Anantnag-Rajouri Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के छठवें चरण के कार्यक्रम के तहत कल यानी 25 मई को वोटिंग होनी है। इसमें से एक सीट जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग राजौरी लोकसभा सीट भी है। इस सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो सकता है क्योंकि गठबंधन के बावजूद पीडीपी ची महबूबा मुफ्ती का रास्ता रोकने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने सबसे भरोसेमंद नेता को प्रत्याशी के तौर पर उतारा है, जिसके चलते यह संभावनाएं हैं कि महबूबा मुफ्ती के लिए यह चुनावी लड़ाई आसान नहीं रहने वाली है।

नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता मिया अल्ताफ ने पहले चुनाव लड़ने से इनकार किया था, लेकिन फिर पार्टी के शीर्ष नेता उमर अब्दुल्ला के साथ मुलाकात बाद उनके सुर बदल गए। अब्दुल्ला खुद उनके पास मिलने गए थे। उमर अब्दुल्ला के साथ एक घंटे की बातचीत के बाद मियां अल्ताफ ने ऐलान कर दिया कि वे नेशनल कॉन्फ्रेंस के ही टिकट पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं।

महबूबा मुफ्ती को हराने की प्लानिंग?

नेशनल कॉन्फ्रेंस यहां किसी भी कीमत पर जीत हासिल करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि दूसरी ओर पूर्व सीएम और पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती चुनावी मैदान में उतरी हैं। इसके अलावा अपनी पार्टी के जफर इकबाल मन्हास हैं। एनसी-कांग्रेस गठबंधन से बाहर रह गईं मुफ्ती के लिए यह अपनी राजनीतिक विरासत को बचाए रखने की एक अहम चुनावी लड़ाई है।

बता दें कि बीजेपी ने इस सीट से अपना कोई प्रत्याशी घोषित नहीं किया है और अपनी पार्टी के नेता इकबाल मन्हास को मौन समर्थन देने का संकेत दिया है। मन्हास एक पहाड़ी समुदाय है, जिसे बीजेपी ने एसटी का दर्जा देकर लुभाने का प्रयास किया है। दिलचस्प बात यह भी है कि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन बारामूला में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने आधिकारिक तौर पर मन्हास को अपना समर्थन देने की पेशकश की है।

महबूबा मुफ्ती पर हमलावर हैं मियां अल्ताफ

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अपने कैंपेन में मियां अल्ताफ ने महबूबा मुफ़्ती को निशाने पर रखा है। पहलगाम के अश्मुकाम में एक बड़ी रैली में उन्होंने कहा कि 2014 में एक राजनीतिक दल (पीडीपी) ने कहा था कि केवल वे ही जम्मू-कश्मीर को बीजेपी से बचा सकते हैं। उन्होंने इसी आधार पर वोट मांगे थे। बाद में उसी राजनीतिक दल ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया। आज वे कह रहे हैं कि केवल वे ही (कश्मीर के) मुद्दों को हल कर सकते हैं।

अजेय परिवार से आते हैं मियां अल्ताफ

अल्ताफ मियां परिवार से आते हैं। इस परिवार की खास बात यह है कि इस फैमिली ने आज तक कोई चुनाव हारा ही नहीं है। इसमें खुद अल्ताफ, उनके पिता मियां बशीर और दादा मियां निजामुद्दीन भी शामिल हैं। हालांकि उनकी राजनीतिक निष्ठा एनसी और कांग्रेस के बीच बदलती रही है। परिवार के एक सदस्य ने 1962 से लेकर 2014 तक लगातार श्रीनगर संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले कंगन विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

मियां अल्ताफ मध्य कश्मीर के कंगन में वांगट गांव के निवासी हैं। वह लॉ में बैचलर्स किए हुए हैं। वह कंगन से चार बार विधायक रह चुके हैं, उन्होंने 1987 से 2014 तक यहां से जीत हासिल की है। मियां परिवार को जीत में सबसे ज्यादा साथ गुज्जर समुदाय का मिलता है।इस इलाके को ही गुज्जर अपने धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में बहुत मानते हैं।

अल्ताफ पर लग रहे क्या आरोप?

मियां बशीर ने गुज्जर और बकरवाल समुदायों को एसटी का दर्जा दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही कारण है कि गुज्जर और बकरवाल दोनों का ही रुख उनके प्रति सॉफ्ट रहा है। अल्ताफ को अपने पहले संसदीय चुनाव में दो बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जो कि गुज्जर और पहाड़ी लोगों के बीच गहराता जातीय विभाजन है। वह भी ऐसे वक्त में, जब केंद्र ने चुनाव से ठीक पहले पहाड़ी लोगों को एसटी का दर्जा दिया।

दूसरी ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस विरोधी सीधे तौर पर यह आरोप लगा रहे हैं कि मियां अल्ताफ को दक्षिण कश्मीर के लोगों पर “थोपा” गया है। अल्ताफ ने अपने भाषणों में इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की है। हाल ही में उन्होंने अश्मुकाम में गुज्जरों और कश्मीरियों के बीच रैली में कहा कि मैं इस निर्वाचन क्षेत्र से नहीं हूं, मेरा यहां वोट नहीं है लेकिन मैं निश्चित रूप से यहां रहता हूं… जब मैं संसद जाता हूं, तो ऐसा लगता है (जैसे) अनंतनाग का हर व्यक्ति संसद में है।

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उमर अब्दुल्ला ने किया है बचाव

अल्ताफ के लिए अपने प्रचार अभियान के दौरान उमर ने कहा कि जब वह (महबूबा मुफ्ती) श्रीनगर से चुनाव लड़ती थीं, तो यह कहते हुए कि वह अनंतनाग से हैं, तब सब कुछ ठीक था। अब जब अल्ताफ साहब चुनाव लड़ रहे हैं, तो वे इस मुद्दे को उठाते हैं। अल्ताफ के लिए खानाबदोशी गुज्जर और बकरवाल हैं, जो कि मौसम के अनुसार पलायन करते रहते हैं। अनंतनाग-राजौरी चुनाव मूल रूप से 7 मई को निर्धारित किया गया था, लेकिन चुनाव आयोग ने खराब मौसम की स्थिति का हवाला देते हुए इसे 25 मई तक के लिए टाल दिया था। हालांकि, इस बीच, बकरवाल का एक बड़ा हिस्सा घाटी के ऊपरी इलाकों में चला गया है, जो कि संभवतः वोटिंग नहीं करेगा और यह मियां अल्ताफ के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

इस मुद्दे पर एक गुज्जर नेता ने बताया कि समुदाय के 50,000 से 80,000 मतदाता तथा बकरवाल मतदाता वोट नहीं दे पाएंगे, क्योंकि वे राजौरी और पुंछ से चले गए हैं। एनसी और पीडीपी आरोप लगा रहे हैं कि मन्हास को लाभ पहुंचाने के लिए चुनाव में देरी की गई, जो घाटी से एक पहाड़ी नेता हैं, और इसलिए अब वह गुज्जर-बकरवाल वोट पर निर्भर नहीं हैं। मन्हास को लेकर आरोप हैं कि बीजेपी उन्हें फायदा पहुंचाने के प्रयास कर रही है।