हाल में हिंदी फिल्मों के गीतकार इरशाद कामिल को पुश्किन अवार्ड देने की खबर आने के बाद यह चर्चा चल निकली कि युद्ध की विभीषिका के बीच भी साहित्य से जुड़ी रचनात्मक और संवेदनशील गतिविधियों की गुंजाइश बाकी है।

कामिल देश के पहले गीतकार हैं, जिन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। पंजाब के संगरूर जिले के मलेरकोटला में रसायन विज्ञान के शिक्षक मोहम्मद सिद्दीकी और बेगम इकबाल बानो के यहां पांच सितंबर 1971 को उनकी सातवीं संतान के तौर पर जन्मे इरशाद ने सनातन धर्म प्रेम प्रचारक स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की और स्रातक एवं स्रातकोत्तर के बाद समकालीन हिंदी पत्रकारिता में पीएचडी किया।

उनके चार भाई और दो बहनें हैं। उन सभी ने अपने माता-पिता की मर्जी के अनुसार पढ़ाई की। इरशाद को उनके पिता विज्ञान की पढ़ाई करवाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने अलग रास्ता चुना। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ साल पत्रकारिता में हाथ आजमाए, लेकिन वे मुंबई को मंजिल बनाना चाहते थे। एक बार मुंबई गए, लेकिन काम न मिलने के कारण वापस चंडीगढ़ लौटना पड़ा।

एक दिल्ली भी पहुंचे, लेकिन कुछ दिन बाद चंडीगढ़ लौटना पड़ा। फरवरी 2002 में फिल्म निर्माता लेख टंडन अपने टेलीविजन सीरियल ‘कहां से कहां तक’ की शूटिंग के लिए चंडीगढ़ पहुंचे थे। तब उन्हें सीरियल के संवाद लिखवाने के लिए एक नए लेखक की तलाश थी। किसी ने इरशाद कामिल का नाम सुझाया। इस तरह फिल्म नगरी के साथ कामिल के तार जुड़ने लगे। लेख टंडन कामिल की भाषा की खूबसूरती से प्रभावित हुए और उन्होंने कामिल को मुंबई आने का न्योता दे दिया। मुंबई पहुंचने के बाद कामिल ने कई सीरियल के शीर्षक गीत और संवाद लिखने का काम किया।

इसी दौरान उनकी मुलाकात इम्तियाज अली से हुई और दोनों ने पहली बार फिल्म ‘चमेली’ के लिए एक साथ काम किया। वहां से दोनों की दोस्ती की डोर मजबूत होती चली गई और ‘जब वी मेट’, ‘लव आजकल’, ‘राकस्टार’ और ‘हाईवे’ जैसी फिल्में दोनों ने एक साथ कीं। कामिल के गीतों में अंग्रेजी और पंजाबी के शब्दों की भरमार होने के कारण उनकी भाषा पर अकसर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन इस बारे में कामिल का कहना है कि लोग उनके गीतों को पसंद करते हैं क्योंकि वे उन्हें अपने आसपास के माहौल और समाज जैसे ही लगते हैं। उनका कहना है कि अतीत में जीना अच्छी बात है, लेकिन बंधी बंधाई लीक पर चलते रहेंगे तो नई-नई राहें कैसे खोज पाएंगे।

वह कहते हैं कि सिनेमा ही तो समस्त साहित्य या कला नहीं है और इसके अलावा भी बहुत साहित्य लिखा जा रहा है, जिसे शुद्धतावाद या भाषा के तराजू पर तौला जा सकता है। सिनेमा का अहम पहलू मनोरंजन है इसलिए भाषा का चयन करते समय उसे भी ध्यान में रखना जरूरी होता है। वह कहते हैं कि जो सरल साधारण बात करीने और सलीके से कही जाए वह अपना असर छोड़ती है।

सौ से ज्यादा फिल्मों के लिए गीत लिख चुके और फिल्मी दुनिया से जुड़े लगभग तमाम अवार्ड स्क्रीन, आईफा, ज़ी सिने अवार्ड्स, मिर्ची म्यूजिक अवार्ड्स हासिल कर चुके इरशाद कामिल का कहना है कि उन्हें अभी बहुत कुछ लिखना है और बहुत सी मंजिलों को अपने सफर का पड़ाव बनाना है।