देश की पस्त इकनॉमी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) की चुप्पी टूटी है। उन्होंने कहा है कि यह सामान्य नहीं बल्कि भारत वर्ष का सबसे बड़ा इकनॉमिक स्लोडाउन (Economic Slowdown) है। बुधवार को NDTV के डॉ.प्रणय रॉय को दिए इंटरव्यू में इस बारे में विस्तार से चर्चा की। साथ ही क्रम दर क्रम बताया कि आखिर देश में यह कितनी बड़ी समस्या है, इसके पीछे के प्रमुख कारण कौन से हैं और हम इससे कैसे निपट सकते हैं?
IIM-Ahmedabad और University of Oxford से पढ़े सुब्रमण्यम के मुताबिक, आयात और निर्यात दर (छह प्रतिशत से नीचे और -1 फीसदी क्रमशः) जैसा डेटा (नॉन-ऑइल), कैपिटल गुड्स इंडस्ट्री ग्रोथ (10 प्रतिशत से कम) और कंज्यूमर गुड्स प्रोडक्शन ग्रोथ रेट (दो साल पहले पांच फीसदी से लेकर अब एक प्रतिशत पर) बेहतर संकेतक हो सकते हैं।
वह आगे बोले, “कुछ और भी आंकड़े (एक्सपोर्ट, कंज्यूमर गुड्स और टैक्स रेवेन्यू से संबंधित) हैं…हमें अब करना यह है कि इन सब संकेतकों साथ लें और फिर पहले के स्लोडाउन (2000 से 2002 के बीच) के दौर को देखें। आपको तब पता लगेगा कि तब भी देश की जीडीपी 4.5 फीसदी पर थी और ये सभी संकेतक सकारात्मक थे।” उन्होंने इसी के साथ स्पष्ट किया कि अब ये संकेतक या तो नकारात्मक हैं या बमुश्किल सकारात्मक हालात में थे।
उन्होंने आगे कहा, “…यह सामान्य स्लोडाउन नहीं है…यह देश का सबसे बड़ा स्लोडाउन है।” बता दें कि भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, जीडीपी लगातार सात तिमाही से गिरती ही जा रही है। यह 2018-18 की पहली तिमाही में आठ फीसदी थी, जो 2019-20 की दूसरी तिमाही में आते-आते 4.5 प्रतिशत पर आ गई।
सुब्रमण्यम ने अंग्रेजी चैनल को बताया कि मुख्य संकेतक नकारात्मक स्थिति में हैं या फिर बमुश्किल ही उनमें पॉजिटिविटी दिख रही है। विकास, निवेश, आयात और निर्यात सरीखी चीजें नौकरियों के लिए खासा मायने रखती हैं। यह भी अहम रखता है कि सरकार कितना राजस्व सामाजिक कार्यक्रमों और योजनाओं पर खर्चती है।