जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा जम्मू और श्रीनगर के बीच 152 साल पुरानी दरबार मूव (Durbar Move) परंपरा को खत्म करने के तीन साल बाद, केंद्र शासित प्रदेश की नव निर्वाचित सरकार ने इस प्रथा को फिर से बहाल कर दिया है।

23 अक्टूबर को जारी एक आदेश में निर्देश दिया गया है कि सभी केंद्र शासित प्रदेश स्तर के विभाग प्रमुखों को 11 नवंबर से प्रशासनिक सचिवों के साथ जम्मू में सिविल सचिवालय में उपलब्ध रहने के लिए कहा जाए । आदेश में कहा गया है, “वे जरूरत के अनुसार श्रीनगर के सिविल सचिवालय में उपस्थित होंगे।”

दरबार मूव क्या था?

यह नाम राज्य सरकार के सिविल सचिवालय और अन्य कार्यालयों को गर्मियों में जम्मू से श्रीनगर और सर्दियों में जम्मू से श्रीनगर स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को दिया गया था। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि जम्मू और कश्मीर की दो राजधानियां हैं- गर्मियों में कश्मीर और सर्दियों में जम्मू।

जम्मू में कार्यालय अप्रैल के आखिरी शुक्रवार और शनिवार को बंद रहते हैं और श्रीनगर में एक सप्ताह के अंतराल के बाद पहले सोमवार को खुलते हैं। कश्मीर में कार्यालय अक्टूबर के आखिरी शुक्रवार और शनिवार को बंद रहते हैं और जम्मू में एक सप्ताह के अंतराल के बाद नवंबर के पहले सोमवार को खुलते हैं। अधिकारियों के अलावा, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल, तथा विधायकों और उनके कर्मचारियों को भी इस प्रक्रिया के तहत स्थानांतरित कर दिया गया जाता है।

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अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने तक, दरबार मूव के तहत प्रशासन को कार्यालय रिकॉर्ड और अधिकारियों को एक राजधानी से दूसरे राजधानी शहर ले जाने के लिए साल में दो बार सैकड़ों ट्रकों और बसों की आवश्यकता होती थी। कोविड-19 महामारी के दौरान यह प्रथा सबसे पहले बंद हो गई थी । बाद में सरकार ने कहा कि 19 विभाग अपने प्रशासनिक सचिवों के साथ श्रीनगर स्थित सिविल सचिवालय से तथा 18 विभाग जम्मू स्थित सिविल सचिवालय से काम करेंगे।

दरबार मूव की उत्पत्ति क्या थी?

दरबार मूव की शुरुआत 1872 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डोगरा शासकों द्वारा की गई थी। दरबार मूव का उद्देश्य गर्मियों में प्रशासन को जम्मू से कश्मीर के लोगों के दरवाज़े तक ले जाना था। वास्तव में, गर्मियों का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था कि सर्दियों की बर्फबारी से पहले लद्दाख में पर्याप्त आपूर्ति पहुंच जाए। इसके अलावा, इस प्रथा को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों के बीच बेहतर मेल-मिलाप के रूप में देखा गया।

दरबार मूव का विरोध

1980 के दशक के आखिर में, जब आतंकवाद ने भी जोर पकड़ा था, दरबार मूव की प्रक्रिया पर खर्च होने वाले पैसे और समय को लेकर पहली बार विरोध की आवाज़ें उठीं। हालाँकि, इस प्रक्रिया को जनता का समर्थन मिला। 1980 के दशक के आखिर में, जब फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने कुछ विभागों को कश्मीर और कुछ को जम्मू में स्थायी रूप से रखकर सचिवालय को विभाजित करने का फैसला किया, तो विरोध में यह लगभग 45 दिनों तक बंद रहा। जिसके कारण सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इसमें शामिल लागत को लेकर भी आलोचना हुई आलोचकों ने एक वार्षिक प्रक्रिया पर लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च करने पर सवाल उठाया।

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दरबार मूव को खत्म करने का कारण

2020 में, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि दरबार मूव की परंपरा के लिए कोई कानूनी औचित्य या संवैधानिक आधार नहीं है। इस प्रथा के कारण अनावश्यक गतिविधि पर बहुत अधिक समय, प्रयास और ऊर्जा की बर्बादी होती है, ऐसा कहते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति राजेश ओसवाल की खंडपीठ ने कहा कि राज्य के मूल्यवान संसाधनों को पूरी तरह से गैर-जरूरी उपयोग के लिए नहीं बदला जा सकता है, जब केंद्र शासित प्रदेश अपने लोगों को बुनियादी आवश्यक चीजें भी प्रदान करने में असमर्थ है।

जून 2021 में दरबार मूव को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया था। प्रशासन ने तब 56 विभागों के प्रमुखों की पहचान की, जो मुख्य रूप से श्रीनगर में स्थित होंगे या तो पूर्ण रूप से या कैंप कार्यालय के रूप में। जम्मू में स्थित विभागाध्यक्षों की संख्या 66 तय की गई। तब से, केवल आयुक्त या सचिव या उससे ऊपर के स्तर के वरिष्ठ नौकरशाह ही जम्मू और श्रीनगर के बीच आवागमन करते हैं। उनमें से ज़्यादातर सर्दियों के दौरान जम्मू में और गर्मियों के दौरान कश्मीर में रहते हैं।

चुनावों के दौरान पार्टियों ने दरबार मूव की बहाली का वादा क्यों किया?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्रों में कई पार्टियों ने दरबार मूव को फिर से शुरू करने का वादा किया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा था कि यह हमारे राज्य की एकता को बढ़ाने के लिए जरूरी है। हालांकि जम्मू को अधिक विभाग आवंटित किए गए लेकिन दरबार मूव की समाप्ति के बाद प्रांत में कारोबार में कमी देखी गई। दरबार मूव के खत्म होने के बाद जम्मू में पर्यटकों की संख्या में कमी आई है, वहीं कटरा के लिए सीधी ट्रेन रूट खुलने के बाद जम्मू में रहने वाले पर्यटकों की संख्या में भी कमी आई है।

जम्मू चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जो क्षेत्र के व्यापारियों और उद्योगपतियों का मुख्य संगठन है, मांग कर रहा है कि दरबार मूव को फिर से शुरू किया जाए।

23 अक्टूबर के आदेश के बाद क्या बदलाव हुए?

प्रशासनिक सचिवों के दो राजधानी शहरों के बीच आवागमन के अलावा अब विभिन्न विभागों के प्रमुख भी स्थानांतरित होंगे। अब जबकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में पहली सरकार बन गई है, तो विधानसभा के साथ-साथ मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और विधायकों के कार्यालय भी मौसमी रूप से स्थानांतरित होने की उम्मीद है।