गणेश नंदन तिवारी

मुंबई। करीब पांच महीने पहले लोकसभा चुनाव में उठी मोदी लहर महाराष्ट्र तक आते-आते कमजोर पड़ गई। बावजूद इसके उसने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गढ़ों को हिलाकर भाजपा को सत्ता के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। भाजपा भले ही बहुमत तक नहीं पहुंच पाई हो। लेकिन मोदी के असर से उसने सूबे के हर इलाके में बढ़त हासिल कर प्रभावशाली प्रदर्शन किया है।

 
राज्य की 288 सीटों में से 150 से भी ज्यादा ऐसी सीटें थीं जहां भाजपा का कोई प्रभाव नहीं था। उसके उम्मीदवार नहीं जीते। भाजपा को जो बढ़त मिली उसे मोदी की लहर नहीं, मोदी का असर कहा जा सकता है। यह मोदी का ही असर था कि बीते 20 सालों से लगातार खराब प्रदर्शन कर रही भाजपा की सीटों की गिरावट रुक गई। सन 1995 के विधानसभा चुनाव में 65, 1999 में 56, 2004 में 54 और 2009 में 46 सीटों के रूप में भाजपा की सीटें लगातार नीचे आ रही थीं। अगर मोदी महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार की बागडोर नहीं थामते तो संभव था कि भाजपा का प्रदर्शन और भी ज्यादा निराशाजनक होता क्योंकि शिवसेना की तरह उसके पास भी सूबे में सर्वमान्य लोकप्रिय नेताओं का अभाव है। मोदी ने सही वक्त पर प्रचार की कमान संभाल कर न सिर्फ भाजपा की सीटों में आ रही गिरावट को रोका बल्कि पहली बार भाजपा को तीन अंकों तक पहुंचाया। तीन अंकों तक पहुंचने का कमाल बीते 25 सालों में कोई भी दल महाराष्ट्र में नहीं कर पा रहा था।

 
लहर और असर में फर्क है। लहर में तो विरोधी सूखे पत्ते की तरह उड़ जाते हैं और मजबूत नेता तक जड़ से उखड़ जाते हैं। मोदी लहर की झलक लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश (80 में से 71 सीटें), मध्य प्रदेश (29 में से 27 सीटें), राजस्थान (25 में से 25 सीटें), छत्तीसगढ़ (11 में से 10 सीटें) और गुजरात (26 में से 26 सीटें) जैसे सूबों में देखने को मिली थी, जहां मोदी लहर सूनामी बन गई थी। उसने विरोधी दलों को जड़ों से उखाड़ दिया था। मगर पांच महीने बाद उस मोदी लहर का महाराष्ट्र तक आते-आते दम उखड़ गया। अगर लहर होती तो कांग्रेस और राकांपा के पश्चिम महाराष्ट्र, विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे गढ़ इस लहर में बह चुके होते। कांग्रेस और राकांपा का खाता भी नहीं खुलता। मोदी के असर से इन गढ़ों में दोनों ही पार्टियों को खासा नुकसान हुआ है। यह जरूर स्पष्ट नजर आता है। मगर यह नुकसान रीढ़ टूटने जैसा नहीं कि वे उठ न सकें।

 
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 15 साल की आघाड़ी सरकार विरोधी जनादेश हैं। आघाड़ी के अप्रभावशाली प्रशासन से ऊबी जनता ने भाजपा को बढ़त दी है, बहुमत नहीं। महाराष्ट्र के मतदाताओं ने सूबे में बनने जा रही सरकार को निरंकुश सत्ता न सौंपकर उस पर दूसरे दलों के समर्थन का अंकुश लगाया है। महाराष्ट्र में 15 सालों के भ्रष्ट शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने का नरेंद्र मोदी ने जो आह्वान किया था, जनता ने एक हद तक ही उसे स्वीकार किया।

 
साल 1990 से 2014 तक के छह विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि भाजपा जितनी भी सीटों पर लड़ी, उसे सिर्फ एक बार आधी से ज्यादा सीटें (1995 में 116 सीटों पर लड़ी और 65 सीटें जीतीं) पर जीत मिलीं। शिवसेना के साथ बंटवारे में उसे आज तक 120 सीटें भी नसीब नहीं हुई थीं। पहली बार वह इस विधानसभा चुनाव में 280 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, मगर 140 सीटें भी नहीं जीत सकी। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का कहर देखने के बाद क्या महाराष्ट्र के प्रदर्शन को मोदी लहर कहा जा सकता है?