जम्मू-कश्मीर की राजनीति में गुरुवार को एक बड़ा निर्णायक मोड़ देखने को मिला है। उमर सरकार सदन में एक प्रस्ताव लेकर आई जिसके तहत 370 की बहाली की बात कही गई। अब प्रस्ताव जरूर 370 की बहाली को लेकर है, लेकिन फिर भी सीएम उमर अब्दुल्ला की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी इसी वजह से उन पर हमला किया है।
उमर सरकार पर क्यों उठ रहे सवाल?
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती न कहा कि यह प्रस्ताव बेमन तरीके से लाया गया है। इस प्रस्ताव में यह नहीं कहा जा रहा कि 370 को वापस लाना है, इसमें तो वे बस चिंता जाहिर कर रहे हैं, वे तो बातचीत करने की बात कर रहे हैं। लेकिन मेरा सवाल तो यह है कि आखिर वे किससे बात करना चाहते हैं? क्या वे उस बीजेपी की सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं जिसने जम्मू-कश्मीर में भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
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क्या सिर्फ कुछ साबित करने के लिए प्रस्ताव?
जानकार मानते हैं कि 370 की बहाली अब काफी मुश्किल है या कहना चाहिए कि नहीं हो सकती है। चुनाव के दौरान भी उमर अब्दुल्ला के प्रचार के समय सारा फोकस राज्य का दर्जा वापस मिले, इस बात पर था। इसी वजह से अब जब उनकी तरफ से 370 की बहाली को लेकर प्रस्ताव लाया गया है, माना जा रहा है कि इसका असल मकसद सिर्फ ताकत सका अहसास करवाना है, केंद्र पर दबाव बनाना है।
महबूबा को क्या परेशानी है?
महबूबा मुफ्ती तो कहती हैं कि उमर अब्दुल्ला 370 की बहाली को लेकर नेशनल यूनिटी की बात कैसे कर सकते हैं। यहां पर राष्ट्रीय एकता से कोई मतलब नहीं है, यह देश तो अपनी विविधता के लिए जाना ही जाता है। जम्मू-कश्मीर ने इसी आधार पर 1947 में भारत के साथ जाने का फैसला किया था। पीडीपी के ही कुछ दूसरे नेता भी इस प्रस्ताव को कमजोर मान रहे हैं, इसे खानापूर्ति की तरह देख रहे हैं।
उमर ने पहले नहीं किया 370 का जिक्र
बड़ी बात यह है कि कुछ दिन पहले भी जब उमर अब्दुल्ला की गृह मंत्री अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी, तब बात सिर्फ स्टेटहुड की हुई थी, कहीं भी 370 का जिक्र तक नहीं था। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि एनसी सरकार के इस प्रस्ताव को लाने से पहले इसी को लेकर पीडीपी ने हंगामा किया था। सबसे पहले वो चाहती थी कि सरकार का पहला ही प्रस्ताव 370 बहाली को लेकर हो।
अब आनन-फानन में उमर सरकार प्रस्ताव जरूर लेकर आई है, लेकिन उसकी भाषा, उसकी नीयत अलग ही कहानी बयां कर रही है।