Mohan Bhagwat News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भगवत ने संघ के कामकाज और विचारधारा पर टिप्पणी करते हुए विरोधियों और आलोचकों को करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा, “संघ को बीजेपी के नजरिए से देखना एक गंभीर गलती है। संघ को समझने के लिए स्वयं इसका अनुभव करना आवश्यक है।” उन्होंने संघ की स्वायत्तता और मूल उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए यह बात कही।
भागवत ने साइंस सिटी सभागार में आरएसएस के शताब्दी समारोह के अवसर पर कोलकाता में आयोजित कार्यक्रम में कहा, “संघ जैसा कोई दूसरा संगठन नहीं है। अगर आप संघ को तुलनाओं के माध्यम से समझने की कोशिश करेंगे, तो इससे केवल गलतफहमियां ही पैदा होंगी। संघ के कई स्वयंसेवक विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। कुछ राजनीति में हैं और कुछ सत्ता के पदों पर हैं। इसलिए बहुत लोगों की ये प्रवृत्ति रहती है कि संघ को बीजेपी के द्वारा समझना, तो ये बहुत ही बड़ी गलती होगी। संघ को समझने के लिए, संघ को स्वयं देखना, उसका प्रत्यक्ष अनुभव करना और उसे महसूस करना आवश्यक है। इसे केवल बाहर से देखकर नहीं समझा जा सकता, क्योंकि हर कोई इसे अपने-अपने नजरिए से देखता है।”
लोग संघ के काम से परिचित नहीं होते- मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत ने आगे कहा, “नतीजा यह होता है कि लोग संघ का नाम तो जानते हैं, लेकिन उसके काम से परिचित नहीं होते। इसलिए, 2018 में हमने दिल्ली में एक प्रयोग किया। हमने शहर के लगभग 2,000 बुद्धिजीवियों को आमंत्रित किया, जिनमें से 1,700 उपस्थित हुए। हमारा उद्देश्य कभी भी उन सभी को संघ में शामिल करना नहीं था और न ही आज है। कोई संघ को स्वीकार करे या न करे, उसकी सराहना करे या न करे, यह पूरी तरह से उनका अपना विकल्प और अधिकार है।”
ये भी पढ़ें: ‘दुनिया भारत के प्रधानमंत्री की बात सुनती है क्योंकि…’, RSS चीफ मोहन भागवत का बड़ा बयान
संघ हिंदू समाज के उत्थान के लिए काम करता है- आरएसएस चीफ
मोहन भागवत ने कहा, “संघ की स्थापना क्यों और किस उद्देश्य से की गई थी? इसका उत्तर एक वाक्य में दिया जा सकता है। भारत केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है। भारत एक सभ्यता, एक संस्कृति और एक शाश्वत परंपरा का नाम है। ऐसे राष्ट्र के समाज को इस जिम्मेदारी के लिए तैयार करना संघ का कार्य है। संघ की स्थापना किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं की गई थी। यह किसी से प्रतिस्पर्धा के लिए काम नहीं करता, न ही किसी परिस्थिति की प्रतिक्रिया के रूप में उभरा है और न ही किसी के विरोध से अस्तित्व में है। संघ हिंदू समाज के संगठन, उत्थान और संरक्षण के लिए कार्य करता है।
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने आगे कहा, ” कई लोगों ने प्रयास किए। 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ देशव्यापी संघर्ष हुआ। हालांकि, हम वह लड़ाई हार गए। इस हार के बाद, उस समय के हमारे नेताओं ने चिंतन करना शुरू किया। हमारे अपने देश में इतने सारे लोग, इतने सारे राजा, हमारी अपनी सेनाएं, अत्यंत सक्षम योद्धा थे, इन सबके बावजूद मुट्ठी भर अंग्रेज बाहर से आए और हमें हरा दिया। इस आत्मनिरीक्षण से एक विचार उभरा, भले ही हम एक बार हार गए हों, हमें फिर से सशस्त्र प्रतिरोध करना चाहिए और बलपूर्वक अंग्रेजों को खदेड़ देना चाहिए।”
यह परंपरागत रूप से हिंदुओं की भूमि है- मोहन भागवत
मोहन भगवत ने कहा, “एक सुसंगठित समाज वास्तव में समाज की स्वाभाविक अवस्था है। हिंदुओं को हमेशा से इस राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्वशाली माना गया है। इस देश में चाहे जो भी अच्छा या बुरा घटित हो, जो लोग स्वयं को हिंदू नहीं मानते, उनसे शायद ही कभी सवाल किया जाता है। लेकिन जो लोग गर्व से खुद को हिंदू कहते हैं, उनसे हमेशा पूछा जाएगा कि उन्होंने अपने राष्ट्र के लिए क्या किया है, क्योंकि यह परंपरागत रूप से हिंदुओं की भूमि है। यह देश नया नहीं है, यह प्राचीन काल से अस्तित्व में है, हमारी सभ्यता और विरासत के माध्यम से आगे बढ़ता रहा है।”
ये भी पढ़ें: ‘हिंदू नहीं रहेगा तो दुनिया नहीं रहेगी’, ऐसा क्यों बोले आरएसएस चीफ मोहन भागवत?
