समान नागरिक संहिता को लेकर जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने निराशा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि “हमारी मस्जिद ही चली गई, हम कुछ नहीं कर पाए, अब यूसीसी में क्या कर लेंगे।” हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता के बारे में मुसलमान अपने विचार रखेंगे, लेकिन उनकी बातों की सुनवाई होगी, इसकी उम्मीद नहीं है।
एनडीटीवी से बातचीत में मौलाना मदनी ने कहा, “कोई क्या कर सकता है? अब जब प्रधानमंत्री ने खुले तौर पर कहा है कि मुसलमानों के धार्मिक अधिकार छीन लिए जाएंगे…।”
मंगलवार को, पीएम मोदी ने कहा था कि भारत के मुसलमान भाई बहनों को ये समझना होगा कि कौन से राजनीतिक दल उनको भड़का कर उनका राजनीतिक फायदा ले रहे हैं। हम देख रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर ऐसे लोगों को भड़काने का काम हो रहा है।
पीएम ने कहा था एक देश दो कानूनों से नहीं चल सकता है
उन्होंने पूछा कि एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पायेगा क्या? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? उन्होंने कहा कि हमें इस बात को याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है।
मौलाना अरशद मदनी ऑल-इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भी सदस्य हैं, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान नागरिक संहिता पर ज़ोर देने के बाद मंगलवार की देर रात एक आपातकालीन बैठक की थी। तीन घंटे की बैठक में लॉ बोर्ड ने अपने विचार विधि आयोग को सौंपने का फैसला किया, जिसने सभी हितधारकों से विचार मांगे हैं।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में फैसला लिया गया कि यूसीसी को लेकर जल्द एक ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा। इसमें यूसीसी के कानूनी पहलुओं को शामिल किया जाएगा। इसके अलावा शरीयत के जरूरी हिस्सों को भी ड्राफ्ट में शामिल किया जाएगा। इतना ही नहीं बैठक में तय किया गया कि बोर्ड की ओर से लॉ कमीशन के अध्यक्ष से भी मुलाकात की जाएगी। लॉ कमीशन से बोर्ड की अपील होगी कि इसी ड्राफ्ट को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार किया जाए।
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में पसमांदा मुसलमानों के विकास के बारे में बात की और समान नागरिक संहिता (UCC) की जोरदार वकालत की थी। उन्होंने ‘तीन तलाक’ का समर्थन करने वालों पर भी निशाना साधा और कहा, “अगर यह इस्लाम का एक महत्वपूर्ण पहलू था तो यह पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, जॉर्डन, सीरिया और बांग्लादेश में क्यों नहीं है?” उन्होंने आगे दावा किया कि मिस्र ने 80-90 साल पहले इस प्रथा को हटा दिया था, लेकिन कुछ लोग तीन तलाक के फंदे के माध्यम से हर समय मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करने का लाइसेंस चाहते हैं।