नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर सरकार के सामने पूर्वोत्तर को समझाने की चुनौती है। इसको लेकर असम और पूर्वोत्तर के करीब सभी राज्यों में विरोध शुरू हो गया है। विरोध करने वाले संगठनों एवं राजनीतिक दलों का आरोप है कि सरकार ने उन्हें भरोसे में नहीं लिया। असम के प्रभावी छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) और नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (नेसो) के सदस्यों ने सोमवार से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। आसू के महासचिव लुरिन ज्योति गोगोई का कहना है कि केंद्र सरकार असम और पूर्वोत्तर के साथ अन्याय करती रही है। असम पहले से अवैध नागरिकों का बोझ उठाते आ रहा है। अब हम बोझ और नहीं उठाएंगे। जब तक सरकार इस विधेयक को वापस नहीं ले लेती आसू और नेसो इसके खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखेगा।

आसू ने अपने साथ मेघालय, नगालैंड और मिजोरम के राजनीतिक दलों को भी ले लिया है। इस विधेयक के विरोध में उतरे संगठनों का आरोप है कि भाजपा इस विधेयक के जरिए अपने हिंदू वोट बैंक को सुनिश्चित करना चाहती है। इन संगठनों का कहना है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान से भले ही आगे कोई आए या ना आए, असली बात यह है कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी में बाहर हुए हिंदुओं को नागरिकता देने के लिए यह विधेयक लाया गया है। एनआरसी में 19 लाख से अधिक नाम कटे हैं और इसमें 12 लाख नाम बंगाली हिंदुओं के हैं।

असम के आरटीआइ कार्यकर्ता अखिल गोगोई कहते हैं कि मौजूदा सरकार बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों के नागरिकों को यहां लाकर बसाने के लिए यह बिल लेकर आई है। यह विधेयक पूरी तरह से असंवैधानिक है और हम इसका विरोध करते हैं। वे संविधान के अनुच्छेद 14 की याद दिलाते हैं कि धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता नहीं दी जा सकती। उनका कहना है कि बांग्लादेश से हजारों की संख्या में आए लोगों ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है।

असम की भाजपा सरकार के साथ गठबंधन में शामिल असम गण परिषद (एजीपी) के प्रवक्ता मनोज सैकिया कहते हैं कि हमारा विरोध है। संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो गया है, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने हमसे बात नहीं की। हमने केंद्र सरकार से साफ कहा है कि असम समझौते के आधार पर ही शरणार्थी या घुसपैठिया समस्या का समाधान निकाला जाए।

मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपल्स पार्टी के नेता और उपमुख्यमंत्री प्रेस्टन टायनसोंग, मिजोरम के गृह मंत्री लालचम्लियाना समेत विभिन्न नेता केंद्र सरकार पर हमले कर रहे हैं। सेंटर फॉर इक्वालिटी के निदेशक हर्ष मंदर का कहना है कि विधेयक से भारत का संवैधानिक विचार ही बदल जाएगा। पाकिस्तान मुसलिम देश बना। लेकिन भारत में सभी धर्मों, जातियों को बराबरी का अधिकार दिया गया। दूसरी ओर, भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता कहते हैं कि जिन लोगों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो रहा है, उन्हें सहज सरल तरीके से नागरिकता देना ही इस प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य है। इसे सांप्रदायिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए।

पूर्वोत्तर के सामाजिक कार्यकर्ताओं की तर्ज पर हर्ष मंदर का तर्क है कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया के दौरान अवैध प्रवासियों में हिंदुओं की संख्या पाई गई। अब जो विधेयक लाया जा रहा है उससे शरणार्थी और अवैध प्रवासियों की स्थिति में बदलाव हो जाएगा। अब मुसलमानों के अलावा किसी भी अन्य धर्म के लोगों को शरणार्थी माना जाएगा और नागरिकता दी जाएगी। पूर्वोत्तर में एनआरसी अब भाजपा के लिए राजनीतिक आत्महत्या साबित होने लगा है। केंद्र सरकार इस स्थिति से बाहर आने की कोशिश में है।