहीं लड़ पाईं। हालांकि उनकी पार्टी को बंपर बहुमत मिला। विधायक नहीं होने के बावजूद विधायक दल की नेता चुनी गईं। राज्यपाल फातिमा बीबी ने विरोधियों की सलाह को दरकिनार कर उन्हें मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक ठहरा कर 21 सितंबर 2001 को जयललिता को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। जयललिता ने अपनी जगह एक अनजान पर अपने भरोसेमंद चेहरे ओ पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया और सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट से पक्ष में फैसला आया तो जयललिता ने दो मार्च 2002 को अपनी कुर्सी फिर वापस पाई। बिहार में जीतन राम मांझी ने बेशक अपने आका नीतीश कुमार के कहने पर उनकी कुर्सी वापस नहीं दी हो पर पनीरसेल्वम ने ऐसा नहीं किया। जयललिता के प्रति उनका भक्तिभाव अद्भुत था। इतना कि वे मुख्यमंत्री रहते जयललिता की कुर्सी पर ही कभी नहीं बैठे। नरेंद्र मोदी की तरह पन्नीरसेल्वम का परिवार भी गरीब था और चाय बेचता था। भक्तिभाव का पन्नीरसेल्वम को पिछले साल फिर फायदा हुआ। जब आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में बंगलूर की अदालत के फैसले के कारण 27 सितंबर को जयललिता जेल गईं और इस्तीफा देना पड़ा। इस बार भी उत्तराधिकारी पनीरसेल्वम ही बने।

जयललिता के साथ विचित्र संयोग जुड़े हैं। एक ही विधानसभा में उन्हें दो-दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी है। मसलन, चुनाव तो उन्होंने तीन जीते हैं, पर शपथ वे शनिवार को पांचवीं बार लेंगी। पार्टी में जलवे का आलम यह है कि उनके विधायकों ने डंके की चोट पर कहा है कि वे आग में तप कर निकली हैं। 2011 के विधानसभा चुनाव में जयललिता के गठबंधन ने 234 में से 203 सीटें जीती थीं। अन्ना द्रमुक को ही 150 सीटें मिली थी। उनके गठबंधन के सहयोगी विजय कांत अब बेशक उनके साथ न हों पर शुक्रवार को विधायक दल की जिस बैठक में जयललिता मुख्यमंत्री चुनी गईं उसमें विजयकांत की पार्टी के आठ बागी विधायकों ने भी शिरकत की। पिछले लोकसभा चुनाव में भी तमिलनाडु में मोदी की जगह अम्मा का ही जादू चला। उन्होंने 39 में से 37 सीटें जीतीं।

जयललिता की विरोधी द्रमुक इस समय करुणानिधि परिवार की कलह से कमजोर हुई है जबकि जयललिता और मजबूत। मोदी के लिए जयललिता शुरू से अहम रही हैं। मोदी ने चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो जयललिता भी उसकी साक्षी बनी थीं। मोदी के लिए राज्यसभा में जयललिता के ग्यारह सांसद खास मायने रखते हैं। तमिलनाडु में भाजपा के उभार के अभी तो दूर तक संकेत नहीं हैं। लिहाजा मोदी उनसे टकराव के बजाए दोस्ताना रिश्ते ही रखना चाहेंगे। जयललिता के लिए उनके एक विधायक ने अपनी चेन्नई की आरके नगर सीट भी खाली कर दी है। वे अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं। उनके पास छह माह का वक्त है और वे आसानी से इस अड़चन को दूर कर लेंगी।